Friday, November 28, 2008

आख़िर क्यों???


मेरे मौला मुझे जवाब दे
कहाँ तू है ?
तेरे इस मुल्क में
खुदाई का कत्ल रोज होता क्यूँ है ?
क्यों मारता है रोज मोह्हब्बत को
नफरत का खंजर
क्यूँ होते जा रहे है
अपने दिल बंजर
ये बता, जहाँ इश्क है तेरा
वहां दहशत कोई बोता क्यूँ है ?
क्यूँ टूटता दिख रहा है
ज़मीं का सब्र
कौन खोद रहा है यहाँ
जिंदगी की कब्र
चुभते जा रहे है
ये मंजर आंखों में
न पूछ दिल से
आख़िर ये रोता क्यूँ है ?
कई रोज हो गए
पसरे है सन्नाटे
रोज एक दूसरे से कब तक
अपनी खामोशी बाटें
हाँ वक्त हो गया है
सोच को मरे
अब समझा ख्वाब
दर्द ओढ़कर सोता क्यूँ है ?
न जाने ऐसे ही कितने ख्वाब
थे आंखों ने बुने
न जाने ऐसे ही कितने सवाल
पड़े है अनसुने
कि जिनको तूने
इसां बनाना चाहा था कभी
आज वो सब छोड़कर
खुदा बन बैठा क्यूँ है ?
आ गया है ये क्या
तेरे मेरे दरमया
खत्म होगा कभी
क्या ये फासला
है तू गर कहीं
रोक ले इसे यहीं
खौफ के शहर में
तू अपनी हस्ती खोता क्यूँ है ?
बुझ रहे है चूल्हे
जल रहे है घर
ऐ खुदा !मेरे
अब तो तू ही कुछ कर
हो न जाए कहीं
तुझसे रुसवा ये मन
तंग दिलो में
सिमटने लगा है बचपन
दुआओ में न भरने दे
अब लाल रंग
अब यहीं थम दे
सरहदों की जंग
जब बुझा नही सकता
ये प्यास बरसों की
ऐसा अश्कों का समन्दर
सदियों से तू ढोता क्यूँ है ?

Thursday, November 27, 2008

तमन्ना!!


मैं नही औरों की तरह
आसमा के लिए !
मैं बुनना चाहता हू तेरे संग
कुछ इस जहाँ के लिए !!
अपनी खामोशी में
मेरे भी कुछ लफ्ज़ घोल लो !
शायद कुछ खूबसूरत हो
एक नई दास्तान के लिए !!
मैं तुम्हारी सादगी में
देखता हू बहुत कुछ !
तुम्हारी अनदेखी काफी नही
मगर इस खता के लिए !!
कि एक बार अपनी मासूमियत से
परदा उठा लो !
इतना अजनबी होना अच्छा नही
बेवजह के लिए !!
मेरी बेकरारी को
तेरे सुकून की है ख़बर !
कुछ न कुछ मुकरर है
मेरी सजा के लिए !!
ये इश्क है तेरा
या की है कोई सितम !
कि दिल तरसने लगा है
अब एक "आह" के लिए !
पर मैं इल्जाम न दूंगा
अगर थोड़ा रहम खाओ !
इतना फासला भी अच्छा नही
हर जगह के लिए !
न ख़्वाबों की तमन्ना
न उम्मीद से जुस्तजू
मांगता हू रब से तुम्हे
अपने खुदा के लिए !!

तड़प!!


मैं कब तलक दू बता
तेरी खामोशी का साथ
वो अधूरे से लफ्ज़ तेरे
अक्सर करते है मुझसे बात !!
मैं बेचैन होता हू
तेरी यादों में खोता हू
देखता रह जाता हू
बस अपना खाली सा हाथ !!
जिंदगी था तेरा होना
अब खाली है कोना
वहां बैठकर गिन रहा हू
तेरे कहे आखिरी अल्फाज़ !!
तुझसे बिछड के
ख़ुद से भी जुदा हो गया
बुला ले मेरी रूह को भी
देकर अपनी रूहानी आवाज !!

