Wednesday, December 30, 2009

नव वर्ष !!


कुछ लफ्ज़ चुराए है
वक़्त की किताब से !
और कुछ लम्हे
गुजरे हुए ख्वाब से !!
अभी ढूंढ रहा हूँ
शायद खुद को
अपने ही किसी सवाल में
छुपे जवाब से !!
बीती सी बातों को
गुजरी सी रातों को
दोहरा रहा हूँ जैसे
बस अपने आप से !!
ये जिंदगी कुछ
नया पाने को चल दी है
और मुझको आखिर क्यों नहीं
इतनी जल्दी है ?
चारो तरफ ये शोर है
आने को नया दौर है
ये सोचकर होने लगे है
यादों के पन्ने ख़राब से !!
मैं बोना चाहता हूँ
नयी सोच अपनी उम्मीद में
पाना चाहता हूँ नयापन
दिल की मुरीद में
मैं तोलना नहीं चाहता
अपने लम्हों को, घडी से
जज्बा है नया तो सब है नया
मेरे हिसाब से !!


नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!

Saturday, December 26, 2009

सिर्फ!


सोचता हूँ मैं यहीं
कि शायद कभी मैं कहीं
घुल पाऊँगा क्या
तेरे नीले रंग में ?
कोई तो आकार मिले
इस जीवन का सार मिले
ख्वाब बन उलझा रहूं
तेरी आँखों की पतंग में !
तेरी उम्मीद जब कभी
नींद में अंगड़ाई ले
रात आकर चुपके से
तेरी आँखों से स्याही ले
हुस्न तेरा चांदनी में
चाँद से वाह-वाही ले
और जागे सुबह तो
बस तेरी ही उमंग में !
देखकर तुमको जब
आईने भी आहें भरने लगे
करके रोज दीदार तेरा
बेसब्र सूरज ढलने लगे
जिंदगी की बात हो तो
जिक्र तेरा चलने लगे
तन्हाई भी रहने को है
बेताब तेरे संग में !
ख्वाहिशें दिखना चाहती है
तुझ सा तेरे लिबास में
हर एहसास मिटने को
बैठा है तेरी आस में
देखना बाकी है कुछ
तो बस यही बाकी है अब
किस तरह ढलती है प्यास
अब सिर्फ तेरे ढंग में !

Tuesday, December 22, 2009

कर ले


आँखों में जो चुभते है
और फिर कहाँ रुकते है
उनसे मन को तर कर ले
छोड़ आ उनको फिर कहीं दूर
ऐसा न हो फिर वो मन में घर कर ले !
इश्क बड़ा ही तीखा है
जिसने इसको सीखा है
भूल गया फिर वो सब कुछ
बिन इसके सब फीका है
फिर भी पैबंद लगाकर तू
साँसों की थोड़ी फिकर कर ले !
एहसास के कच्चे धागों को
यूँ ही न तू उलझाये जा
इसका रंग मिटटी का है
न ख्वाबों की परत चढ़ाये जा
तुझको खुद की हो न हो
आईने की थोड़ी कदर कर ले !
कागज़ की नाव बना करके
ना तू ये भंवर तर जायेगा
अपने मन को कोई टीस ना दे
वरना ये आँखों में भर जायेगा
ये जीवन, बचपन का खेल नहीं
पहले थोड़ी सी उमर कर ले !

Monday, December 21, 2009

आना जिंदगी...


मेरे घर आना जिंदगी
न करना कोई बहाना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी !!
देना मौका बस एक मुलाकात का
एक पल अपने साथ का
वक़्त की बंदिशों से परे
कोई लम्हा दिल की बात का
बहुत कुछ मुझको सुनना है
तुम भी कुछ कह जाना जिंदगी !!
मैं तुमको दूंगा सब बता
माफ़ कर देना हर खता
तुम तक पहुँचने के लिये
देना मुझको मेरा पता
मेरे हर जिक्र में तुम हो
तुम फिक्र मेरी भी कर जाना जिंदगी !!
आज के बाद जो भूले से हम मिले
न करेंगें इस तरह शिकवे-गिले
ये वादा करो मुझसे
चलते रहेंगें ये सिलसिले
मुझे देना, तुमको जीने की तमन्ना
ख्वाहिशों को मिले कहीं ठिकाना जिंदगी !!
दिल में कोई एहसास ये जरा सा
रहे न ख्वाब कोई भी प्यासा
मन बन जाये न रेगिस्तां
रख आँखों को हमेशा भरा सा
बस तेरे तस्सवुर में हमेशा
छलकता रहे पैमाना जिंदगी !!
सुलगना मुझ में तुम
यूँ भी साँसों के आखिरी कश तक
मैं इस इंतज़ार में रहूँगा
कि तुम अब शायद दो दस्तक
मैं भूला नहीं तुम्हे
तुमने ही न पहचाना जिंदगी !!

