Saturday, March 27, 2010

भूख!





जिंदगी! बस इतना बता दे मुझको
तू उम्मीद की जगह क्यों मुझे में भूख बोती है
मैं चाहकर भी सुकून से सो नहीं पाता
रात का चाँद भी मुझको लगता 'रोटी' है ॥
झांकता हूँ जब भी खुद में
चूल्हे सा जलता हूँ
रोज इस भूख की खातिर
अपने आंसूओं पे पलता हूँ
रोज तू मुझे में फिर ऐसे ही भूखी सोती है ॥
रोज ही बनता हूँ मैं मिटटी पर गोले
कि शायद धूप में सिककर ये रोटी हो ले
और मैं बैठकर इसको फिर जी भर खाऊँ
रोज ये आस क्यों आखिर मुझको होती है ॥
या तो मिल जाये कहीं से मुझको दो दाने
या बता दे मुझको उन ख़्वाबों के ठिकाने
एक लम्बी नींद लग जाये वहां शायद मुझको
न पूछ पाऊँ फिर तुझसे क्यों मुझे ढोती है ॥







42 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

ऐ जिंदगी! बस इतना बता दे मुझको
तू उम्मीद की जगह क्यों मुझे में भूख बोती है
मैं चाहकर भी सुकून से सो नहीं पाता
रात का चाँद भी मुझको लगता 'रोटी' है ॥
....वाह....वाह....वाह......
.
http://laddoospeaks.blogspot.com/

Apanatva said...

marmik chitran..........choo gaya.............

Parul you massed MAATEE and i missed your comment....... :)

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

पढकर गुलजार की एक त्रिवेणी याद आ गयी -

"मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे,
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने।

रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे॥"

Parul kanani said...

its my pleasure mam! :))))))

दिलीप said...

bahut khoobsoorat..bhookh insaan se kya nhai karwati....gareebi pe hi kuch likha hai...ummeed hai apko pasand aye..http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/2010/03/blog-post_16.html

Udan Tashtari said...

ऐ जिंदगी! बस इतना बता दे मुझको
तू उम्मीद की जगह क्यों मुझे में भूख बोती है
मैं चाहकर भी सुकून से सो नहीं पाता
रात का चाँद भी मुझको लगता 'रोटी' है

-बहुत मार्मिक रचना..डूबे!!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bhookhe pet na hoye Gopala!
Aur aapne to ek bejod kavita garh di!
Behad samvedansheel aur marmsparshi!
Sahi hai, chaand bhi roti hi nazar aayega!

मनोज कुमार said...

कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

Vandana Singh said...

main kuch kehne me asamakhs hooon ..bas sil me utar gayi najm or hamesha yaad rahegi ..good job likhti rahiye:)

Randhir Singh Suman said...

nice

Dev said...

बढ़ी गहनता से आपने भूख के अहसास को व्यक्त किया है ....बेहतरीन रचना .

दीपक 'मशाल' said...

Achchhi kavita Parul.. lekin jaisa mujhe bhi badon ne sikhaya hai wahi aapse kahoonga ki-- tukbandi se bachiye.

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना का प्रस्तुतिकरण....एक सशक्त रचना...निरंतरता बनाएँ रखे...बहुत बढ़िया लिख रही है...धन्यवाद.

Urmi said...

रोज ही बनता हूँ मैं मिटटी पर गोले
कि शायद धूप में सिककर ये रोटी हो ले
और मैं बैठकर इसको फिर जी भर खाऊँ
रोज ये आस क्यों आखिर मुझको होती है ॥
बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण और मार्मिक रचना! हर एक शब्द में दर्द छुपा है जो वास्तविकता की ओर इंगित करता है! उम्दा प्रस्तुती!

Parul kanani said...

aap sabhi ka aabhar!

के सी said...

हरीश भदानी साहब याद आये

रोटी नाम सत है, खाए से मुगत है....
आपकी कविताओं को पढ़ते हुए मुझे कई बार भ्रम होता है कि ये कौन है जिसे पढ़ा पढ़ा सा है ?

कडुवासच said...

...प्रसंशनीय !!!!!

