When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, August 28, 2009
अब और...
वो ख्वाब,वो मंज़र तो एक बहाना था
हकीक़त तो ये है कि मुझको,तुम तक आना था।
नही जानती इस तरह से क्यों चली आई थी मैं ?
पर ऐसा लगता था जैसे तुमको कुछ लौटाना था।
जिन्दगी सुलगती जा रही थी हर कश में
यूं था जैसे कि मैं ख़ुद नही थी,अपने बस में
बढ़ रहे थे कदम जैसे अनजान राहों पर
और मकसद इस भीड़ में ख़ुद ही को पाना था।
यकीं करो,कोई एहसास नही था पहले ख़ुद को खोने का
जब तलक एहसास था इर्द-गिर्द तेरे होने का
मैं तुम में जिंदगी की ख्वाहिश पा रही थी
और इसी ख्वाहिश में ही कहीं मेरा ठिकाना था ।
जब तंग आ गई थी मैं,तुम में अपनी खोज से
दबने लगी थी कहीं न कहीं ऐसी ख्वाहिशों के बोझ से
यही सोचा कि अब सब कुछ तुमको ही लौटा दूँ
आख़िर कब तक जिंदगी को यूं ही बिताना था ?
मैं जलाकर आई थी ख्वाबों का घरोंदा
जिन्हें देख जागती रातों का मन भी था कोंधा
मैंने जिंदगी को था झूठे सपनों से रोंदा
मुझे ख़ुद को अब और ऐसे नही दोहराना था ।
Friday, August 21, 2009
सोच!
तू जिंदगी की कड़वाहट को
होठों पे रखता है क्यों?
कि हर बार बस आँसू को
ही चखता है क्यों?
घोल आया है कहाँ
ख्वाहिशों सी मिश्री ?
दिल के मीठेपन को
इस कदर तरसता है क्यों?
डूबने को है तेरी आंखों में ही
कोई शाम सुहानी ।
है कोई उम्मीद पनपने को
जैसे सुबह रूहानी ।
ये बता दे कब तक छाए रहेगें
गम के बादल ।
फलक ,हालत पर तेरे
आख़िर बरसता है क्यों?
यूं कब तलक तन्हाई को
लगाके गले ।
तेरा होना आख़िर
ख़ुद तुझी को खले ।
वहां किसी ख्वाब को
मुस्कुरा के तो देख ।
जहाँ बस जिन्दगी की
आह पले ।
मैं अब तक सोच में हूँ
तू भी सोच के देख ।
तेरा साया,तुझ पर ही
हँसता है क्यों?
तू चला जाए बिन कहे
और खामोशी न रोये ।
ये बेजुबां से तेरे अल्फाज़
न मासूमियत खोये ।
इसी डर से हर सवाल
दोहराता हूँ मैं
मगर तू जवाब से पहले ही
थकता है क्यों?
Tuesday, August 18, 2009
शामियाने!
कोई आंसूं पूंछें मेरे,कोई लगे दर्द सहलाने
कोई मुझे ख़ुद सा समझें और लगे चाहने
ऐसा ही कोई अपना सा ढूँढता फिरता हूँ
जो सिखा दे जीना,इस जिंदगी के बहाने ....
अब नही भाते रेत में से चमकते मोती
काश इतनी ही कदर इन आंसूओं की होती
न प्यासा सा यूं ही रह जाता मन
सपने हो जाते वक्त से पहले ही सयाने ...
मेरी,मुझसे ही अगर बात करता कोई
झूठे ख्वाबों में न बरबाद रात करता कोई
मैं जाग जाता एक नई सुबह से पहले
और समझ जाता ख़ुद के होने के मायने ...
मैं क्यों समझा नही,डरता रहा पानी से
क्यों उबर पाया नही,गम की जिंदगानी से
काश एक बार उतर जाता इस समन्दर में
तो शायद लगते ये नमकीन आंसूं भी भाने ...
ऐ जिंदगी!आख़िर तू नमकीन कब नही?
मेरे लिए तो तू बेरंग सी अब नही
धीरे धीरे रंग घुल रहे है वजूद में
दिख रहे है चमकते से फलक के शामियाने ...
Monday, August 10, 2009
दौर..
वो दौर कुछ अलग भी था
मेरे पास तुम न थे मगर और सब भी था ॥
जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
तुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
मन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
ये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥
तारों से जगमगाते थे तब सूनी रातों के दीये
मैं ख़ुद में ही रहता था बस अपने सपनों को लिए
तुम क्या मिले जैसे मैंने वो सारे सपने खो दिए
एक ख्वाब मिला तुमसे नया,जहाँ तेरे होने का सबब भी था॥
Friday, August 7, 2009
हो सके तो.........
जो ख्वाब देखा था अक्सर
भर लिया था जीवन में ।
हर तरफ़ बह रहा था जैसे
बस तू ही मन में ।
आज चुभा कोई लम्हा
और तू फिर भर आया है ।
आंखों के सामने तो बस
धुँआ ही छाया है ।
जब भी होता है ऐसा
तू ही मन से रिसता है ।
ये इन आंखों का
इस ख्वाब से कैसा रिश्ता है ?
ये रिश्ता ख्वाब से है
या कि उस धुंधलेपन से,
जो आंखों में भर रहा है
पूछती हूँ बस मन से ।
मेरे मन ने आज
फिर से मुझे समझाया है ।
ये धुंआ है इस लिए
कि शायद कोई ख्वाब फिर सुलग आया है ।
अगर कोई ख्वाब मेरा
फिर से जला रहे हो तुम ।
इतना है बस इस धुएं में
खोए से नज़र आ रहे हो तुम ।
हो सके तो ख़ुद को,मुझको
या कि सब कुछ सुलगा दो ।
और तुम्हारे पास मेरा जो भी है
सब जला दो
सब कुछ जला दो.....
Thursday, August 6, 2009
चाह!
तेरे एहसास भर से
एक दर्द उभर जाता है !!
सोचती हूँ तुझे तो
जैसे मन भर जाता है !!
भूल पाऊँ अगर तो
सब कुछ भुलाना चाहूं !
मैं बिन तेरे
हर हाल में मुस्कुराना चाहूं !
पर जो सुकूं दे
वो एहसास ही मर जाता है!!
तू कोई वादा न कर
तू निभा न पायेगा !
फिर ये दिल रोयेगा
और तू हंसा न पायेगा !
सोच हर आँसू जैसे
ख़ुद में सिहर जाता है !!
तेरी दुनिया में
मेरे होने का एहसास कहाँ ?
हैं तेरे पास सभी
पर तू मेरे पास कहाँ ?
ऐसे ही कुछ सवालों से
मेरा वजूद बिखर जाता है !!
आज बिछडे भी हो
पर शायद फिर कभी संग होंगें !
इस कोरेपन में
छिटके से मेरे रंग होंगें !
इसी ख्वाहिश को जिये
वक्त गुजर जाता है !!
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