Thursday, December 17, 2009

संग आना है...........


ख्वाब चाहकर भी न सो पाया
रात की खुसर-फुसर में
कुछ तो हुआ था शायद
जरुर चाँद के घर में !
फलक की चादर से गिरे
कल कुछ तारे
जमीन पर आकर
जैसे बिखरे से थे सारे
मैंने पूछा जो क्या हुआ ?
कोई बोला होकर रुआं
अब न चमकेंगें हम
चाँद के संग इस सफ़र में !
चाँद को लगने लगा है
उसका चमकना फीका है
जब तक हम सारे
चमकेंगें अम्बर में
कर दिया है बेघर हमको
शायद इसी डर में !!
मैं फिर बोला
मेरे ख्वाबों में आज
तुम्हारा ही जिक्र है
लौट जाओ रात को भी
कहीं न कहीं तुम्हारी फिक्र है
इस तरह से खफा होकर चमकना न छोड़ो
नीली चादर को अपनी आभा से ढकना न छोड़ो
तुम रात के दुलारे हो
प्यारे हो सबकी नज़र में !!
बिन तुम्हारे कहानी चाँद की रह जाएगी कोरी
कौन सुनाएगा रातों में फिर मीठी लोरी
कौन ले जायेगा सपनों में हमको आखिर
कैसे करेंगें हम फिर आखिर
ख्वाबों की चोरी
तुम्हे चमकते रहना
चाँद को भी ये कहना है
तुम्हे संग संग आना है
फिर मेरे ख्वाबों के शहर में !!

Thursday, November 26, 2009

होंसला..


किस उम्मीद की हद तक उस बंजर को जीयें
आख़िर कब तक उस गुजरे मंजर को जीयें
दर्द तेरा न शायद कभी समझ पाएं हम
और ख़ुद को भी तो कैसे ये समझाएं हम
जाने वाले चले गए,न अब लौट पायेंगें
फिर कब तक हम तेरी पथरायी सी नज़र को जीयें ?
न खफा हो तू ख़ुद से और न मुझ से जुदा हो
ऐसा करने से क्या हासिल,ऐसा होने से क्या हो
चल साथ मिलकर हम अपनी जिंदगी को भूला दे
जो गया है अचानक,उसकी खातिर उसकी उमर को जीयें ।
कुछ ऐसा करें,वो जहाँ भी हो बस मुस्कुराये
उसकी शहादत बस एक याद बनकर न रह जाए
उसकी हर ख्वाहिश पूरी कर ख़ुद में उसको पा लें
न कि बस उसको खो देने के डर को जीयें ।

ये पंक्तियाँ उन बेनाम जांबाजों के लिए जो आज हम सबके बीच होकर भी नही है
और उन लोगो के लिए जिनके दिलों में वो आज भी कहीं है...!!
ये उन लोगो के लिए जिनकी आँखें आज भी नम है
और उन लोगो के लिए जिनको आज भी "अपनों को" खो देने का गम है !!
ये लिखना भी बहुत आसान है और कहना भी आसान है
पर आज जिस मुश्किल से गुजर रहे है ये लोग,क्या उस मुश्किल में रहना भी आसान है?
एक सवाल हम सबके लिए...(ये तस्वीर उस मासूम की जिसने नरीमन हाउस में अपने माता-पिता को खो दिया)

Wednesday, November 25, 2009

२६/११ ...एक संकल्प !




