Thursday, March 15, 2018

मेरी खामोशी....


                     


तेरे ही जिक्र की जासूसी मेरी खामोशी है।
रहूं मैं चुप क्यूँ, तेरी बातों सी मेरी खामोशी है।।
हरफ हरफ से लम्हे जो बिखर जाते है।
पता चला है कि हम तन्हा भी मुस्कुराते है
मुझमें जैसे तेरी यादों सी मेरी खामोशी है।।
सिरहाने रख अपनी कुरबत,ख्वाब खटखटाते हो
रात से कह भी दो आखिर तुम क्या चाहते हो
तेरे दिल के ही इरादों सी मेरी खामोशी है ।।
देख लो आज रंग तेरे उन्स का जो पहना है
कुछ अलग सी हूँ,ये कायनात का भी कहना है
हां बिल्कुल, तेरे जज्बातों सी मेरी खामोशी है।।
जो इस तरह भी मेरी ज़िंदगी यूं कट जाये
ये मुमकिन है लफ्ज मेरे, तेरी चुप्पी भी रट जाये
कोई कहता है तेरे वादों सी मेरी खामोशी है।।