![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJUQcPl9aIPfXiTBKbDlBcNSgDPmcI7YGJHKkSn9cTw5Oa6UPvXno-fYYocUdH56XYHwRDNyu8L5fL9uYmnwgVv0Pa79k-c-rHX5ZV6_71PQ0lQVO_msnmukVIN2j2KuHn8xCC1RWqtfQ/s200/unknown.jpg)
तुम यूँ ही नहीं सब कहते थे
कि बस तुमको फंसना होता था॥
मेरे हर उदास से पल में
न यूँ ही तुम्हारा हँसना होता था ॥
कुछ किस्से, जो न कभी पढ़े
चेहरे पर तेरे छपते थे
मैं अब तलक कहाँ तक चला
जैसे बस तुमसे ही नपते थे
जहाँ मैं खुद भी नहीं रहा
वहांयूँ ही नहीं तुम्हारा बसना होता था ॥
वो रंग जो सिर्फ मेरे थे
जाने क्यों तुम पर भी फबते थे
उन साँसों की गर्माहट में
अनजाने ही नहीं हम तपते थे
वो ढीली ढाली सी बातें
क्यों सब तुमको ही कसना होता था ॥
सोयी सी आँखें रहती थी
जागी सी एक जंग लिये
तुम दूर जाते दिखते थे
ख़्वाबों की पतंग लिये
अम्बर के उस कोरेपन में
तब जीवन को रखना होता था ॥