ये वक्त की पुकार है
इस पर क्यूँ ,किसी का गौर नही ।
कह रहा है वक्त ,ये चीख कर
अब २६/११ और नही ।।
ना याद कर आँसू बहाओ
ना और ख़ुद को पीर दो ।
हो सके तो बुलंद कर लो आवाज
फैली ख़ामोशी को चीर दो ।
क्यूँ आज सब लोगो के दिल में
उस रोज जैसा शोर नही।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
तुम जलाओ अपने मन का दीया
ताकि जीवन की लौ जल उठे ।
जो डूबे पड़े है ख़ुद में ही
वो साथ होकर चल उठे ।
कह दो ये सारे विश्व से
अब हम पहले से कमजोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
आजाद अपनी सोच है
आजाद अपनी साँस है ।
क्यूँ करे किसी की गुलामी हम
ना हमे किसी से कोई आस है ।
ये देश एक जनतंत्र है
किसी एक नेता का कोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
ना उस रोज गुजरे हादसे को
और तू गमगीन कर ।
तू बना ख्वाबों का इन्द्रधनुष
और इस अम्बर को रंगीन कर ।
तू मिटा दे सबके मन से उस रात का अँधेरा
और बता दे ये गर्व से कोई ऐसी रात नही जिसकी भोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही ।।।
तू रोज अपनी जिंदगी से
नया जज्बा ले,नई सीख ले ।
तू मांग सब अपने आप से
औरों से ना कोई भीख ले ।
तू ख़ुद अपना भाग्य-विधाता है
वक्त के हाथ में तेरी डोर नही ।।
कह रहा .....अब २६/११ और नही....
और नही............

Monday, November 23, 2009

दरकार ! (२६/११)पर विशेष !!!!



बोझिल सा मन ढलता नही
अब किसी आकार में !
ढोता हूँ एक बोझिल सी सोच
जिंदगी के सार में !
क्या कहें किसी को ,क्या लिखें ?
नारे लगाये या चीखे
लगता नही वो बात है पहले सी
अब शब्दों की धार में !
मैं जी रहा हूँ ख़ुद को ही
या ये "चीज़" कोई और है
मैं देखता हूँ चिथड़ी जिंदगी
यूँ भी रोज के अखबार में !
जो रोज अपने व्यक्तित्व पर
जी भर राजनीति करे
उसका भरोसा क्या कि
वो आईने से भी प्रीती करे
जिसने कभी सुनी नही
अंतर्मन की आवाज
आख़िर क्या कर रहा है वो
इस देश की सरकार में !
सदियों से संभाली आन को
वो लम्हों में लूट जाते है
वो बरसों सजा पाते नही
यहाँ पल में अपने छूट जाते है
वो लगाकर एक चिंगारी
राख कर देते है देश
और मैं परवाह करता हूँ बस इतनी
मेरा घर न हो कहीं इस कतार में !
वर्तमान ही यहाँ जब
भूखा नंगा दिखता है
एक रोटी के मोल में
देश का भविष्य बिकता है
आंखों से उतार ले तू
धुंधले सपनों की परत
कुछ नही रखा है यूँ भी
भूखे सपनों की दरकार में !

Thursday, November 12, 2009

अस्तित्व


जो मैं ख़ुद में नही पाता कभी
वो तुम में नज़र आता है
मेरा होना,तेरे होने से
जैसे भर जाता है ।।
मैं छूकर तुम्हे जैसे महसूस करता हूँ ख़ुद को
और सोचता हूँ तुझसे, मेरा
ये कैसा नाता है?
तू अनजाने में ही
मेरी तन्हाई से लड़ता है
मन को बल सा मिलता है
जब तू हाथ पकड़ता है
मैं तेरी छोटी छोटी उँगलियों में उलझ जाता हूँ
तू मेरी हर बड़ी मुश्किल को सुलझाता है ।।
ये ऐसा क्यों है,वो वैसा क्यों है
जब तू पूछता है
मेरा जीवन जैसे
हर सच से जूझता है
मैं तुझको बहलाने की कोशिश में लग जाता हूँ
या कि शायद तू ही मुझको बहलाता है ।।
तू जिद करता है,रोता है आंखों को मींचता है
मेरे मन के किसी प्यासे से सपने को सींचता है
बाँध रंग-बिरंगें गुब्बारे से अपने मन की डोर
तू जैसे मेरी ख्वाहिशों को पर लगाता है ।।
तू अपनी बात से मेरी खामोशी को यूं तोलता है
ऐसा लगता है जैसे तू मेरे मन की बोलता है
तेरे "पा" कहने में ,मैं पा जाता हूँ सब कुछ
और ये एक शब्द ही मेरा अस्तित्व कह जाता है ।।










Thursday, November 5, 2009

हाँ !


