When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, July 30, 2010
'जिंदगी' और मैं!
वो जी रहा था 'जिसे'
मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
परत दर परत बुनी उस कहानी से
मेरे मन का बादल भी उमड़ रहा था ॥
बरस रहा था मन में होले होले
कुछ रंग कल्पनाओं के घोले
और मैं बस भीगता जा रहा था
वो रंग अब मुझ पर भी चढ़ रहा था ॥
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥
Monday, July 26, 2010
एक कलम..!
मैं भटकी हूँ दर दर
जिंदगी के लिये फकीर सी !!
बह गयी आँसूं बन
हर आरज़ू नीर सी !!
हाथ में थी बस कलम
"आह" ज्यादा,लफ्ज़ कम
लिख गयी दर्द को
अपनी तक़दीर सी !!
मैं न रीझी कभी
हीर-रांझे सी प्रीत पर
मैं न झूमी कभी
किसी प्रेम गीत पर
मैंने हर व्यथा बुनी
बस जिंदगी की रीत पर
और बन गयी वो व्यथा
मेरी ही तस्वीर सी !!
मैं सोच में न थी
अपनी किसी भी हार पर
मैं न रुकी कभी
किसी अधूरे प्यार पर
जो भी कहा था बस
सच की धार पर
मेरी सच्चाई बन गयी
मेरे लिये जंजीर सी !!
ऐ! रब भरके भेजे
जब भाव तूने रग में
मैंने वाही बांटा सबसे
तेरे बेदर्द जग में
मैंने बस वही लिखा
जो ख़ामोशी कहती गयी
मैंने बस मिटानी चाही
दिलों में खिंची लकीर सी !!
#कुछ अल्फाज़ ...अमृता प्रीतम जी के नाम#
Thursday, July 22, 2010
क्यों दिखती नहीं वो..
वो मुट्ठी बंद थी एक रोज से
जो जब तब खुल जाती थी
वो भी कोई दौर था
जब जिंदगी आबो-हवा में घुल जाती थी ।
वो एक ख़्वाबों की खुसफुस
जो बड़ा शोर करती थी
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
न था ऐसा कभी कि
हसरत यूँ ही फिजूल जाती थी ।
एक कोरे से मन पर
जाने कितने रंग रहते थे
फलक के कुछ तारे
रात दिन संग रहते थे
एक झोंकें में अनगिनत
ख्वाहिशें झूल जाती थी ।
रात के तकिये तले से
चुराते वो नानी के पोथे
गहरी नींद के दरिया में
वो चाँद संग गोते
हाँ!कभी कभी अपनी जगह
परियां भी स्कूल जाती थी ।
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी
वो मुझ में इतना खोयी थी
कि खुद को भूल जाती थी ।
पर अब किसने बो दिए
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
बड़ा मासूम सा दिल है
कहीं कोई तो मुश्किल है
पूछता है 'अब क्यों दिखती नहीं वो '
'जिंदगी पहले तो रोज मिल जाती थी' ॥
Monday, July 19, 2010
नज़्म!
वो एक लिबास ख्वाब का
जिसे पहनकर तू फबता था
कि तेरी उस चाशनी में वो फीका सा चाँद
किस तरह से दबता था
रोज करता था शिकायत
रोज एक नयी रवायत
रात के इश्क में किसी
दीवाने सा जलता था ॥
एक अम्बर का चुलबुला
दूजा मेरे मन का बुलबुला
मुझे दोनों की फिक्र थी
तो सारी रात जगता था ॥
बड़े कच्चे से थे धागे
कहीं उलझे,कहीं टूटे
लफ़्ज़ों की गिरफ्त में
मैं दोनों को ही रखता था ॥
एक ऐसी नींद बुनता था
जहाँ दोनों ही सो जाये
और फिर सारा जहाँ
ख्वाब की चाशनी में
गोल सी वो नज़्म चखता था॥
Tuesday, July 13, 2010
इश्क!
तब भी सुनता था एक राँझा था ..एक हीर थी
तब भी शायद अब सी ही इश्क की पीर थी
वो एक आह जो दो दिलो में घुला करती थी
मुझे मालूम है जिंदगी की खिड़की किस और खुला करती थी
और किस तरह सरकता था चाँद आहिस्ता आहिस्ता
खींचती रोज यूँ ही हसरतों की ज़ंजीर थी॥
ख्वाबों के टेढ़े-मेढ़े से रस्ते कभी हुए नहीं सीधे
रब बदला,नए कलमे ने गढ़े सदियों ही कुछ कसीदे
मैं भी ऐसे ही कुछ दूर तक अभी चलकर ही लौटा हूँ
आज आईने में मैं ही नहीं था कोई और तस्वीर थी॥
सोच में फंसा था कि क्या अक्सर ही इतना शोर होता था
जब ऐसे ही खुद की जगह कोई और होता था
इसी सवाल के जवाब में जब उलझा था मैं कहीं
लिखी जा चुकी इश्क की फिर एक नयी तकदीर थी॥
Tuesday, July 6, 2010
एक ख़त!
एक ख़त तुम्हारा
या जिंदगी का एक टुकड़ा
जिसमें लिपटा चाँद
मन की आंच पर रोटी की तरह सिक रहा है
सदियों से प्रेम का भूखा
कोई ख्वाब इंतज़ार करता दिख रहा है
मैं रात को भी न्योता दे आया हूँ
कह आया हूँ,आ जाना
बाँट लेंगें सब बराबर बराबर
एक कोर जिंदगी का तुम भी खा जाना
अरे हाँ!ख़ामोशी से तो कहना भूल ही गया
अब समझा क्यों लफ्ज़ चीख रहा है॥
रुको लेकर आता हूँ दर्द के दोने
नींद सुलग जाये तो अच्छा है
सब जागे रहे,जाये न कोई सोने
मैं कुछ तन्हा से लम्हे
देखो खरीद लाया हूँ
आज बहुत सस्ते में वक़्त बिक रहा है॥
आ जाओ सब, अपना अपना कोर ले लो
कम पड़ जाये तो मुझसे और ले लो
मगर खा लो जी भर
रह न जाये कोई कसर
ताकि मैं जवाब में लिख दूं
अब ख्वाब,'तुम बिन' जीना सीख रहा है॥
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