फिर और फिर !!!


तेरी उन्ही बातों का सिलसिला
अब फिर से शुरू तो नही
बीती मुलाकातों का अधूरापन
कहीं जुनू तो नही !!
मैं मांगता हू लम्हों से
होंसला सदियों का
कहीं तुझको भी
जिंदगी जीने की फिर जुस्तजू तो नही !!
मैं फिर रहा हू फिर
अपनी तलाश में
मुझे ये डर है कहीं
मैं फिर तेरे रु-ब-रु तो नही !!
मेरा एहसास रोज
जीकर मरता है
कहीं इसमे तेरे होने की
खुशबू तो नही !!
मुझे रिहाई दे दे
अपनी जिंदगी से
कि जिसको जी रहा हू मैं
वो कहीं तू तो नही !!
उलझ रहा है क्यों
तुझ में फिर से मेरा मन
कि फिर एक बार
उसी खता की आरजू तो नही !!

Wednesday, November 26, 2008

अक्स!


जब कभी तू मेरे ख्वाबगाह से निकले
यूं लगता है जैसे तू बनके नई सुबह निकले
जिसकी रोशनी से रोशन थी राते मेरी
अब उसके उजाले में दिन मेरा निकले !!
तेरी हँसी बिखरती है बनके ओस के मोती
तू रोज नई चाहत मुझ में है बोती
एक तमन्ना है तुझको छूने की
सोचता हु तो साँसों से बस आह निकले !!
जब भी गुजरती है तू मेरी तन्हाई के पास से
मैं चल देता हू पीछे तेरे ,अपने एहसास से
और कहकर आता हू यही अपनी आस से
न तू अजनबी की तरह निकले !!
तुझको पहचानने लगे अब मेरे सारे सपने
और जो बुन रहा है दिल ,वो भी है तेरे अपने
मैं तुझे पाने के लिए आ गया हू ख़ुद से दूर
अब तो बस तेरे होने का पता निकले !!
मेरी खामोशी रोज कुछ कह जाती है मुझे
मैं लफ्जों से क्या कहू जब देखा नही तुझे
मैं रोज साफ़ करता हू अपने दिल का आइना
कि किसी रोज तेरा अक्स न शायद धुन्धुला निकले !!

Thursday, November 20, 2008

काश!


तुम मजबूर करते और न हम ही लिखा करते
ये लम्हे यूं ही बस ख़ुद के साथ बीता करते !!
ये ज़ज्बा आख़िर तो तुमने ही जगाया मुझ में
ये लिखना आख़िर तुमसे ही आया मुझे में
फिर आज फिक्र क्यों,गर हर शब्द आज फ़साना बन गया
अच्छा होता पहले ही, गर ये एहसास दिल में छिपा करते !!
मुझे किसने सिखाया, हरेक शब्द सजोना
तुमने ही बताया, प्यार का जिंदगी होना
आज कैसे तुम्हारी बातें फीकी सी है
काश! न मेरी खामोशी को तुम इतना मीठा करते !!
जो कल तक ढूँढती थी कुछ,वो खाली सी निगाहें
आज क्यों खोजती आती है नज़र तन्हा सी राहें
हमको भी नही मिला कहने का कोई और बहाना
वरना तुम इतने चुपचाप न दिखा करते !!
हमने बेकार ही चाही लफ्जों से खुशी
कि बेकरार सी रहती थी देख तुमको खामोशी
इस बहाने ही सही, तुम से मुलाकात तो होती
तुम्हारी एक हँसी से जीना हम सिखा करते !!

