
मैं, बेचैन सी सोच के आशियाने में थी
नही मालूम,कौन सी हसरत इस कदर बह जाने में थी ?
चुस्कियां लेती जा रही थी,गर्माहट देती जा रही थी
मगर कोशिश पूरी, सूरज को डूबाने में थी ।
मैं बरसों में भी इतनी तन्हा न हुई थी
जितनी खाली मैं, उस एक पल के खो जाने में थी ।
भूलती जा रही थी धीरे धीरे ख़ुद को
वो अलग बात है ,मैं फिर भी सब दोहराने में थी ।
मेरी हर बात में मैं ही न थी,कोई और ही था शामिल
बहुत मुश्किल,ये जिंदगी बिताने में थी ।
जिस तमन्ना से उड़ना चाह रही थी मैं ये उडान
उसकी हद मिटटी की गहराईयों तक जाने में थी ।
सुलग रहा था मन,गम से लिपटी थी घुटन
पर कौन जाने,आख़िर जिंदगी किस पैमाने में थी ?
9 comments:
पारुल जी रचना अच्छी लगी करवा चौथ की बधाई
दिल की आवाज लगी.......खुबसूरत भाव है आपके .....बधाई!
bahut achchhi !!
One of the best...
बहुत ही उम्दा व लाजवाब दिल को छु लेनी वाली रचना रही।
मेरी मैं में मेरा ना होना बहुत तकलीफदेह होता है...अच्छी रचना ..!!
bahut sunder bhavo kee abhivyaktee .badhai !
पारुल जी,
मैं कुछ समय से आपकी रचनाओं को पढ़ रहा हूँ...आपके काव्य में भावनाएं अत्यंत सजीव जान पड़ती हैं...अत्यंत संवेदनशील होती हैं आपकी रचनाएँ और आज की रचना इसका अपवाद नहीं है....
bahut achcha lga. likhte rahiye and bich-bich main iss email id par apna blog aur nyi rachna send v kar den. thanks.
indramani2006@indiatimes.com
www.indramanijharkhand.blogspot.com
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