Thursday, November 18, 2010

एक कोस


वो रोज एक कोस चलना
और फिर थक जाना
वो ढूंढना उम्र भर खुद को
भूल में कहीं जिंदगी रख जाना !
वो ख़ामोशी की ठंडक
ज़ज्बातों का सिहरना
कहीं बातों की गर्मी में
मन की आंच तक जाना !
वो तरसना किसी को
यूँ ही पाने के लिये
और ऐसे ही खुद के खोने से
यूँ ही छक जाना !
बड़ी गीली सी मिट्टी है
सोच शायद फिसल जाये
मुमकिन है तकलीफ दे
दिल का कुछ भी बक जाना !
चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !

62 comments:

vandana gupta said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !
बेहतरीन बिम्ब प्रयोग्……………जज़्बातों को खूब उकेरा है………………बेहद प्रशंसनीय्।

wordy said...

mashaallah!

Anonymous said...

antim panktiyaan kamaal kar gayi


vartika.

प्रिया said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !

good one!

Majaal said...

वो गुलज़ार का नाम लेकर,
आपका कलम पकड़ना और,
सोचों का कागज़ पे सरक जाना.
वो हमारा पढना एक एक लफ्ज़,
समझते हुए, और समझते ही,
दिल का अचानक धड़क जाना...

लिखते रहिये ....

जयकृष्ण राय तुषार said...

bahut hi sundar najm badhai

जयकृष्ण राय तुषार said...

kya khoob likha hai aapne parulji

सागर said...

आप गजब लिखती हैं.. यह पहले भी कहा है नया कहूँ... ब्लॉग पर एक बेहतरीन छंद में लिखने वाली ... आपके लिए एक ब्लॉग की सिफारिश करूँगा... "गीत कलश " यह आपको
गौतम राजिरिशी के ब्लॉग पर मेरी पसंद में मेरे प्रिय शब्दंवेशी में राकेश खंडेलवाल नाम से मिल जाएगा... वहां देखिये शब्दों की जादूगरी और छंद की खूबसूरती... कुछ तकनिकी समस्या है वरना रास्ता नहीं बताता सीखा लिंक देता.

Anonymous said...

waah....
I m browsing with my cell phone. So detail comments baad me.

Apanatva said...

sadaiv kee bhati atulneey abhivykti.

प्रवीण पाण्डेय said...

मुठ्ठी भर धूप ही चाहिये सिकने के लिये।

राजेश उत्‍साही said...

मुठ्ठी भर धूप में पकना । अद्भुत बिम्‍ब है।

Dr Xitija Singh said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !

बहुत खूब पारुल जी ...

Anand Rathore said...

hamesha ki tarah ..alag , khoobsurat ..

पी.एस .भाकुनी said...

सुंदर अभ्व्यक्ति , वाकई लाजवाब रचना
आभार.......

kumar zahid said...

वो रोज एक कोस चलना
और फिर थक जाना

वो ढूंढना उम्र भर खुद को
भूल में कहीं जिंदगी रख जाना !

बड़ी गीली सी मिट्टी है
सोच शायद फिसल जाये
चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना


कितनी खूबसूरती से ख्यालों के फंदे आप डाल रहीं हैं ...अदब की इस सर्दी में अब कंपकंपी नहीं लगेगी..

कुश said...

चाँद की सेक पसंद आयी..

Anonymous said...

पारुल जी,

लफ़्ज़ों पर आपकी जादूगरी और उर्दू पर आपकी पकड़ के लिए आपको सलाम.....खूबसूरत नज़्म......एक ही लफ्ज़ मेरी तरफ से ...सुभानाल्लाह....आपकी क़लम यूँ हीं चलती रहे|

पूनम श्रीवास्तव said...

parul ji
bahut hi gahari soch ko liye aapki yah rachna bahut pasand aai.

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !
bahut hi sundar abhivykti.
poonam

अनुपमा पाठक said...

sundar!

उपेन्द्र नाथ said...

nice poem...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन ! किस अलफ़ाज़ से मैं तारीफ़ करूं ... कि हर लफ्ज़ दिल में उतर जाता है ..

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........

अनामिका की सदायें ...... said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति.

केवल राम said...

वो तरसना किसी को
यूँ ही पाने के लिये
और ऐसे ही खुद के खोने से
यूँ ही छक जाना !
बहुत खूब ..पूरी कविता में सुंदर बिम्ब प्रयोग किया है ..जीवन कि तलाश और फिर खुद को खो जाना ..यही तो नियति है ..शुभकामनायें

विनोद कुमार पांडेय said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना

बढ़िया शब्द चयन और सुंदर भाव...उम्दा रचना के लिए धन्यवाद

crazy devil said...

