When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, July 30, 2010
'जिंदगी' और मैं!
वो जी रहा था 'जिसे'
मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
परत दर परत बुनी उस कहानी से
मेरे मन का बादल भी उमड़ रहा था ॥
बरस रहा था मन में होले होले
कुछ रंग कल्पनाओं के घोले
और मैं बस भीगता जा रहा था
वो रंग अब मुझ पर भी चढ़ रहा था ॥
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥
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43 comments:
thanx! 4 sharng me.....u hv depth, i like it...
truely remarkable!
vartika!
वाह क्या खूब लिखा है…………बहुत ही खूबसूरत रचना है सीधे दिल मे उतर गयी।
aaahhha... this needs a true appreciation...
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥
Bahut badhiya...
beautiful blog..beautiful thoughts!
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥ .......very nice.
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
बहुत खूब !!
लाजवाब ||
सच ऐसा ही होता है धीरे धीरे जैसे जैसे हम किसी को आत्मसात करते जाते हैं.
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
सच ही लाजवाब
बहुत खूबसूरत रचना ...मन को छु गयी ये रचना
rachna to bahut hi khoobsurat hai aur saath me aapka aana bhi achchha laga .
जिंदगी और मैं..एक खूबसूरत एहसा भरी सुंदर कविता...पारूल जी शुभकामनाएँ
बहुत ही खूबसूरत रचना है सीधे दिल मे उतर गयी।
एक दूसरे से प्रभावित होती जीवनियाँ।
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
बहुत खूबसूरती से लिखी है यह रचना ....एक एक शब्द और भाव खूबसूरत
वो जी रहा था 'जिसे'
मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
सीधे साधे शब्दों में कितने खूबसूरती से बयां किया है..वाह
एक संवेदनशील हृदय की व्यथा को बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज़ दिये हैं आपने।
आखिरी चार पंक्तियाँ तो गज़ब की ही बन गई हैं।
रचना का आगाज और अंजाम बहुत सुन्दर है!
--
आज के चर्चा मंच पर इसकी चर्चा है न!
बहुत खूब ....शुभकामनायें !
Beautiful!! Tum thak nahi jaati apni taarif sunte sunte...
:)
बेहद पसंद आई।
Bahut hi shaandaar rachna.....gahraai liye hue.....
Apko haardik shubkaamnaayen.....
sadaiv kee bhati adbhut abhivykti .......
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
ati sunder........
bahut khoob!
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
bahut sundar abhvyakti.
पारूल जी, वाकई आपने जिंदगी को करीब से देखा है।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
very good.
niceeeeee
अरे! आप टेक्नीकलर से ब्लैक एंड व्हाईट कैसे हो गयीं???
बहुत गहरे विचार...सुन्दर रचना.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
...........................
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
..................................
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था
ULTIMATE !
vakai..."कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी"
सॉरी! मैं फिर लेट हो गया.... पारुल... आपकी कवितायेँ सचमुच दिल में उतर जातीं हैं... आपके पेन और विचार को सलाम...
रिगार्ड्स
महफूज़...
Very well written!
bahut khoob dil jeete liya iss dard ne wah wah wah..............
सुन्दर शब्दों की नक्काशी की है आपने
सुन्दर भाव
सुन्दर रचना
बहुत ही लाजबाब पोस्ट
कमाल की प्रस्तुति ..................
'उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥'
- सुन्दर.
Bohot Sundar....:-) bas aur kya kahun....
एक कसक से उठी,नज़्म भर नहीं
हर लफ्ज़ इसका मेरी रूह सा है !!
भीनी भीनी सी नज़्म...या रूह!
बहुत खूब
Nice porul...dil ko chhu gaya yar... thanks for sharing :) and also thankx for comment on my blog.
फिर वही कहूंगा। पता नहीं कोई ऐसी बात होती है जो मुझे आपकी रचनाओं में अपनी सी लगती है। लेखक, कवि की यह सफलता है।
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था....\
बहुत पसन्द आई यह पंक्ति..।
ख्वाब और हक़ीकत से एककार होती रचना लाजवाब है ...
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