Wednesday, November 19, 2008

"शब्दहीन"


तुम्हे इस जिंदगी का गीत कहूं
या अपने प्यार से महकी सी कविता कहूं
चाहत के रंगों से भरी ग़ज़ल कहूं
या जिंदगी से जिंदगी का सिलसिला कहूं
रोज लफ्जों से कशमकश
हर लम्हा देता है मुझे पे हंस
और कहता है कि मैं तुम्हे
वक्त का सबसे दिलकश लम्हा कहूं
जब कभी, मुझसे मिलती है तन्हाई
ये कहकर मांगती है रिहाई
छोड़ दो अब मुझे,वजूद मिल गया तुझे
तो क्या मैं तुम्हे, ख़ुद का होना कहूं
हाँ! यही है जवाब
तो फिर क्यूँ उलझी हू मैं इस सवाल में
मैं रखना चाहती हू तुम्हे,हर शब्द से परे
और सोचना नही चाहती कि क्या कहूं..
:) :) :) :) :)

उड़ान!!!


काट न दे कहीं कोई तेरी सोच के पर
लिख दे सब कुछ खामोशी पे,खो न जाए ये अवसर !
वो बीता हुआ लम्हा,हर लफ्ज़ जीता हुआ लम्हा
आज नजदीक है तेरे,जरा ले उसकी भी ख़बर !
वो तेरी सोच के मोती,जिंदगी पहन खुश होती
ऐसे मंज़र की खूबसूरती पे है लोगो की नज़र !
वो तन्हाई के किस्से,लेकर अपने अपने हिस्से
हर लम्हा चल दिया है वक्त के घर !
वहां महफिल लगे शायद ख़्वाबों की
कर जाए कोई लम्हा,सब पर असर !
बात पहुंचे किसी ख्वाब तक भी बहुत
बात बस रह जाए एक बात भर !
आजमा ले जरा अपने एहसास को
सोच की उड़ान में न रह जाए कोई कसर !!

Tuesday, November 18, 2008

कभी.?.


किसी एहसास को अपने गले लगाया है कभी
क्या देख तुमको कोई गम मुस्कुराया है कभी
दर्द से सुनी है क्या कभी खुशी की दास्तान ?
या जी गया तेरी मेरी जिंदगी कोई दो पल का मेहमान
ये एक सवाल रोज मेरे साथ रहता है
क्या इसका तुम्हारे पास कोई जवाब आया है कभी ?
क्या लिखी है कभी तुमने समन्दर को चिठ्ठी
कि आजकल नम भी हो पाती नही आंखों की मिटटी
ऐसा लगता है कोई ज़ज्बा मर सा गया है, सोचा है
उस ज़ज्बे पे एक कतरा तुमने क्यों नही बहाया है कभी ?
मेरे चारो तरफ़ उड़ रहे है ख्यालों के परिंदे
और ढूंढ़ रहे है मुझे तन्हाई के बाशिंदे
मैं छुप क्यों रह हू आख़िर अपने आप से भी
क्या तुम्हारा अक्स भी तुम्हे आईने से दूर लाया है कभी ?
मैं हैरान हू ,परेशान हू
ख़ुद ऐसे सवालों से
और जैसे मुझ पर हंसा
कोई जवाब तुम पर मुस्कुराया है कभी ?

नसीहत !


ये रिश्ता जो बुन रहे हो
इसको न उलझने देना
कभी अपनी तन्हाई को
हो सके तो सुलझने देना !!
तुम खो न जाना
दुनिया के शोर में
जिंदगी के साज़ को
दिल की आवाज पर बजने देना !!
ये सन्नाटे भी है अपने
पर न खामोश हो जाना
किसी महफिल में लफ्जों को भी सजने देना !!
ये दिल कितना ही हो ग़मज़दा
फिर भी कर लेना एक खता
किसी खुशी को अपने गम पे हँसने देना !!
कर हासिल कुछ होने में
ख़ुद को पाने में या खोने में
चाहे कर इश्क और हो जा एक
पर ख़ुद को ख़ुद में न सिमटने देना !!
दे होसले को अपने जिंदगी
बना ले उम्मीद को बंदगी
पर एक बार समय की धरा पर
ख़्वाबों को अपने बसने देना !!
जो बह जाए तो बस पानी
कुछ कह जाए तो कहानी
कि हर एक कतरे को
आंखों में यूं ही न चुभने देना !!

