वो रोज रोज की बातें
वो ख़ामोशी को खुरचना !
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
न जाने कैसी उलझन है
कुछ ख्वाहिशों में अनबन है
मुश्किल ही लगता है अब तो
खुद से ही जैसे बचना !
लिखने जो आज बैठा हूँ
वो सब जो न कभी कहता हूँ
जायज सा लग रहा है मुझे
लफ़्ज़ों का शोर मचना !
कुछ पर तो रंग फैले हैं
और कुछ अभी भी मैले है
इस सोच से तो नामुकिन सा है
एक 'जिंदगी' को रचना !
55 comments:
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई
वो ख्वाहिशो की अनबन , न जाने केसी उलझन ,
ये जिंदगी का मेला , फिर भी ये दिल अकेला ?
कुच्छ एसा ही है न दोस्त बहुत खूब !
खामोशी खुरचने के क्षण बहुत कुछ सिखा जाते हैं।
खुरचना शब्द अच्छा लगा
जी हाँ -पर इसी सोच से इतनी सुंदर कविता रच डाली आपने -
इसी उलझन का नाम ज़िन्दगी है -
इसी उलझन से एक कविता बनती है .
अनेक शुभकामनाएं -
कह कर मुश्किल रचना,
कर ही दी अपने रचना,
अच्छा नहीं होता इस तरह,
खुदी की बातों में फंसना ,
पर यूँ तो देखा जाए तो,
आपने भी कहा तो है सच ना
आगे भी ऐसी धासू कविताई करके,
आईने के सामने मटकना ...
लिखते रहिये ....
वो रोज रोज की बातें
वो ख़ामोशी को खुरचना !
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
खामोशी को खुरचना कितना मुश्किल होता है ...बहुत कशमकश दिख रही है इस रचना में ...
पारुल दी, बहुत सुन्दर ...
बहुत सुन्दर है 'जिंदगी' की रचना
ये सभी के साथ होता है कभी ना कभी... इसलिए अपनी सी लगी ये रचना.
मन की कश्मोकाश को सुंदर अलफ़ाज़ दिए हैं.
जिंदगी का कैनवास है ही ऐसा कि रोज बनाओ रोज मिटाओ।
पारुल जी,
मुझे फुद्दू साबित करके.... आपको आता है मज़ा!
.............................................है ये सच ना!!!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
khoobsurat :)
khoobsurat :-)
बहुत सही..एकदम करीब से गुजरी!!!
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति .........
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पढने को मिला.....मुझे फिर से उत्साहित करने के लिए धन्यवाद है जी...
कुंवर जी,
zindagi aapke liye kya hai..is sawal ka javab talasiye...soch banti hai bigadti hai...mushkil to hai ..magar soch se hi zindagi banti hai..ye soch jo aaj zindagi ki rachna ko namumkin ki dahliz par le aayi hai..badalte hi... rachna shuru ho jaayegi..
jindagi ki haqikat vayan ki hai aap ne...very nice.
antardwand darshatee rachana...........
ye dour to aate jate rahte hai jeevan me .
parul ji ... ek aur behad khoobsurat rachna .... isi kashmakash mein zindagi guzar jaati hai ....
पारुल जी बहुत ही खुबसूरत रचना है....
अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ....
मेरे ब्लॉग पर कभी कभी....
पारुल जी,
बहुत खुबसूरत हर बार की तरह.....कुछ नए शब्द जैसे 'खुरचन' बढ़िया लगे....आपकी इस रचना पर एक शेर अर्ज़ किया है मुलाहजा फरमाइए-
" खुद को समेत लूँ तो तेरे पास आऊंगा,
अभी तो मैं अपने आप में बिखरा पड़ा हूँ"
ख्वाहिशों की अनबन न जाने कैसी उलझन
लफ्जों का शोर मचना,
जिंदगी को रचना
वाह क्या खूब लिखा है ।
वो ख्वाहिशो की अनबन , न जाने केसी उलझन ,
ये जिंदगी का मेला , फिर भी ये दिल अकेला
sunder prastuti.......
sweet
अच्छी रचना , बहुत - बहुत शुभ कामना
oye hoye ... mausam hai aashikana
बहुत सुन्दर रचना है!
