
मेरी कोशिश है
शब्द अपनी थकन से निकले ॥
कभी तो ये जिंदगी
मेरी कलम से निकले ॥
मुस्कुराये हर ख़्याल
रूठा सा कोई सवाल
हो सके तो
मन की उलझन से निकले ॥
सपने हो जाए सयाने
समय ख़ुद मुझको पहचाने
कि अपना वजूद निखर
हर दर्पण से निकले ॥
न बस कहीं ठहराव हो
और मन की नाव हो
सबके आंसूं बटोरने को
हम अपने गम से निकले ॥
जिंदगी,जिंदगी से भी
और सोच से भी है परे
जी भर जीए यूं हर लम्हा
कि उम्मीद,शर्म से निकले ॥
ये सहमी सी खामोशी चीरकर
कुछ करने को गंभीर कर
लफ्ज़ दिल के मेरे
आवाज बन हर कदम से निकले॥