
वो जी रहा था 'जिसे'
मैं 'उसको' एक किताब में पढ़ रहा था
वो हकीक़त ही थी
'जिसको' एक मुद्दत से मैं ख्वाब में गढ़ रहा था॥
कुछ खूबसूरत लफ़्ज़ों की नक्काशी
ख़ामोशी भी फुर्सत से गयी तराशी
परत दर परत बुनी उस कहानी से
मेरे मन का बादल भी उमड़ रहा था ॥
बरस रहा था मन में होले होले
कुछ रंग कल्पनाओं के घोले
और मैं बस भीगता जा रहा था
वो रंग अब मुझ पर भी चढ़ रहा था ॥
'उसका' दर्द मैं खुद में बो चुका था
मेरे वजूद में वो 'किरदार' शामिल हो चुका था
मैं खुद धीरे धीरे खाली हो रहा था
और वो चुपचाप से मुझ में भर रहा था ॥
मैं कहानी को खत्म करने की जल्दी में था
या खुद को भूलने की गलती में था
उसको खुद में शामिल करने की एक चाह
और उस 'जिंदगी' का अक्स मुझ में निखर रहा था ॥