जिंदगी अपनी हद में बड़ी हताश सी है
जैसे हसरत कोई सदियों से बस 'काश' सी है ॥
ख्वाब,कहाँ किसी का होंसला बुलंद करते है
ये तो बस जब चाहे,आंखों को बंद करते है
अब तो मन को भी जैसे उजालों की आस सी है ॥
ख़ुद को ख़ुद ही न अगर समझें,तो फिर कौन जाने ?
अक्स मिल जाए कहीं अपना तो लोग पहचाने
मुझे हर आईने में अपनी ही तलाश सी है॥
आज तक जाना नहीं क्या सुकूँ हैं खुदा होने में
हाँ !मगर बहुत तकलीफ होती है ख़ुद से जुदा होने में
इसलिए शायद अब भी मुझको इंसां बने रहने की प्यास सी है ॥

Sunday, November 1, 2009

लोग


नशा जिंदगी का अभी उतरा नही शायद
वक्त के साथ लोग सिर्फ़ अपने पैमाने बदल रहे है
खत्म नही हुई है अब तलक जिंदगी की प्यास
लोग जरुरत पड़ने पर मयखाने बदल रहे है ॥
ये किस जुस्तजू में क़ैद होकर रह गया है दिल ?
छलकते जाम क्या टूटे,संग बह गया है दिल
आज बदनाम सा होकर के रह गया इश्क
किसने सोचा है आख़िर क्यों इस तरह दीवाने बदल रहे है ?
नशा इतना है कि लोग ख़ुद से भी बेखबर से है
बनाकर सपनों का आशियाना,जिंदगी से बेघर से है
यही डर है कोई पूछे न उनसे,उनका ही पता
सब बेसब्र से अपने अपने ठिकाने बदल रहे है ॥
अगर पूछो इन लोगो से कि कहां है जिंदगी ?
ये बस कह देते है कि बेवफा है जिंदगी
मगर सच क्या है,किसने की है असलियत में बेवफाई
जानते है ये लोग तभी जीने के बहाने बदल रहे है ॥

Wednesday, October 28, 2009

हासिल..


मैं पूछता हूँ जिन्दगी से
तू, कब मुझको रास आएगी?...
मैं कब तलक नापता रहूँगा फासले
और कब तू ख़ुद पास आएगी ?...
कब सिखाएगी जीना?
ख़ुद को ही घूँट घूँट पीना
और कब ये तन्हाई
तेरे होने का एहसास दिलाएगी ?...
कब तलक रहूँगा मैं अजनबी ?
क्या मुझको तू अपना लेगी कभी ?
ख़ुद से दूर जाने की हसरत
क्या मुझे तेरे करीब ले जायेगी ?
मेरा होना,तेरे होने से अलग क्यूँ?
मैं ख़ुद में कुछ नही,तेरे होने से ही सब क्यूँ?
तुझको पाने से भी गर ख़ुद को कर न पाऊँ हासिल
ये बता किस किस हसरत को मुझ में, तू दफनाएगी ?

Thursday, October 8, 2009

फितूर.


तंग सा हो चला था मैं फितूर से
कुछ तो थी खलबली जिंदगी में जरुर से
न थी अपनी ख़बर,न रास्तों का पता
माफ़ हो न सकी ख्वाहिशों की खता
ख़ुद को रोका बहुत,ख़ुद को टोका बहुत
हो चले थे ख्वाब भी मजबूर से ।
जिंदगी का कोई भी ठिकाना नही
इस लिए मुझको उस तक जाना नही
मैं बना लूँगा ख़ुद आशियाना कहीं
न चलूँगा ज़माने के दस्तूर से ।
अपनी तन्हाई से जी भी भरता नही
ख़ुद को चाहकर भी मैं याद करता नही
नापता भी नही औरों से फासला
देखता हूँ ख़ुद को भी, तो बस दूर से ।

Wednesday, October 7, 2009

मैं..


