Friday, February 13, 2009

वैलेंटाइन पर ...


एक नज़र तो उठा के देख,मैं तेरी परछाई हू
शाम के ढलते ढलते तुझ में सिमट आई हू ॥
न छुपा पाओगे मुझसे तुम कोई भी बात
सुबह की सुनहरी धूप में होगा फिर से अपना साथ
दिन ढल जाए चाहे हो भी जाए रात
मैं हमेशा से ही तेरी तन्हाई हू ॥
न ये समझ, मैंने पाया है तुझे खो जाने को
न फासला समझती हू तेरे सो जाने को
ख्वाब जैसे ही जाग जाते है तुम में
जान ले मैं ही उन्ही ख़्वाबों में समायी हू ॥
तू,मुझे कुछ तो अलग समझ इस जहाँ से
कोई अनजाना सा पल दिल लाये ही क्यूँ कहाँ से
जो प्यार तू अपने अन्दर लिए फिरता है
सच तो ये है मैं उसी प्यार की गहराई हू ॥

4 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

सुन्दर भाव

Himanshu Pandey said...

जो प्यार तू अपने अन्दर लिए फिरता है
सच तो ये है मैं उसी प्यार की गहराई हू ॥ "

इन पंक्तियों ने खासा प्रेम-मय कर दिया. वैलेंटाइन की शुभकामनायें .

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर भाव!

Unknown said...

bahut sundar.....