
बस आज फिर यूं ही बचपन याद आया
किसी मासूम सी जिद पे सिसकता मन याद आया॥
कैसे जिए वो पल अपने ही ढंग में
रंग लिया था जिंदगी को जैसे अपने ही रंग में
आज देखा ख़ुद को जब वो सब याद करके
ऐसा लगा कोई भूला सा दर्पण याद आया॥
वो रंग-बिरंगी सी सपनों की किश्ती
वो भूली सी रिमझिम की भोली सी मस्ती
कहाँ छोड़ आया वो मिटटी के खिलोने?
परियों की कहानियों से अपनापन याद आया॥
पलटा हर पन्ना,जिंदगी थी कोरी
मन की कड़वाहट में गुपचुप थी लोरी
मैं खोज रहा था जब अपने जीवन का आकार
तो मुझको बस वो हाथ का 'कंगन' याद आया॥
चारो ही तरफ़ जैसे तब बिखरे थे उजाले
मुझसे लिपटे इस अंधेरे को अब कौन संभाले?
मैले है आज तन से और मन से काले
मुझे चांदनी में चरखा बुनती कहानी का संग याद आया॥
आज सबकुछ याद करके जैसे एक सवाली था मैं
बहुत कुछ पाकर भी बिल्कुल खाली था मैं
जिंदगी को भूलाकर कैसे जी रहा था मैं ?
बहुत रोया मैं,जब मुझे अपना जीवन याद आया॥
कंगन-'माँ का कंगन'
11 comments:
वाह क्या खूब आपको याद आया,
और कितना खूब आपने याद कराया,
पढ़ा और फिर एक बार पढ़ा,
हमारे मन को इतना भाया..
सुन्दर भाव और यादों को समेटे हुए ...रचना पसंद आयी..
बस आज फिर यूं ही बचपन याद आया
वाह....वाह....वाह
बचपन की यादें भली संग में यह तस्वीर।
बच्चा फिर बन जाऊँ क्या मन में उठती पीड़।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
बादलों से हो रही रिमझिम बौछार सी कविता, सुन्दर अति सुन्दर
मैं खोज रहा था जब अपने जीवन का आकार
तो मुझको बस वो हाथ का 'कंगन' याद आया॥
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मुझे चांदनी में चरखा बुनती कहानी का संग याद आया॥
waah bhai wah........
आधुनिक जीवन को आपने सीधे, सरल शब्दों में प्रभावशाली तरीके से काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है । आपकी कविता का कथ्य, शिल्प, भाव और विचार सभी प्रभावित करते हैं। सूक्ष्म संवेदना को आपने बडी बारीकी से रेखांकित किया है । बधाई ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल हो जाने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और अपनी राय भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
aap sabhi ka aabhar..
भोली सी मस्ती
is bholi si masti ko yaad karne kee yah ada achchhi lagi
Parul Ji,
bahut hii sundar bhavnatmak kavita ...badhai.
Poonam
वो रंग-बिरंगी सी सपनों की किश्ती
वो भूली सी रिमझिम की भोली सी मस्ती
कहाँ छोड़ आया वो मिटटी के खिलोने?
परियों की कहानियों से अपनापन याद आया॥
पारुल जी ,
बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने ...धीरे धीरे आपकी कविताओं के कथ्य और शिल्प दोनों में
बदलाव आ रहा है.
हेमंत कुमार
nice poem
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