BrijmohanShrivastava said...

अष्टमी का चाँद आधी और पूर्णिमा का चाँद मुझे रोटी दिखाई देता है ,आंसू पीता हूँ ताकि कुछ तो भूख शांत हो |मिट्टी के गोले इसलिए बनाता हूँ कि शायद गरमी पाकर रोटी बन जाए ,बहुत बहुत दर्दीली रचना ,एक लम्बी नींद की इच्छा |उत्तम अति उत्तम रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कविता लिखने में आपने बहुत ही अच्छे बिम्बों का प्रयोग किया है!

मनोज भारती said...

उम्दा रचना...बेहतरीन !!!

Parul kanani said...

aap sabka shukriya!

"अर्श" said...

deepak achha likhte hain magar tuk bandi se bachne ke liye kyun kah rahe hain samjhaa nahi ...
baat ko vistaar den to kuchh sikhne me ijafa ho....

aapki kavita pasand aayee..


arsh

संजय भास्‍कर said...

-बहुत मार्मिक रचना..

कुश said...

चाँद का रोटी बनना.. बहुत खूब!

गुलज़ार साहब की एक त्रिवेणी याद आ रही है.. जिसमे उन्होंने ऐसी ही कल्पना की है..

मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने

रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे

दिगम्बर नासवा said...

एक भूखे की क्ला का रूप तो देखो ..
चाँद में भी उसने रोटी तलाशी है ...

बहुत ही अनुपम .. दिल को छूते हुवे गुज़रती है आपकी रचना ...

कविता रावत said...

Na jane kya-kya n nahi karta aadmi es ped ke liye. Bahut hi maarsparshi chitrmay rachna, man mein ek kasak jaga gayee.....
Bahut badhai

Gaurav Kant Goel said...

Wah Parul.... :)

रावेंद्रकुमार रवि said...

फ़ोटो ही बहुत कुछ कह रहा है ... ... .

Himalayi Dharohar said...

पारुल....
रचना भी सुदंर..........
ब्लाग भी अति सुदंर.........
ढेरोँ शुभकामनाएं...........

Anonymous said...

"ऐ जिंदगी! बस इतना बता दे मुझको
तू उम्मीद की जगह क्यों मुझे में भूख बोती है
मैं चाहकर भी सुकून से सो नहीं पाता
रात का चाँद भी मुझको लगता 'रोटी' है
...
रोज ही बनता हूँ मैं मिटटी पर गोले
कि शायद धूप में सिककर ये रोटी हो ले
और मैं बैठकर इसको फिर जी भर खाऊँ"
यूँ ही लिखती रहो - शुभ आशीष.

Amarjeet said...

aapki ye kavitaye badi achi hai.

Dev said...

भूख के विदीर्ण अहसास को बड़ी खूबसूरती से पिरोया है

--- said...

जिंदगी से जो शिकायती लहेजा है, भूख बोने का काफी रोचक है.

Kulwant Happy said...

मर्मिक चित्रण

Anand said...

Aapke praise ke liye mere paas words nahi hai.
Bahut hi badiya. Agar aap ki aagya hoto mein ise apne blog par daalna chahoonga aapka vivran dete hue?

http://anand-lifeonmars.blogspot.com/

Parul kanani said...

anand ji jarur daliyega.

Parul kanani said...

aap sabhi ka shukriya :)

Yatish said...

आप जिस गहराई से किसी भी ज़ज्बात को पकडती है, कुछ भी छूटता नहीं है और शब्दों का ताना बना ऐसा बुनती है की कोई भी उनसे अछूता नहीं रह पाता.
बहुत खूब !!!

कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/

Anonymous said...

behtareen rachna...
lakhon me ek....

kamlakar Mishra Smriti Sansthan said...

yah naam kuch jana pahchana sa lagta hai. thanks a lot of those moment u created this.......

वीरेंद्र सिंह said...

Really very touching.I'm Short of words to express my feelings abt it.


Thanks for this writing.

Unknown said...

my name is sandeep and i belong to holy city varanasi,i read ur creation on hunger.its really an outstanding creation,i appreciate it.