मैं, बेचैन सी सोच के आशियाने में थी
नही मालूम,कौन सी हसरत इस कदर बह जाने में थी ?
चुस्कियां लेती जा रही थी,गर्माहट देती जा रही थी
मगर कोशिश पूरी, सूरज को डूबाने में थी ।
मैं बरसों में भी इतनी तन्हा न हुई थी
जितनी खाली मैं, उस एक पल के खो जाने में थी ।
भूलती जा रही थी धीरे धीरे ख़ुद को
वो अलग बात है ,मैं फिर भी सब दोहराने में थी ।
मेरी हर बात में मैं ही न थी,कोई और ही था शामिल
बहुत मुश्किल,ये जिंदगी बिताने में थी ।
जिस तमन्ना से उड़ना चाह रही थी मैं ये उडान
उसकी हद मिटटी की गहराईयों तक जाने में थी ।
सुलग रहा था मन,गम से लिपटी थी घुटन
पर कौन जाने,आख़िर जिंदगी किस पैमाने में थी ?

Saturday, September 26, 2009

सुन.!


तू, इस बेचैन दिल की कहानी को सुन
प्यासी आंखों को तरसते से पानी को सुन !
गम के खाते में और क्या बाकी लिखूं ?
इस ज़माने को तो बस मैं साकी लिखूं
भरते जो जा रहे है पैमाने कईं
तू, उन आसूँओं की रवानी तो सुन !
घूँट घूँट भर भर के कब तक इनको पियूं
ख़ुद को इस तरह से मैं कैसे जियूं?
खाली लौटा हूँ, उसने भी रुसवा किया
तू उस जिंदगी की बेईमानी तो सुन !
दो कदम भी न ख़ुद के लिए मैं चला
रुक गया हूँ क्यों, जिंदगी पर भला ?
बहुत मुश्किल में हूँ,सिमटा सा दिल में हूँ
तू, इस बेपरवाह की मनमानी तो सुन!

Friday, September 25, 2009

इस तरह..


रास आया नही मुझे जिंदगी का इस तरह से चले जाना
और गम का मुझको इस तरह से छले जाना ॥
मैं जाता देख उसको खाली हाथ सी खड़ी ही रह गई
न समझ आया उसे मेरा बार बार रुकने को कहे जाना ॥
वो ऐसी रात थी जिसमें मेरे सब ख्वाब रोये थे
उम्मीद की कोख में जिंदगी ने दर्द के बीज बोए थे
रात भर जागकर भी पूरी न हुई जीने की हसरत
तय ही था सुबह का अपनी आंखों को मले जाना ॥
कौन जाने, मैं लम्हा दर लम्हा ख़ुद के लिए तरसती थी
हर उम्मीद आँसू बन हालत पर बरसती थी
मैं देख ख़ुद को अक्सर आईने पे हंसती थी
नही भाता था मुझे अस्तित्व का खले जाना ॥
बड़ा मुश्किल रहा मेरे लिए जिंदगी का ये धोखा
मैं देना चाहती थी फिर भी ख़ुद को भी एक मौका
छोड़ जिंदगी की आस,लिये ख़ुद को जीने की प्यास
बहुत तकलीफ देता था आसूँओं में उम्मीद का पले जाना ॥

Thursday, September 17, 2009

ढूंढता है.....


दिल इबादत ढूंढता है
अपनी चाहत ढूंढता है
जिंदगी की कशमकश में
बूँद बूँद राहत ढूंढता है ।
आसूँओं के जलजलों में
यादों के उन काफिलों में
होता है जब बेपरवाह सा
तो जीने की आदत ढूंढता है।
होती नही उसको कभी ख़ुद की ख़बर
करता है वो जाने क्यों औरों की फिकर ?
कभी ऐसे ही याद आ जाता है जब वो ख़ुद को
बेसब्र होकर तन्हाई का लिखा ख़त ढूंढता है ।
चंद लम्हों में ही डर जाता है वो
एक उम्मीद भर से,इस कदर भर जाता है वो
अपने किसी टूटे हुए से ख्वाब में
हर रोज जिंदगी की लत ढूंढता है।

Monday, September 14, 2009

हिन्दी दिवस पर ...