"सिलसिले"


तेरे दिल से मेरे दिल तक
जो एक सिलसिला चला
यूं लगा जैसे मोहब्बत का
एक काफिला चला
उसमें आरजू भी थी
जिन्दगी की जुस्तजू भी थी
जैसे कि साथ अपने
अपने ही दिल का फलसफा चला !
उसमें कुछ उमंगें भी थी
मन की पन्तंगे भी थी
और ऐसा लगा कि
रूह संग, खुदा चला!
इंतज़ार की कतार में
एक दुसरे के प्यार में
वो अजनबी सा वक्त
बन के रहनुमा चला!
तेरी चाहत चली
मेरा ज़ज्बा चला
गुमशुदा ख़्वाबों को हासिल करने सा
हौंसला चला!
लफ्ज़ खामोशी में उलझे
न जाने ये अफसाना कहाँ सुलझे
तुम्हे देखा तो लगा
मेरे संग मेरा आइना चला !
वहां अब भी भीड़ है
और है बातों का झुरमुट
वहीं कहीं से तो ही
जिंदगी का कारवां चला !

Monday, November 17, 2008

उम्मीद..


वो सुबह से धुली
लिये चाहत खुली
सिमटी अपनी ही आस में
फिर ख़ुद की तलाश में !
वो बातों के टुकड़े
जो तन्हा से है पड़े
उनको फिर से जोड़कर
पहुँची तन्हाई के पास में !
वहां जिंदगी मिली
गीली हर खुशी मिली
उन्हें वक्त की धूप में रख
रंग भरने लगी नए,हर एहसास में !
वो लम्हा बोने लगी
जिंदगी होने लगी
जैसे बेचैन ख़ुद ब ख़ुद
प्यार की प्यास में !
उसको एक ख्वाब मिला
अधुरा सा जवाब मिला
वो लगी उसको पुरा करने
जैसे हर एक साँस में!!

ख्वाब!


जुड़ता है जब कोई ख्वाब किसी रात से
जी उठता है एक अधूरी सी जिंदगी उस मुलाकात से
भर जाता है हर लम्हे में जीने की कसक
और दे जाता है बैंचैनियौ को सबक !
करता है वक्त के हर फैसले में दखल
रोज मन से जिरह और जीने की पहल
नही समझता वक्त की बेरुखी
हर उम्मीद पे जताता है अपना हक !
लम्हा दर लम्हा देता है दस्तक, हर ख़्याल पर
ख़ुद भी उलझता है, मन को भी उलझाता है हर सवाल पर
देख पता नही सच के आईने में ख़ुद को
और खोलना चाहता है मन की हर झिझक !
कौन समझाए, वक्त का पल पल है कितना कठिन
जिसकी रात न हो सकी,आख़िर उसका क्या होगा दिन
जिसका होना कुछ नही बंद आंखों के बिन
वो रखता है खुली आंखों से जिंदगी देखने की ललक !
जो रखता है वक्त से रिश्ता पल पल का
करता है रोज इंतज़ार एक नए कल का
होकर रह जाता है नमकीन और ग़मगीन
बिखरने पर नम आंखों का स्वाद चख !
मन सिमटकर बह जाता है जब आंखों से
वो कहता है न बातें करना अब रातों से
रखना उम्मीद तो बस सच को देखकर
और ये कहकर जिंदगी की गोद में पड़ता है फफक !

Monday, November 10, 2008

मजबूरी !!

जब कभी लम्हे यादों में बहा करते है
तब हम ख़ुद से बस ये कहा करते है!
आज फिर बीती हुई घड़ी जी आया
कुछ पल आज के बीते पलों में सी आया
मुस्कुराया भी और रोया भी था वहां
देख आया भी अब वो हसरतें है कहाँ
जिन्हें पल पल तब हम सजोया करते थे
पूरे होंगे ये खवाब सोच खुश होया करते थे
पर आज जब इनको इस तरह देखा करते है
तो यूं लगता है कहाँ ये दिल से वफ़ा करते है!
वहां पड़े थे ख़ुद को लिखे बिखरे से ख़त
और लगे थे वक्त के पहरे भी सख्त
वहां न जाने कितने सारे गम थे
मुझे देख के सब के सब नम थे
फिर भी लगा की वक्त से इनके रिश्ते कितने गहरे है
और इनकी फिक्र हम बेवजह ही किया करते है!
आज उलझनों की गिरफ्त में है मन का परिंदा
फिर भी अब तलक एक लम्हा मुझ में अब भी है जिन्दा
उस लम्हे में जिंदगी अब भी इंतज़ार में है
वो शायद अब भी उस वक्त के प्यार में है
आख़िर क्यों इस मोहब्बत की सजा हम ख़ुद को दिया करते है
जिंदगी छोड़कर वक्त को जिया करते है ..


