When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, May 28, 2009
जहन.
मेरे जहन में रोज एक कत्ल होता है
रोज एक ख्वाब सदियों की नींद सोता है ।
समझ पाता नही,वो मेरे करीब आता क्यूँ है ?
मेरे ज़मीर को चुपके से जगाता क्यूँ है?
ख़ुद को देखकर,ख़ुद से नफ़रत और बढ़ जाती है
आइना रोज मेरी सूरत पे रोता है।
रोज मिलता भी हूँ ख़ुद से,यूं भी छुप छुप के
रोज मरता भी हूँ,यूं ही ख़ुद में घुट के
और फिर जिंदगी का कातिल बन के
ये जहन रोज मुझको ऐसे ही खोता है।
ये रोज मुझमें जिंदगी का जहर घोलता है
मेरी खामोशी को जब भी ये खोलता है
मेरी आवाज को मेरी ही मिटटी में दबाकर
न जाने रोज ही ये क्या बोता है?
Wednesday, May 27, 2009
तुम बिन..
नही जानताआख़िर तेरे मेरे दरम्यां क्या था?
जुदा होने की राह थी,पर न साथ चलने का रास्ता था?
मैं दूर हो रहा था तुझसे या कि ख़ुद से
चल सकूं दो कदम भी तन्हा,न इतना होंसला था ।
मैं बुनता जा रहा था अपने लिए एक दायरा
जहाँ मैं ख़ुद न था,जो था यादों से तेरी भरा
मैं जिंदगी को छोड़, कैसे तुझको था जी रहा
मुझे ये कैसी फिक्र थी कि ख़ुद से भी फासला था।
हाथ से फिसलता जा रहा था ख़ुद से किया वादा
मैं ख़ुद में कम था और तुझ में ज्यादा
क्या मैं फिर से कर बैठा तुझसे जुड़ने का इरादा ?
या फिर से वही भूल करने का फ़ैसला था।
मैं सोच में था जिंदगी क्यों अब भी तुमसे अलग नही
मैं कर रहा था ख़ुद से जिरह,जिंदगी से जंग नई
मैंने पूछा जब जिंदगी से क्या तुम भी संग नही?
तो पाया मैं आज भी,तेरे साथ ही खड़ा था।
मैं बनता जा रहा था अन्दर ही अन्दर पानी
आदत बदली न थी,कभी तुमको कहता था जिंदगानी
आज इस मोड़ पे आकर जो बनी है ये कहानी
सब कुछ तो वही था,नही कुछ भी नया था।
अगर कुछ बदला भी था तो बस समय था
और इस वक्त में ख़ुद से ज्यादा तुम्हे खोने का भय था
शायद आज भी तुम ही मेरी जिंदगी हो
नही सोच पाता अब भी,बिन तुम्हारे मैं क्या था ?
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