
मैं पूछता हूँ जिन्दगी से
तू, कब मुझको रास आएगी?...
मैं कब तलक नापता रहूँगा फासले
और कब तू ख़ुद पास आएगी ?...
कब सिखाएगी जीना?
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
कब तलक रहूँगा मैं अजनबी ?
क्या मुझको तू अपना लेगी कभी ?
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी ?
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ?
16 comments:
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
बहुत गहरी बात !
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी
बहुत खूब
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
घने एहसास की सुन्दर कविता
वाकई बहुत गहरी बातें कह रही है ये कविता
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ? waah bahut khub
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
bahut acchee rachana ahsas se sarabor rachana .
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
बहुत गहरी संवेदना लाजवाब बधाई पारुल जी
बहुत सुन्दर कविता .... बधाई
बहुत सुन्दर !!!!!!!!!
thanx to all o f u
ज़िन्दगी अपने आप में वो paheli है जो कोई आज तक नहीं समझ paaya ......... आपका भी prayaas, जिंदगी से कुछ sawaal ...... बहुत achhee rachna है ..
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ? येही तो पहेली है.
बहुत सुन्दर.
its really a nice poem.
Pahli baar blog pe aaya, ek hi kavita hi padhi lekin kamaal ki hai....
samay nikal ke kabhi fir aata hoon. badhai
Jai Hind..
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में,
तू दफनाएगी ?
बहुत सुन्दर!
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