Sunday, May 16, 2010

मन..


चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
छूने दे क्या गीला है
बेरंग है या नीला है
कोई तो आकार मिले
कितना है ये नपने दे॥
कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
हो न कहीं खट्टी निंबोली
आने दे शब्दों की टोली
ख़ामोशी को आज जरा
जी भर सब कुछ बकने दे॥
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥

57 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जल जाने.... दे धूप में.... थोडा सा तो पकने दे..... यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं..... काफी दिनों के बाद .... और आज सबसे पहले आपके ही ब्लॉग पर क्लीक किया.... बहुत सार्थक रहा.... अंतिम पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....

रिगार्ड्स....

Ra said...

गहरे भावो के अभिव्यक्ति ...कुछ लाजवाब पंक्तिया
चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥

दिलीप said...

waah Parul ji...umda soch aur bhaavo ke sath ek atyant hi sundar prastuti...bahut khoob...

Dev said...

अति उत्तम रचना .......

अविनाश वाचस्पति said...

सरल और सहज अभिव्‍यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।

अविनाश वाचस्पति said...

सरल और सहज अभिव्‍यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।

अविनाश वाचस्पति said...

सरल और सहज अभिव्‍यक्ति इतना गहरे तक कह गई। जो कहा वो सब मन में बस गया। जो आपने रचा, बस सब सच रचा।

Anonymous said...

ohhhh !!!!
kya kahne..
kya likha hai aapne...
कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥
waah...

Saumya said...

very beautiful....loved it!!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

छूने दे क्या गीला है
बेरंग है या नीला है
कोई तो आकार मिले
कितना है ये नपने दे॥
क्या बात है ! बहुत सुन्दर !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।

बहुत सुन्दर रचना!
मन से जो टपकता है वही तो कविता है!

kunwarji's said...

वाह!शब्दों कैसे मजबूर कर दिया जाता है अपने भाव व्यक्त करने के लिए उसी का नजारा यहाँ देखने को मिला इस बार भी!

बहुत बढ़िया!

कुंवर जी

Creative Manch said...

"आने दे शब्दों की टोली
ख़ामोशी को आज जरा
जी भर सब कुछ बकने दे॥
देखूं, जीवन क्या तीखा है
या कि बिलकुल फीका है"


लाजवाब पंक्तिया
bahut sundar kavita

aabhaar & shubh kamnayen

arvind said...

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।
..........लाजवाब ,सार्थक रचना.

M VERMA said...

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
बहुत सुन्दर, क्या सुन्दर एहसास हैं
वाह

माधव( Madhav) said...

well said , very soothing

http://madhavrai.blogspot.com/

http://qsba.blogspot.com/

दीपक 'मशाल' said...

क्या कहूं इसे मैं पारुल जी.. चाहता तो मैं भी हूँ कोई ऐसी ही खूबसूरत रचना लिखना, पर आजकल कुछ और ही लिख जाता हूँ. लगता है ये मेरे वश की बात ही नहीं.. आभार एक सुन्दर रचना के लिए..

Shiv Kumar Sahil said...

pahli baar aapke blog par aaya kafi der tak kafi rachnayein padta rha.... bahut hi achi rachnayein hein sab ki sab ...

मीनाक्षी said...

चर्चा मंच से होते इधर पहली बार आना हुआ....
जीवन कहीं तीखा भी है और कहीं फीका भी है लेकिन इस गरीब बच्चे की तस्वीर लेने के बाद फोटोग्राफर ने
अपना जीवन ही समाप्त कर दिया था....यहाँ तस्वीर आधी है..बस "मन" बेचैन हुआ और इतना लिख बैठे..

Renu goel said...

@ चुभता hai सुई की तरह
कहीं तो जरा टकने दे ....
टक गया है गीत तुम्हारा .....
@ हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे ....
देखो कैसे भीगे भीगे शब्द टपक रहे हैं ....

D.P. Mishra said...

VERY NICE............

राजकुमार सोनी said...

अपने ब्लाग पर आपकी टिप्पणी देखकर यहां आया हूं.. ये क्या आपने तो कविता के क्षेत्र में अच्छा खासा तहलका मचा रखा है। देखते-देखते तीन चार कविताएं पढ़ गया। सभी लाजवाब और एक से बढ़कर एक।
आप मेरी बधाई स्वीकार करें और यूं ही बेहतर लिखती रही। आपको शुभकामनाएं।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

parulji,
hindi chhand ho yaa dohe yaa geet, yaa fir progaatmak kavitaye..iname se chhand aour dohe to likhanaa hi kam ho gaye he, likhe bhi jaate he to bhi uname ras ka abhaav hotaa he../ aapki post 'man' hi nahi balki iske baad ki bhi kai post padhhi..shabdo ke taartamy ki anokhi peshakash he. ..nishchit hi aapka adhdhyan sadmaarg par he, meri shubhkamnaye

wordy said...

baanwre se man ki sundar hook!

