![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC8mL8aD_aalzf3Hg0-uhlFLQ3ZTw-8biJmeHp-vAgsnku0oldNvk-Q68RD0m-gML_zlGCqIcyHnIt-k16xZg-8uFo7STmxOfqyWI5mmt-YqInPitBvq02D2XwVWKM0dvS225uVVRSKpU/s200/life.jpg)
मैं पूछता हूँ जिन्दगी से
तू, कब मुझको रास आएगी?...
मैं कब तलक नापता रहूँगा फासले
और कब तू ख़ुद पास आएगी ?...
कब सिखाएगी जीना?
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
कब तलक रहूँगा मैं अजनबी ?
क्या मुझको तू अपना लेगी कभी ?
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी ?
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ?