Thursday, July 30, 2009

जा!


जिंदगी के सीने में खंजर चला के जा
जाना हो जहाँ जा,मगर ख़ुद को बता के जा
किस किस से पूछेंगें ,आख़िर कहाँ है तू
कि खोने से पहले ही ख़ुद को पा के जा
होगा जहाँ बसेरा,तेरा भी वहीं डेरा
पर जाने से पहले तू ,मुझ तक तो के जा
तन्हा से होंगें आँसू ,मेरे पास छोड़ जा इन्हे
मेरे लिए ही सही,तू मुस्कुरा के जा
कुछ ख्वाब यूं भी तेरे, तुझको वहां घेरे
अच्छा है तू इनको यहीं सुला के जा
ये मन तेरा,मेरे ही आस-पास होगा
बेहतर है तू कुछ भी मुझसे छुपा के जा
ये गम बिछड़ने का कहीं बोझ बन जाए
जाने से पहले मुझको जी भर रुला के जा
अब तक तो जिंदगी ने मुझको नही अपनाया
आख़िर तू तो मुझको गले लगा के जा
शायद मैं ही तुझको अब तक समझ पाया
इसलिए तू अब मुझको और समझा के जा
कहते कहते थक जाए कहीं ये खामोशी
तू मुझको यूं ही लफ्जों में उलझा के जा
मैं तन्हा रह जाउं अपनी ही तन्हाई में
तू तेरी तन्हाई से मुझको मिला के जा
शायद बिन तेरे ,मैं,मैं रह जाउं
बस यही आख़िर गुजारिश,ख़ुद को मुझे में बसा के जा







अस्तित्व !


कुरेदती जा रही थी मिटटी
ख़ुद को पाने की भूल में ॥
कुछ भी तो हाथ न आया
जिंदगी की धूल में ॥
कुछ एहसास लपककर
गोद में सो गए थककर
और मैं जागती रही
आख़िर यूं ही फिजूल में॥
जिंदगी खलती चली गई
मैं बस चलती चली गई
वो मेरे जेहन तक चुभा
अपना रंग ढूंढती रही
जाने क्यों उस शूल में॥
सूखी आंखों के मोती थे
या अंधेरों की पोथी थे
मैं चाहकर भी न पढ़ पाई
क्या था अस्तित्व के मूल में?

Sunday, July 19, 2009

बाकी है!


जागे हो तुम ,सोये नही और कहते हो रोये नही
ऐसा क्यों लगता है जैसे अभी होनी और बरसात बाकी है
ख्वाबों को और डूबना है अभी
कि अभी तो आधी रात बाकी है॥
ऐसा न हो आँसू में चुपके से कोई ख्वाब सरकने लगे
और आँखें उसे ढूंढते ढूंढते यूं भी थकने लगे
लम्हा कोई नमकीन सा,जिंदगी की मिठास में पनपने लगे
अब दर्द से और कौन सी कहनी बात बाकी है?
रूठी सी खामोशियों को अभी मनाकर आया हूँ मैं
और रूठे से लफ्जों को अभी सुलाकर आया हूँ मैं
चलने दे जब तलक चलता है आंखों से आंखों का सिलसिला
अभी तो कहने सुनने को जिंदगी भर की बात बाकी है॥
मैंने तेरे, जिंदगी को लिखे आज सरे ख़त पढ़े
और मुझको मिले तेरे तन्हा से लम्हे बड़े
जो शायद आज तक थे तेरे मेरे दरम्यान खड़े
पर अब यकीं रखता हूँ मैं कि हमारा साथ बाकी है॥

Wednesday, July 15, 2009

और..


मुझको मालूम होता अगर,अपना ठिकाना
तो मैं ढूंढता फिरता न यूं ही सारा ज़माना
मेरी मुश्किल है यही कि मैं अब तलक ख़ुद तक भी नही
तुमसे मिलकर अब हो गया और नामुकिन ख़ुद तक पहुँच पाना !!
मैं आज लिखने बैठा था जिंदगी को ख़त
कि बनती जा रही हो आख़िर क्यों तुम मेरी उल्फत
ऐ जिंदगी!ख़बर नही,तुझसे मेरा वास्ता है क्या?
फिर भी आज मैं चला निभाने क्यों एक रिश्ता अनजाना !!
खफा खफा सा हूँ तुझसे न जाने किस बात पर
दिन की उजली सी धूप पर या कि चांदनी में धुली रात पर
जिनके होने न होने का मुझ पर फर्क नही
क्यों चाहता हूँ उन्ही ख्वाबों में लौट जाना!!
मैं समझता हूँ तुझ से मुझ तक है बस ये कहानी
हाँ,कभी कभी आ जाता है इसमें पानी
तब और महसूस करता हूँ प्यासी सी जिंदगानी
और अच्छा लगता है इसमें बह जाना!!
जब कभी मैं इस समन्दर से निकलता हूँ
और फिर दो कदम यूं ही तेरे साथ चलता हूँ
कहना चाहता हूँ कुछ,तेरी खामोशी में डूबकर
और होता है बस यूं ही चुप रह जाना!!
मैं खोजने तो निकला था अपना ही सबब
पर समझ न चाहता हूँ अब पहले तेरा ही मतलब
आख़िर समझें एक दूसरे को हम न जाने कब?
जब कि तुझको पाना ही हो शायद ख़ुद को पाना!!

Friday, July 10, 2009

रुखी जिंदगी!


ये आसमां क्यों टूटकर बिखरने को है ?
ये जमीं क्यों आसूँओं से भरने को है ?
सिली सिली सी आख़िर क्यों है हवा ?
क्यों सैलाब दिल में उमड़ने को है ?
मोम सा सितारा,चांदनी में था पल रहा
आज क्यों इस तरह से पिघल रहा
आख़िर किसकी लौ में है जल रहा ?
चाँद भी समन्दर में उतरने को है॥
कशमकश में हर रात जागी सी है
नींद ख्वाबों की भी दूर भागी सी है
क्यों होंठ सिलते है जा रहे
और खामोशी बेचैन, बात करने को है॥
क्या हुआ,जो इस तरह सब के सब रो दिए
किस तरह हमने जिंदगी के मायने खो दिए
जी रहे है आख़िर,किस जज्बात से
जब की हर ख्वाहिश यूं भी मरने को है॥
किसी कोने में बिलखती रूह प्यासी सी है ?
जिंदगी टुकडों में बासी सी है
हाँ! जिंदगी की भूख जरासी सी है
रुखी रोटी सी चाह अभी सिकने को है॥

Thursday, July 9, 2009

दर्द!


है दर्द दोनों का एक जैसा
आ मिलकर इसे बाँट ले
जिसको तू चाहे,उसको तू ले ले
आ अपना अपना छांट ले॥
नैनो की बस एक कहानी है
नीला नीला सा पानी है
डूबे है जिसमें हम जैसे
क्या बस यही जिंदगानी है?
कोई रात तो हो ऐसी
जिसको हम जागकर काट ले॥
जीवन का ये कैसा चेहरा है ?
जिसे देख दर्पण भी हैरां है
साया भी धूप में जलता है
कौन कहाँ संग चलता है ?
चल!दो कदम चल के देख लें
एक दूजे का हाथ ले!
ज़ख्म कोई जब सहलाता है
छूते ही हरा हो जाता है
दिखता है जब कोई आँसू
मन कतरा कतरा बह जाता है
ले आ कहीं से नई मिटटी
और मन की बात ले!