Sunday, November 9, 2008

बूँद!



वो घुली है शाम के रंग सी मुझ में
और ताजी है जैसे कोई धुली सी सुबह निकले !
वो भरी है उजली सी मेरी निगाहों में
और आहों में जैसी सौंधी सौंधी सी हवा निकले !
वो जब भी आकर के बैठी है मेरे पहलू में
यूं लगा जैसे दिल से जिंदगी का कोई फलसफा निकले!
मैं जल रहा हु रोज मोम सा उसकी चाहत में
मेरे एहसास मोहब्बत की लौ में इस तरह पिघले !
मैं जो आज तुझसे इतनी मोहब्बत करने लगा
काश तू ही अब मेरा खुदा निकले!
मैं सजदा करू,दुआ करू तेरे दर पर
मेरी जिंदगी का तू ही रहनुमा निकले!
मेरा दिल देखना चाहे तुझ ही को बार बार
अब तो बस तू ही इस दिल का आइना निकले!
मेरी रूह प्यासी है और तू वो बूँद है
जिसमें भीगा भीगा दिल का हर ज़र्रा निकले!!





खामोश लफ्ज़!!



जुबां खामोश है
अब दिल से क्या बयां करे
क्यों आज अपनी ही खामोशी को रुसवा करे!!!
लफ्ज़ ख़ुद इतने जज्बाती हो उठे है
कि बात ठीक से निकले, इतनी वफ़ा करे!!!
कुछ वो कहें अपनी, कुछ तुम कहो अपनी
एक लफ्ज़ दूजे लफ्ज़ से मोहब्बत बेपनाह करे !!!
ज़र्रा ज़र्रा दिल का हो जाए रोशन
गुफ्तगू दिल से दिल तक इस तरह करे!!!
मैं मैं न रहूं, तुम तुम न रहो
दोनों हो जाए एक ,बस अब खुदा करे !!!
और ये खामोशी ओढ़कर जब जब बैठे ये लफ्ज़
दो रूहों से एक जिंदगी बना करे!!!










Friday, November 7, 2008

ज़ज्बा..जिंदगी का!!



कुछ बीत जाने को है


कुछ भूल जाने को है


कुछ तेरे खोने को है


और कुछ मेरे पाने को है!!!


न रंज रख जिंदगी से


न दोस्ती कर खुशी से


क्या पता शायद कहीं से


कोई तुझको आजमाने को है!!!


दिल से अजनबी होकर


देख गहराई में खोकर


जो गम दुश्मन था तेरा


अब गले लगाने को है!!!


खोल दे दिल की गिरह


न कर तन्हाई से जिरह


लफ्ज़ भी दहशत में है


जो खामोशी सर उठाने को है!!!


बेबस सी तेरी उलझने


तन्हा से तेरे सपने


देख तेरी राह में


जिंदगी बिछाने को हैं!!!


जीने दे ख़ुद के हर एहसास को


छोड़ दे अब 'काश' को


शब्द दे हर आस को


आइना भी मुस्कुराने को है!!!

सच..


वो तुम थी

या मेरी तन्हाई थी!

जो अचानक ही मेरे करीब आई थी!

जिसने आते ही छू दिया जिंदगी को

और रोने न दिया फिर खुशी को

मैं खुश था आज तुम साथ हो मेरे

वरना हर लम्हे में मायूसी छाई थी!

