
इस जहाँ में है न जाने कितने
चोट खाए दिल !!
बड़ी मुद्दत हुई कि किसी बात पर
मुस्कुराये दिल !!
ये दर्द तेरा है और वो दर्द मेरा है
बोलो किस तरह से ये फर्क लाये दिल !!
आइना कह गया
आंखों से सब बह गया
जो बाकी रह गया
उसमें क्या पाए दिल !!
बुनते-बुनते,चुनते-चुनते
थक गया है दिल
और तेरे लिए, जिंदगी को
कैसे बहलाए दिल !!
आज आ बैठा करीब मेरे
तेरा कोई गमजदा सा पल
मैं सोचता हू किस तरह उसे
हंसाये दिल !!
तू अपने हर एहसास से
अब रु-ब-रु हो जा
हो सकता है तुझे तन्हाई से ज्यादा
भाए दिल !!
तू भूला ख़ुद को
न जाने किस भूल में
पर तेरी इस तड़प को
न भूलाए दिल !!
बिखरी सी खामोशी में
लिपटे हुए कुछ लफ्ज़
न जाने कब दस्तक देकर
छू जाए दिल !!
तू अनजान इस दिल से
कहाँ,क्या ढूंढता है
तुझे तेरे दिल से,ज्यादा न जगह देंगें
पराये दिल !!
4 comments:
बहुत बढ़िया रचना
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com
bahut lajawab
Parul ji,
Dilon ke itne roop rang dikhaye hain apne apnee kavta men.Bahut sundar.
Hemant Kumar
बहुत ही अच्छी कविता है, ..काफ़ी अच्छा लगा पढ़ कर...
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