हर शब्द पर हम क्षुब्ध है
हर वाक्य पर हम मौन है
ये कैसी आधुनिकता है ?
जहाँ आत्मसम्मान गौण है।
हर क्षण में अंतर्द्वंद है
अपनी भाषा के सवाल पर
मर चुकी है सोच
ख़ुद से आशा के ख़्याल पर
अभिव्यक्ति की परतंत्रता का
आख़िर अपराधी कौन है ?
क्यों गर्व है आख़िर हमें
विदेशी शब्दों की धार पर
हम कैसे युद्घ जीत सकते है ?
औरों की तलवार पर
भ्रमित सी मानसिकता का
ये विक्षिप्त सा दृष्टिकोण है ।

ये प्रयास भर है ....सार यही है ..."निज भाषा उन्नति अहै"....आप सभी को हिन्दी दिवस की शुभकामनायें

Thursday, September 10, 2009

सच..


कोई ख्वाब,मन को छू रहा है
और कोई आंखों से छलक रहा है।
कोई सोना चाहता है जिंदगी भर
और कोई सदियों से जग रहा है।
अलग है सबकी अपनी कहानी
कहीं है सूखा,कहीं है पानी
किसी के लिए समन्दर भी कम है
और कोई बूंदों में ही छक रहा है।
किसी के लिए रंग,नई सुबह में ढल रहे है
और किसी के लिए धूप में जल रहे है
कोई उजाले की तलाश में है
और कोई दिन को आंखों से ढक रहा है।
कोई सपनों को सींचता है
और कोई बस आँखें मींचता है
कोई दे रहा है आकार इनको
और कोई छुपाकर रख रहा है।
इस जिंदगी के है इतने किस्से
कि चाहे जितने भी कर लो हिस्से
जो भी मिलेगा,कम ही लगेगा
तभी तो हर कोई,सिसक रहा है।
जितनी भी कर लो सपनो से सजावट
कभी कम न होगी इसकी कड़वाहट
तुझे एहसास हो गर,मीठेपन का
समझ ले तू कुछ और चख रहा है।

Thursday, September 3, 2009

१००वीं रचना ..."धार"


जिंदगी जब भी बनकर दिल की कलम चलती है
ऐसा लगता है जैसे एहसास से गुजरकर हवा नम चलती है
बिखर जाते है उस बयार में कोरे पन्ने
आसूँओ से भरकर एक नई नज़्म चलती है ॥
थक जाती है उस एहसास तक जाते जाते
खाली हो जाते है जैसे जिंदगी के खाते
और वक्त के साथ उस अधूरे से हिसाब में
ये नज़्म,सोच पर बनकर सितम चलती है ॥
क्या तो छोड़ दे ये दिल और क्या बाँटें ?
लफ्ज़ चुभते है जैसे दिल में बनकर कांटें
तेज़ हो जाती है जब सोच वक्त की धार पर
ख़ुद पे ज्यादा और औरों पर कम चलती है ॥
दर्द को मिलती है जिसमें वाह-वाही
कभी लहू के रंग में रंग जाती है स्याही
दिख जाता है ऐसे ही किसी दिल का ज़ख्म
और किसी के लिए ये बनकर मरहम चलती है ॥


आप लोगो से मिले प्यार और आर्शीवाद के लिए मैं आभारी हूँ !!
पारुल.... :)

Friday, August 28, 2009

अब और...



