
तेरी गीली सी पलकों के तले
फैली थी काली गहरी स्याह
सचमुच रात बहुत लम्बी थी
अंधेरे में लिपटी थी हर राह !!
तन्हाई की चादर में ख़ुद को छिपाए
मन जल रहा था किसी अफ़सोस में
पल रहे थे कितने ही आंसूं
जैसे उस गम की कोख में
कसमसा रही थी जिंदगी
खामोश सी थी हर आह !!
मांगता रह गया रस्ता उस बीती रात से
जोड़ता रहा ख़ुद को हर अधूरी बात से
न पहुँच पाया तुझ तक उस मुलाकात से
तकलीफ में बहुत था मगर ख़ुद की निजात से
हो न सकी फिर भी तेरे दर्द से कोई सुलह.....!!
4 comments:
नींद तो थी पर न कटी रात फिर भी
कह न पाए तुम से दिल की बात फिर भी
अच्छी रचना......सुंदर
great power of imagination
keep on writing
कम शब्दों में बहुत ही गहरे भावों को अभिव्यक्त करती एक बहुत ही प्यारी रचना
इसी तरह लिखती रहें. मेरी शुभकामनाएं
गहरे भाव,सुंदर अभिव्यक्त !
इसी तरह लिखती रहें. शुभकामनाएं !
Post a Comment