--
हर एक छंद में नया बिम्ब समाया है!
ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना !
वो ख़ामोशी को खुरचना !
अति सुंदर
यह रोज रोज कि बातें अच्छी लगी. जीवन रचना तो फिर भी हुई है और होती रहेगी.
दीपोत्सव कि हार्दिक शुभकामनाएँ.
आपकी खूबसूरत कविता पर ज्योति पर्व पर इन्र्दधनुषी बधाइयाँ
सुन्दर रचना ..........स्वयं को स्वयं में देखती हुई आँखें
जब बोलती हैं तब ऐसी ही रचना जन्म लेती है !
दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें
कुँवर कुसुमेश
बहुत सुन्दर रचना है !
आपको और आपके परिवार को एक सुन्दर, शांतिमय और सुरक्षित दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें !
wish u happy diwali and new year
वो खुद का अच्छा न लगना
वो आईने को जंचना !
ऐसा पढ़ना अच्छा लगा...
bahut khoob.
कुछ पर तो रंग फैले हैं
और कुछ अभी भी मैले है
इस सोच से तो नामुकिन सा है
एक 'जिंदगी' को रचना !.........wahh bahut khoob badhai HO!!
Jai Ho Mangalmay Ho
Wo khud ka achha lagna,
Wo aine ko jachana.
Har insan ka dil ishwar ki anupam sristi hai.Hamare man mein rache base bhao hi hamare dil, dimag aur chehare ko kabhi kabhi badalate rahate hain. Aina wohi rahata hai chehare badal jate hain.An Emoyional post.
काफी समय बाद पढ़ने को मिला शब्द खुरचना, अच्छा लगा पढ़कर
आज तो कहां से कहां पहुंचा दिया। अब तो दर्पण को देख कर हम डरते हैं और दर्पण हमें देख कर।
Bahut Sundar Rachna...
पिछली नजम का हिसाब दर हिसाब
नींद की हथेली पर
एक ख्वाब
मेरी उम्र का
हिसाब
कुछ नमकीन
ख़ामोशी की आह
एक किताब
हरफ-हरफ जैसे बरस
जिंदगी के सवाल पर
शायद एक जवाब
चाँद जैसे
नीला नकाब ?
वाह जनाब !!
हर्फ़ दर हर्फ़
लाजवाब !!!!!!
aazad nazm hote hue bhi ...ek achhi lay bandh rakhi hai aapne... :) ek sans me padh gaya ..khurachne wali baat sabse achhi lagi ...
पारुल जी ,
एक जिज्ञासा आपकी रचनाओं को लेकर हमेशा रही है ....
आप महिला होकर हमेशा पुरुष रूप में क्यों लिखती हैं ....?
हालांकि ऐसा लिखने पर कोई पाबन्दी नहीं पर आपकी हर नज़्म पुरुष रूप में ही होती है ...
बहुत खूब..एक सुंदर अभिव्यक्ति...बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद
पारुल जी , मन के अन्दर चलने वाले द्वन्द्व को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने।
जो कोई भी पूरी दुनिया को खूबसूरत ढंग से देखेंगा वह इसी तरह की रचना लिखेगा
वेलडन पारूल
कुछ पर तो रAग़ फ़ैले हैं, और कुछ अभी भी मैले हैं, ऐसे मेंm उश्किल है ज़िन्दगी को रचना। क्या बात है।
हरकीरत हीर जी की नज़र पर नज़र हैं ये सतरें...
अंदाज़ बदलता जाता है , तस्वीर बदलती जाती है ,
रातों की शक्ल पिघलती है , जब सुबह मचलती आती हे।
heer ji..aapka sawaal naya nahi..bahut log yahi kehte hain..iski koi khas vajah nahi..bas yun samjhiye..zazbaat jis tarah se aate hai..vaise hi utar jate hai... :)
bahut achi rachna k liye bhadhai...nicely written...
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