वो कुछ खामोशी के टुकड़े
पड़े है इस तरह उखड़े
कहानी एक सदी सी है
ज़ुबान जैसे नदी सी है!
यूँ ही बनती-बिगड़ती है
कभी जो दिल पे पड़ती है
कहीं आढी-कहीं टेढ़ी
चलो कुछ जिंदगी सी है !
तिकोने दिन बरसते है
उन्ही बातों पे हंसते है
कि जिनमें बेरूख़ी सी है
हाँ कुछ बेखुदी सी है!
वो हिस्से भी सुनहरे है
जो हम दोनो ने पहरे है
नही यूँ ही चमकते है
दिलों में रोशनी सी है!