मैं चला था सपनों को जगाने

और अपने गम को ये बताने कि

लोग मुझे भी लगे है चाहने

और कहते कहते आँखें भर आई भी!

मगर ये क्या मालूम हुआ मुझको

जब सच ने छुआ मुझको

कोई नही था मेरे साथ, मेरे साये के सिवा

और ये कहकर हसने लगी मुझ पर मेरी परछाई भी!




रंग..!!



तेरी आंखों के, चाहकर भी मैं तो रंग बदल न पाया


सोचा था सफर साथ कटेगा,पर दो कदम भी चल न पाया!!!


सपनों के थे रंग सजीले


हल्के गहरे नीले नीले


मैंने भी रंग घोले चाहत के,पर तुझ में भर न पाया!!!


तेरी हँसी थी बहुत गुलाबी


और सुनहरी सी थी बेताबी


थामकर अपनी जिंदगी का हाथ,यादों से तेरी निकल न पाया!!!


काली काली सी तेरी आँखें


आकर मेरे सपनों में झांके


तेरे होने का एहसास बिखरा तो मैं फिर तन्हाई में ढल न पाया!!!


आ संग संग जिंदगी को रंगें


छोड़ दे इस जहाँ में चाहत की पतंगे


तेरे प्यार का जब रंग चढा तो मैं किसी और रंग में घुल न पाया!!!



Thursday, November 6, 2008

तलाश!


तन्हा होने के एहसास में

ख़ुद को पाया तन्हा ख़ुद के पास में!!!

दूरियां सी बन गई नजदीकियां

चुभने लगी जिंदगी की बारीकियां

मर मर के जीते ख्वाब देखकर

उम्मीद बदलने लगी 'काश' में!!!

तड़पने लगे जज़्बात जब कशमकश में

सुलगने लगे जैसे ख़ुद हम हर कश में

धुंआ धुंआ सा लगा हर मंज़र

और भरने लगा चाहत भरी हर साँस में!!!

लफ्जों को जला गई खामोशी की चिंगारी

और तब लगी जिंदगी तन्हाई पर भारी

धीरे धीरे सिमट आई उम्मीद दिल में सारी

और निकल पड़ा मेरा साया मेरी ही तलाश में!!!

तन्हाई!!


मेरी तन्हाई,तन्हा होने का सबब मांगे
मेरी जिंदगी,मेरे होने का मतलब मांगे
मैं चुप सा गुम हूँ, कोई आवाज न दे
न जाने कब ये खामोशी, शब्द मांगे!!!
तेरे दिल से अपने दिल तक मैं चला हूँ अकेला
फिर क्यों आज मोहब्बत बयां होने को
तेरा लफ्ज़ मांगे!!!
ये सितम जिंदगी का कम है
कि मैं जिन्दा हूँ
जो वक्त मुझ से
मेरे तन्हा पलों को
न जाने कब मांगे!!!













गुलाल...!


तुम आए जब दिल में
किसी ख़याल की तरह!!
बेचैन हो उठी
जैसे एक सवाल की तरह!!
खो गई अनजाने में
फिर से तुमको पाने में
मिले भी क्या बस बिछडे
हर साल की तरह!!
निशब्द सी होकर
खामोशी में खोकर
जो बात तुमसे की
बेहाल की तरह!!
तुम हंस के चल दिए
जैसे मायने बदल दिए
गम घुलने लगे आंसुओं में
गुलाल की तरह!!

तन्हा सी जिंदगी


भीगी भीगी पलको के
गीले गीले से ख्वाब
डूबी हुई जिंदगी के
कुछ नम से जवाब!!!
ज़ज्बात से बने नीड में
ख्वाहिशो की भीड़ में
कर रहा हू कब से बैठा
तन्हाई का हिसाब!!!
कुछ कही,कुछ अनकही
दिल में जो हसरतें रही
पूछती है खामोशी से
कब आएगा लफ़्जो पे शबाब!!!
रात की करवटो में
दिन की सिलवटो में
उलझा उलझा सा मेरा साया
मेरा होने को है बेताब!!!