Monday, November 17, 2008

ख्वाब!


जुड़ता है जब कोई ख्वाब किसी रात से
जी उठता है एक अधूरी सी जिंदगी उस मुलाकात से
भर जाता है हर लम्हे में जीने की कसक
और दे जाता है बैंचैनियौ को सबक !
करता है वक्त के हर फैसले में दखल
रोज मन से जिरह और जीने की पहल
नही समझता वक्त की बेरुखी
हर उम्मीद पे जताता है अपना हक !
लम्हा दर लम्हा देता है दस्तक, हर ख़्याल पर
ख़ुद भी उलझता है, मन को भी उलझाता है हर सवाल पर
देख पता नही सच के आईने में ख़ुद को
और खोलना चाहता है मन की हर झिझक !
कौन समझाए, वक्त का पल पल है कितना कठिन
जिसकी रात न हो सकी,आख़िर उसका क्या होगा दिन
जिसका होना कुछ नही बंद आंखों के बिन
वो रखता है खुली आंखों से जिंदगी देखने की ललक !
जो रखता है वक्त से रिश्ता पल पल का
करता है रोज इंतज़ार एक नए कल का
होकर रह जाता है नमकीन और ग़मगीन
बिखरने पर नम आंखों का स्वाद चख !
मन सिमटकर बह जाता है जब आंखों से
वो कहता है न बातें करना अब रातों से
रखना उम्मीद तो बस सच को देखकर
और ये कहकर जिंदगी की गोद में पड़ता है फफक !

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