वो ख्वाब,वो मंज़र तो एक बहाना था
हकीक़त तो ये है कि मुझको,तुम तक आना था।
नही जानती इस तरह से क्यों चली आई थी मैं ?
पर ऐसा लगता था जैसे तुमको कुछ लौटाना था।
जिन्दगी सुलगती जा रही थी हर कश में
यूं था जैसे कि मैं ख़ुद नही थी,अपने बस में
बढ़ रहे थे कदम जैसे अनजान राहों पर
और मकसद इस भीड़ में ख़ुद ही को पाना था।
यकीं करो,कोई एहसास नही था पहले ख़ुद को खोने का
जब तलक एहसास था इर्द-गिर्द तेरे होने का
मैं तुम में जिंदगी की ख्वाहिश पा रही थी
और इसी ख्वाहिश में ही कहीं मेरा ठिकाना था
जब तंग गई थी मैं,तुम में अपनी खोज से
दबने लगी थी कहीं कहीं ऐसी ख्वाहिशों के बोझ से
यही सोचा कि अब सब कुछ तुमको ही लौटा दूँ
आख़िर कब तक जिंदगी को यूं ही बिताना था ?
मैं जलाकर आई थी ख्वाबों का घरोंदा
जिन्हें देख जागती रातों का मन भी था कोंधा
मैंने जिंदगी को था झूठे सपनों से रोंदा
मुझे ख़ुद को अब और ऐसे नही दोहराना था

Friday, August 21, 2009

सोच!


तू जिंदगी की कड़वाहट को
होठों पे रखता है क्यों?
कि हर बार बस आँसू को
ही चखता है क्यों?
घोल आया है कहाँ
ख्वाहिशों सी मिश्री ?
दिल के मीठेपन को
इस कदर तरसता है क्यों?
डूबने को है तेरी आंखों में ही
कोई शाम सुहानी ।
है कोई उम्मीद पनपने को
जैसे सुबह रूहानी ।
ये बता दे कब तक छाए रहेगें
गम के बादल ।
फलक ,हालत पर तेरे
आख़िर बरसता है क्यों?
यूं कब तलक तन्हाई को
लगाके गले ।
तेरा होना आख़िर
ख़ुद तुझी को खले ।
वहां किसी ख्वाब को
मुस्कुरा के तो देख ।
जहाँ बस जिन्दगी की
आह पले ।
मैं अब तक सोच में हूँ
तू भी सोच के देख ।
तेरा साया,तुझ पर ही
हँसता है क्यों?
तू चला जाए बिन कहे
और खामोशी न रोये ।
ये बेजुबां से तेरे अल्फाज़
न मासूमियत खोये ।
इसी डर से हर सवाल
दोहराता हूँ मैं
मगर तू जवाब से पहले ही
थकता है क्यों?

Tuesday, August 18, 2009

शामियाने!


कोई आंसूं पूंछें मेरे,कोई लगे दर्द सहलाने
कोई मुझे ख़ुद सा समझें और लगे चाहने
ऐसा ही कोई अपना सा ढूँढता फिरता हूँ
जो सिखा दे जीना,इस जिंदगी के बहाने ....
अब नही भाते रेत में से चमकते मोती
काश इतनी ही कदर इन आंसूओं की होती
न प्यासा सा यूं ही रह जाता मन
सपने हो जाते वक्त से पहले ही सयाने ...
मेरी,मुझसे ही अगर बात करता कोई
झूठे ख्वाबों में न बरबाद रात करता कोई
मैं जाग जाता एक नई सुबह से पहले
और समझ जाता ख़ुद के होने के मायने ...
मैं क्यों समझा नही,डरता रहा पानी से
क्यों उबर पाया नही,गम की जिंदगानी से
काश एक बार उतर जाता इस समन्दर में
तो शायद लगते ये नमकीन आंसूं भी भाने ...
ऐ जिंदगी!आख़िर तू नमकीन कब नही?
मेरे लिए तो तू बेरंग सी अब नही
धीरे धीरे रंग घुल रहे है वजूद में
दिख रहे है चमकते से फलक के शामियाने ...

Monday, August 10, 2009

दौर..


वो दौर कुछ अलग भी था
मेरे पास तुम न थे मगर और सब भी था ॥
जो तुम मिले तो जैसे वो सब खत्म हो गया
तुम ज्यादा हो गए बाकी कम हो गया
अब हाल है ये जिंदगी में बस तुम ही रह गए
एक दौर था वो जब जिंदगी का और कोई मतलब भी था॥
मन्दिर की पूजा याद थी,मस्जिद की इबादत याद थी
ये जिंदगी मेरी तब उस खुदा के बाद थी
तुम क्या मिले कि दिल की इबारत बदल गई
आज इश्क ही खुदा मेरा,तब और कोई मजहब भी था॥
तारों से जगमगाते थे तब सूनी रातों के दीये
मैं ख़ुद में ही रहता था बस अपने सपनों को लिए
तुम क्या मिले जैसे मैंने वो सारे सपने खो दिए
एक ख्वाब मिला तुमसे नया,जहाँ तेरे होने का सबब भी था॥

Friday, August 7, 2009

हो सके तो.........


