कितना मुश्किल है इश्क़ की कहानी लिखना
जैसे पानी से,पानी पे,पानी लिखना!!
कोई मिर्ज़ा दिल का कोई फलक ढूंढें
और साहिबा उसको चाँद तलक ढूंढें
सुना है बहुत निक्कमी है
कमबख्त मिलती ही नहीं
ऐसी मोहब्बत को कैसे भला,रूहानी लिखना !!
सुना है रोज़ मुकर्रर ,दबे पाँव सी निकलती है
एक नदी कांच की, रात के बंजर में खलती है
चलो लफ़्ज़ों का पैबंद लगा दूं तुम पर
नज़्म की हिचकियों को दिल की मेहरबानी लिखना !!
खेल जाना अगर कोई फिर दिल से खेले
गम कोई गोल सा होकर,चाँद की जगह ले ले
सुबकियां हौले सरक जायें, सिसकियाँ यूँ ही न थक जाये
कतरे कतरे को उस नदी की नादानी लिखना !!
वो नदी साहिबा,सरे आम सी मचलती है
देख मिर्ज़ा तेरे खुलूस में ही पलती है
बड़ा ही शोर करती है जो मिलती है तुझसे
एक होकर ज़र्रे ज़र्रे की रवानी लिखना !!