When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Tuesday, April 28, 2009
करवट !
एक कसक है जागने की
ख़्वाबों से दूर भागने की
धुंधला सा न हो जहाँ 'कल'
जिंदगी से जीने की एक नई पहल ॥
रात में चाँद के सँवरने तक
सुबह की धूप के दिल में उतरने तक
एक आंसूं से उम्मीद के भरने तक
कोशिश भरा मेरा एक पल॥
कब तलक भूख को जहन में पाले
खुश रहूं देख कर ये उजाले
न जाने कब सितारे बिखर जाए
जाने कब जाए रात ढल॥
जिंदगी लम्बी है,कहानी छोटी
भारी है एक वक्त की भी रोटी
रात दे जाए चूल्हे को चिंगारी
मन ही भर जाए,गर चूल्हा भी जाए जल॥
बात भूखी है तेरी भी,मेरी भी
हो रही है अब और देरी भी
गर सब्र तेरा न अब तेरे साथ है
तो आ फिर एक ख्वाब तक चल॥
पर मैं तो सपनों से दूर जाना चाहता हूँ
भूखा ही सही,पर फिर नही सो जाना चाहता हूँ
शायद कभी मेरे होसले से
ख्वाब ख़ुद भी ले करवट बदल॥
Friday, April 24, 2009
बेखबर...
ये किस हसरत से, मैं तुम तक चला आया था
मेरा कुछ भी नही तेरे पास,शायद न समझ पाया था ॥
जिंदगी के सूनेपन में,कुछ नही था मेरे मन में
मैं ख़ुद तक भी नही पहुँच पाया था अभी जीवन में
मेरा पता मुझको ही मालूम न था,फिर
अपनी तलाश में,मैं तुम तक ही क्यों पहुँच पाया था?
तेरे वजूद में कभी, अपनी ही तलाश थी
अपने होने का था एहसास,क्योंकि तुम पास थी
दूर तुमसे हुआ था या कि ख़ुद से
बस खाली था जिंदगी से,जब तुमने 'सब' लौटाया था ॥
इस बात से भी बेखबर था कि 'सब' में क्या था?
जो भी पाया था,यूं लगता था कहीं खो गया था
मैं आख़िर क्यों इतना दूर ख़ुद से हो गया था
और क्यों तुम्हे इतने करीब लाया था?
छोड़ ख़ुद को,ऐसे कैसे मैंने तुमको जीया था
हाँ!ये दर्द मैंने ही अपनी जिंदगी को दिया था
किस तरह से मिटाता चला गया ख़ुद को
कि मेरी परछाई में भी बस तेरा ही साया था॥
Monday, April 6, 2009
सबक!
फिर महकेगें लम्हे
उम्मीद के फूलों को
न झड़ने दो
जिंदगी की यादों को
यूं भी धुंधला न पड़ने दो
अजनबी लगे ये तन्हाई
न कर पाए कोई भरपाई
ख़ुद तक कहीं कोई राह दिखे
क़दमों को उस पर बढ़ने दो ॥
मन के इस सूनेपन में
जब कोई शब्द सुनाई न दे
एहसास का कोई बिखरा पन्ना
जब तक तुम्हे दिखाई न दे
जीवन की इस खामोशी को ही
थोड़ा सा पढने दो॥
अपना सा,उसका गम समझो
और अपने गम को कम समझो
उसके कुछ आँसू तुम्हे मिले तो
बारिश की रिमझिम समझो
नाउम्मीद सी इस मायूसी में
एक-दूजे को साथ संभलने दो॥
ये दर्द भरा एक मंजर है
जहाँ वक्त चलाता खंजर है
मरते है रोज यहाँ सपने
इसीलिए सोच भी बंजर है
पर इस बंजर से मन को
तुम यूं ही न मरने दो॥
Friday, April 3, 2009
चाह!!
जब भी पढता हूँ मैं
तुम्हारी कोई भी नज़्म
यूं लगता है पिछली गलियों से
लम्हे बुलाने लगते है॥
मैं जो मुड़कर देखता हूँ
तो यादों की उन गलियों से
कुछ पल भूले से
मुस्कुराने लगते है॥
मैं लौट नही पाता ख़ुद तक
मन जाता है वहीं-कहीं भटक
यूं लगता है,जैसे
वो मुझे,मुझ तक ले जाने लगते है॥
मैं सोच में पड़ जाता हूँ
कि आख़िर मैं कहाँ हूँ
यादों के झरोखों से
भूले मंजर जगमगाने लगते है॥
मैं बोल कुछ नही पाता
न जाने कैसा है नाता
इतने अपने होकर भी
क्यों ये पल अनजाने लगते है॥
एहसास है या उलझन है
या मन तेरा दर्पण
तेरे लिखे एक एक लफ्ज़ में
हम ख़ुद को पाने लगते है॥
जो कलम तेरी चलती है
जैसे जिंदगी मुझसे मिलती है
और इन् मुलाकातों के किस्से
हम तन्हाई को सुनाने लगते है॥
ये दौर नही थमता है
मन यहीं कहीं रमता है
और ऐसे ही हम
तेरी इस कलम को चाहने लगते है॥
उम्मीद!!
चल रहे है कदम
तेरी राह तक ॥
मिट रहे है हम
तेरी चाह तक॥
टूटे से ख्वाब चंद
थे नम पलकों में बंद
बिखरेंगे कभी
तेरी आह तक॥
ख़ुद को भूल जायेंगें
बस तुम्हे दोहरायेंगें
लम्हा दर लम्हा
दिल से जिरह तक॥
बात कोई अनसुनी
जो थी दिल ने बुनी
शायद ले जाए मुझे
तेरी पनाह तक ॥
बस सोचूंगा तुम्हे
मैं जियूँगा तुम्हे
जिंदगी से किसी
भी सुलह तक॥
खामोशी सिल जायेगी
बात मिल जायेगी
वक्त भी पहुंचेगा
किसी वजह तक॥
शाम ढल जायेगी
रात चल जायेगी
उम्मीद खिल जायेगी
किसी न किसी सुबह तक॥
Thursday, April 2, 2009
ख्वाहिश!
न जाने कब से सोचता हूँ मैं
काश जिंदगी कुछ अलग होती
मैं कुछ सीखता हरेक पल से
ये वक्त का नया सबब होती ॥
मैं न शायद इतना तन्हा होता
साथ होती तुम,जहाँ होता
कुछ तो मायने बदलते अपने
न बातें ख़ुद के लिए बेमतलब होती ॥
मैं अपनी ही सोच से उबरता
और तुझ जिंदगी से भरता
अपने लिए न सही,तेरे लिए कुछ करता
काश तुम ही मेरे लिए सब होती॥
रहता एहसास कोई अपना तो है
ख़ुद के लिए न सही,तेरे लिए कोई सपना तो है
जो न देख पाता ख़ुद से मैं
ऐसी कोई ख्वाहिश तुम से जगमग होती ॥
बात सुनता हूँ ये मैं बरसों से
तुझे जीया नही किसी ने अरसों से
ऐसा हो पाता, तो क्या हो तुम मैं बतलाता
न खामोशी से मेरी दुनिया लबालब होती॥
पाता हूँ तुम्हे जब लफ्जों से परे
सोचता हूँ यही,दिल क्या करे ?
जिसके लिए लम्हे,तुम्हारी कल्पना से है भरे
उसका तो बस तुम ही रब होती॥
Subscribe to:
Posts (Atom)