जो ख्वाब देखा था अक्सर
भर लिया था जीवन में ।
हर तरफ़ बह रहा था जैसे
बस तू ही मन में ।
आज चुभा कोई लम्हा
और तू फिर भर आया है ।
आंखों के सामने तो बस
धुँआ ही छाया है ।
जब भी होता है ऐसा
तू ही मन से रिसता है ।
ये इन आंखों का
इस ख्वाब से कैसा रिश्ता है ?
ये रिश्ता ख्वाब से है
या कि उस धुंधलेपन से,
जो आंखों में भर रहा है
पूछती हूँ बस मन से ।
मेरे मन ने आज
फिर से मुझे समझाया है ।
ये धुंआ है इस लिए
कि शायद कोई ख्वाब फिर सुलग आया है ।
अगर कोई ख्वाब मेरा
फिर से जला रहे हो तुम ।
इतना है बस इस धुएं में
खोए से नज़र आ रहे हो तुम ।
हो सके तो ख़ुद को,मुझको
या कि सब कुछ सुलगा दो ।
और तुम्हारे पास मेरा जो भी है
सब जला दो
सब कुछ जला दो.....

Thursday, August 6, 2009

चाह!


तेरे एहसास भर से
एक दर्द उभर जाता है !!
सोचती हूँ तुझे तो
जैसे मन भर जाता है !!
भूल पाऊँ अगर तो
सब कुछ भुलाना चाहूं !
मैं बिन तेरे
हर हाल में मुस्कुराना चाहूं !
पर जो सुकूं दे
वो एहसास ही मर जाता है!!
तू कोई वादा न कर
तू निभा न पायेगा !
फिर ये दिल रोयेगा
और तू हंसा न पायेगा !
सोच हर आँसू जैसे
ख़ुद में सिहर जाता है !!
तेरी दुनिया में
मेरे होने का एहसास कहाँ ?
हैं तेरे पास सभी
पर तू मेरे पास कहाँ ?
ऐसे ही कुछ सवालों से
मेरा वजूद बिखर जाता है !!
आज बिछडे भी हो
पर शायद फिर कभी संग होंगें !
इस कोरेपन में
छिटके से मेरे रंग होंगें !
इसी ख्वाहिश को जिये
वक्त गुजर जाता है !!

Thursday, July 30, 2009

जा!


जिंदगी के सीने में खंजर चला के जा
जाना हो जहाँ जा,मगर ख़ुद को बता के जा
किस किस से पूछेंगें ,आख़िर कहाँ है तू
कि खोने से पहले ही ख़ुद को पा के जा
होगा जहाँ बसेरा,तेरा भी वहीं डेरा
पर जाने से पहले तू ,मुझ तक तो के जा
तन्हा से होंगें आँसू ,मेरे पास छोड़ जा इन्हे
मेरे लिए ही सही,तू मुस्कुरा के जा
कुछ ख्वाब यूं भी तेरे, तुझको वहां घेरे
अच्छा है तू इनको यहीं सुला के जा
ये मन तेरा,मेरे ही आस-पास होगा
बेहतर है तू कुछ भी मुझसे छुपा के जा
ये गम बिछड़ने का कहीं बोझ बन जाए
जाने से पहले मुझको जी भर रुला के जा
अब तक तो जिंदगी ने मुझको नही अपनाया
आख़िर तू तो मुझको गले लगा के जा
शायद मैं ही तुझको अब तक समझ पाया
इसलिए तू अब मुझको और समझा के जा
कहते कहते थक जाए कहीं ये खामोशी
तू मुझको यूं ही लफ्जों में उलझा के जा
मैं तन्हा रह जाउं अपनी ही तन्हाई में
तू तेरी तन्हाई से मुझको मिला के जा
शायद बिन तेरे ,मैं,मैं रह जाउं
बस यही आख़िर गुजारिश,ख़ुद को मुझे में बसा के जा