Wednesday, March 25, 2009

कोशिश.


मेरी कोशिश है
शब्द अपनी थकन से निकले ॥
कभी तो ये जिंदगी
मेरी कलम से निकले ॥
मुस्कुराये हर ख़्याल
रूठा सा कोई सवाल
हो सके तो
मन की उलझन से निकले ॥
सपने हो जाए सयाने
समय ख़ुद मुझको पहचाने
कि अपना वजूद निखर
हर दर्पण से निकले ॥
न बस कहीं ठहराव हो
और मन की नाव हो
सबके आंसूं बटोरने को
हम अपने गम से निकले ॥
जिंदगी,जिंदगी से भी
और सोच से भी है परे
जी भर जीए यूं हर लम्हा
कि उम्मीद,शर्म से निकले ॥
ये सहमी सी खामोशी चीरकर
कुछ करने को गंभीर कर
लफ्ज़ दिल के मेरे
आवाज बन हर कदम से निकले॥

Monday, March 23, 2009

उफ़!!


तुम्हे पाने के लिए
हम जिंदगी की हर ख्वाहिश से परे थे
और तुम्हे खो देने के
हर फासले से डरे थे॥
है अजनबी अब तलक भी
हम एक दूजे से
मगर एहसास ताउम्र
तेरे साथ जीने से भरे थे ॥
मानता हू मेरा दर्द
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा था
मगर आंसूं मेरे
मेरी वफ़ा से खरे थे॥
अनसुना सा था
मेरे दिल का फ़साना
खामोशी की चोट से
मगर अल्फाज़ हरे थे ॥
तू न होकर भी
अक्सर रहा मुझे में शामिल
मेरी तन्हाई के तुझसे
यूं भी रिश्ते गहरे थे॥

Sunday, March 22, 2009

याद..


फिर जीने की चाह हुई
देखा जब तुम्हे यादों के झरोखे से ॥
फिर बिखरे मन के पन्ने
तेरी एक झलक के झोंके से ॥
वो क्या दिन थे
जब छुप छुप कर
हम तुमको देखा करते थे
अपने दिल के कुछ लफ्ज़
खामोशी में लपेट कर फेंका करते थे
और रोक नही पाते थे ख़ुद को
ख़ुद के ही रोके से ॥
वो भी क्या रातें थी
बस जब तुमको सोचा करते थे
सपनों की बस्ती में
तुमको ही खोजा करते थे
निकल नही पाते थे तुमसे
औरों के भी टोके से ॥
पाया भी नही कि पहले ही
खोने से डर लगता था
तेरे होने से जिंदगी का वजूद भी
बस लम्हा भर लगता था
कुछ लम्हों में सिमट गई थी
अनकहे प्यार की कहानी
सब मिटता चला गया
समय के धोखे से ॥

Tuesday, March 17, 2009

दोहराव..!


मैंने चाहा तो बहुत
जीना जिंदगी को हर दाँव से
सैलाब को खेना
वक्त की नाव से
हाँ, गहराई तक जाने की जिद थी
पर डर भी लगता था बहाव से
मैं रोज बनाती थी मिटटी के घर
और ढहा भी देती थी नँगे पाँव से
अच्छा भी लगता था लहरों को छूना
अछूती नही थी मगर सपनों के लगाव से
हर पल,हर लम्हा ऐसा हो,वैसा हो
शायद अक्सर ही की ये बातें चाव से
नींव ही कच्ची थी जिंदगी की
तभी तो सब जीया बस भाव से
जाने कहाँ छोड़ आई हूँ ख़ुद को
कि लगता है डर,वक्त के घाव से
ये किस दोराहे पर खड़ी हूँ मैं
दो हिस्सों में बँट गई हूँ अब तो दोहराव से






Saturday, March 14, 2009

ऐ जिंदगी..


थम जा, जिंदगी..थम जा!!
मुझे मेरे होने का मतलब समझा ॥
देख संग मेरे रातों को जागकर
क्या मिलेगा ख्वाबों के पीछे भागकर
टूट जायेंगें ये,छूट जायेंगें ये
सुबह की हमसफ़र अब बन जा॥
बनकर चमकाएगी आंसुओं को
कब तलक मोती
जो अँधेरा ही न मिटा सके
ऐसी भी क्या ज्योति
मन की किसी उम्मीद से छन जा॥
आ जरा हर दिल तक लौट चल
साथ दे तो हर मुश्किल हो जाए हल
तेरे संग शायद मैं भी जाउं संभल
मेरी भी कुछ तो तू सुन जा ॥
मैं तेरी खोज में
तू मेरी तलाश में
रह जाए न यूं ही
अधूरी सी आस में
छोड़ भी दे अब आंखों से बुनना
मन से भी कुछ बुन जा॥

अगर ..


अगर मुझ पर तेरी किसी भी बात का असर होता
तो शायद न मैं जिंदगी से बेखबर होता
न फिरता इधर उधर ठिकाने की तलाश में
तेरे दिल में ही सही,मेरा कोई तो घर होता ॥
न मैं ख़ुद से परेशां होता
न तू मुझसे जुदा होता
कहीं,कुछ होंसला होता
कि थोड़ा आसां सफर होता ॥
कोई होता मेरे करीब
तो न लगता इतना अजीब
ख़ुद की कीमत नही तो
कम से कम उसको खोने का तो डर होता ॥
जो आज मुझको है कुछ भी कहते
वो सब चुप तो रहते
खता हुई है मुझसे
न ये एहसास उम्र भर होता॥
किसी का प्यार ही मिलता
या कि कोई मुझ पर रोता
पर शायद उसके होने से
मैं भी आज कुछ होता ॥

Friday, March 13, 2009

न जाने...


कुछ बूँदें जागी
बारिश के शोर से
कोई पत्ता भी हिला था
किसी छोर से !!
मैंने देखा उधर
जीया था जो उम्र भर
वो ख्वाब भीगा जा रहा था
इस रुत में जोर से !!
पलकें नम भी थी
नींद कुछ कम भी थी
फिसल रहा था लम्हा
ये किस ओर से !!
रात खाली पड़ी
ये बैचेनी हर घड़ी
बंध नही पा रहा क्यों
सब समय की डोर से !!
सरसराहट हुई
कोई आहट हुई
धूप खिली
ख्वाब लिपटा नई भोर से !!
चांदनी धुल गई
आँखें खुल गई
कैसे गुजरी जिंदगी
न जाने उस दौर से!!