Bahut accchi hai...

Anupama Tripathi said...

कमाल के जज़्बात हैं...!!अंतस तक उतर गयी भावनाएं -
बेहतरीन रचना -
शुभकामनाएं .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वो ढूंढना उम्र भर खुद को
भूल में कहीं जिंदगी रख जाना !
वो ख़ामोशी की ठंडक
ज़ज्बातों का सिहरना

बहुत खूबसूरत ....

अरुण अवध said...

बेहद खूबसूरत..........कमाल !

Gaurav Singh said...
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Gaurav Singh said...
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Gaurav Singh said...
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Manav Mehta 'मन' said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

Manav Mehta 'मन' said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........

rajesh singh kshatri said...

Apki taswir ki tarah lajwab kavita...
बहुत सुन्दर ...
बधाई ...

Rohit Singh said...

आपकी कविताओं को पढ़ना कई बार अपने को ही पढ़ना होता है।

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती !

अमिताभ श्रीवास्तव said...

परुलजी, बहुत ही नरम-खुरदुरी सी और एकदम करीब सी लगने वाली रचना है।
वो तरसना किसी को
यूँ ही पाने के लिये
और ऐसे ही खुद के खोने से
यूँ ही छक जाना !..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बड़ी गीली सी मिट्टी है
सोच शायद फिसल जाये
चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना
बहुत बहुत सुन्दर कविता.

Avinash Chandra said...

ये कोई जादू जैसा है ना...धूप में पकना...जबरदस्त!!!!!

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ बिखरे शब्दों को बखूबी जोड़ा है आपने .....!!

vijay kumar sappatti said...

tareef me kuch bhi kaha na jaayenga .. itni acchi rachna ke liye kya kaha jaa sakta hai , saare shabd jaise khud ek kahani kah rahe hai ,,

bahut sundar rachna

badhayi

vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

rajesh singh kshatri said...

बहुत बढ़िया ...
लाजवाब ...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !

bahut pyari,
kitne pyare jajbaat hai aapke
badhai aur subhkamna.......

Manav Mehta 'मन' said...

बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर पारुल जी । चाद से कौन सिका है धूप ही चाहिये,मुठ्ठी भर ही सही ।

Archana writes said...

bahut hi shandar abhivyakati...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

पारुल जी,
क्या कहूं?
ओ के! आई गोट इट!
नमस्ते!
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

पारुल जी
सस्नेहाभिवादन !

इतना विलंब से पहुंचा हूं …
ज़ाहिर है, नया क्या कह पाऊंगा
चांद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !


सच तो यह है , कहने के सुख की बजाए पढ़ने और गुनने का सुख साथ ले'कर जा रहा हूं …

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

हरकीरत ' हीर' said...

कुछ थके-थके से शब्द ज़िन्दगी ढूंढते हैं ......!!

अंजना said...

बहुत सुन्दर......

Gaurav Singh said...

:(

Pawan Rajput said...

bhut khoob... jab main saxhai padta hun to bhut acha lagta

Rohit Singh said...

पारुल कहां से आप इतने मोतियों को चुनती हैं। मैं तो हैरान रह जाता हूं। हर बार आपको पढ़ना अच्छा लगता है। कहीं सर्दी की धूप का अहसास होता है तो कहीं गर्मी की।

Saleem Khan said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
मुट्ठी भर धूप में
हो सके तो पक जाना !

gr8

saleem
9838659380

kumar zahid said...

वो ढूंढना उम्र भर खुद को
भूल में कहीं जिंदगी रख जाना !

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा

वो तेरी एक सतर सौ सवालों की धनक
तेरी तस्वीर का खोना, तेरा उखड़ जाना
हां कहीं रक्खी है वो चुराकर तली हुई तड़प
वो तुझे देखना कनखनी से, और छक जाना


वाह वाह वाह ...उस्ताद ख्याल आपके

kumar zahid said...

वो ढूंढना उम्र भर खुद को
भूल में कहीं जिंदगी रख जाना !

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा

वो तेरी एक सतर सौ सवालों की धनक
तेरी तस्वीर का खोना, तेरा उखड़ जाना
हां कहीं रक्खी है वो चुराकर तली हुई तड़प
वो तुझे देखना कनखनी से, और छक जाना


वाह वाह वाह ...उस्ताद ख्याल आपके

अंजना said...

सुन्दर रचना ...

Thakur M.Islam Vinay said...

पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

Udan Tashtari said...

आजकल हो कहाँ?

M VERMA said...

चाँद की सेक से
कोना कोई गरम न होगा
सुन्दर बिम्ब संयोजन .. बहुत खूब