Ashish said...

jai ho! :)))))))))))

Anonymous said...

sitare buland hai
!!!

Ashok Singh Raghuvanshi said...

भाव जो सीधे मन के अंतस्तल मेँ उतर गये।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गहरे भावों से लबरेज एक मन को छू जाने वाली कविता।

दिगम्बर नासवा said...

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे। ..

सच है मन को हल्का होने दे ...
पर मन मानता नही है ... बहुत लाजवाब लिखा है ......

daanish said...

!!
सच !!

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा रचना पर हार्दिक बधाइयाँ !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

.कई बार मुझे ऐसा लगता है कि तुक मिलाने के चक्कर में कविता के भाव, खूबसूरती से अभिव्यक्त नहीं हो रहे हैं...इससे से तो अच्छा होता कि सीधे-सीधे लिख दिया होता..!
..आपके क्या खयाल है?

विनोद कुमार पांडेय said...

bahut sundar abhivyakti...badhiya lagi...badhai

Harshad Mehta said...

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे

Beautifully expressed emotions.

योगेन्द्र मौदगिल said...

achhi rachna

Unknown said...

sabse pahle to bura laga....pahli baar aapke blog ko pada ! kyoki main vilambh se aapke blog par aaya ...baat aapki post ki ...ek shabd ADBHUT!!
Adbhu abhiwyakti....pictures ka sundar prayog.....swagat swagt swagt hai..or haa mere blog par aana aniwariy hai...

Jai HO Mangalmay HO

दीपक 'मशाल' said...

????? गायब...

manu said...

kavitaayein...aur chitr....

ek doosre ke saath sahi nyaay karte hain..

parle 'G'

sandhyagupta said...

sundar aur bhavpurn.yun hi likhte rahiye.

RAJWANT RAJ said...

aapki bhavnao ko shbdroop me dekh ke mn rita ho aaya .
rukhe kor ko bhi koi mn chhkne ka jjba rkhta hai,kya bat hai

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

hey paarul......kyaa khub likhaa hai tumne.....aaj man jaraa chhakne de ...gazab.....!!poori kavitaa man ko chhoo gayi hai sach....!!

Urmi said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है ! बधाई!

kamlakar Mishra Smriti Sansthan said...

antar man ki abhibaykati hai......thankas

hem pandey said...

मन से टपके भावों को सुन्दर शब्दों की टोली के माध्यम से उत्तम तरीके से व्यक्त किया है.

arpit said...

bahut sunder abhivyakti , aapki kavita padhte hue mujhe anayas he prasoon joshi ka smaran hua , aapki sheily kuch kuch unse milti he , ya kahe unki aapse milte he to bhi atishyokti nahi hogi

http://bejubankalam.blogspot.com/

कुमार विनोद said...

अब तक की बेहतरीन. शब्दों की सुंदर भावलड़ियां! मझे आपका follower बना गईं...

दीपक 'मशाल' said...

पारुल जी, गायब से मतलब.. काफी समय से कोई नई पोस्ट नहीं.. कहाँ गायब हैं आप??

माधव( Madhav) said...

अच्छी भावनापूर्ण रचना , तस्वीर दिल झकझोर रही है

ravish yadav said...

a great one....
its deep,,,

kumar zahid said...

चुभता है सुई की तरह


कच्ची मिटटी का सांचा
खींच जाने दे खांचा
जल जाने दे धूप में
थोडा सा तो पकने दे॥


पारुल,
अगर समझने के लिए मैं इसे यूं कहकर समझ लूं तो आप खुश ही होगी, पता है मुझे..

मिट्टी का कच्चा ढांचा
खींचे नया कोई खांचा
कड़ी धूप में डाल इसे
थोड़ा सा तो पकने दे

रचना और भाव की दिशा बहुत गंभीर हैं, ओर वह जो चित्र आपने लगाया है बस
..रूह को कंपाने के लिए काफ़ी है..
आपके ही शब्दों में-

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।


देखूं, जीवन तीखा है !?
या कि बिलकुल फीका है
ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥

Unknown said...

achha flavopur hai .. :)

हो न कहीं खट्टी निंबोली
आने दे शब्दों की टोली

achha hai ye couplete



ख्वाहिश का कोई रुखा कोर
आज जरा मन छकने दे॥

nicly penned. :) keep writing

Anonymous said...

bahut khoob
shandar kavita
pahli 4 lines ne hi sama bandh dia tha

चुभता है सुई की तरह
कहीं तो जरा टंकने दे
हो जाने दे छेद जरा
मन से कुछ तो टपकने दे।

Ashish said...

well done :)

Dankiya said...

khwahish ka koi Rukha kauraaj zara man chhalakne de...
bahut sundar Parul ji...
chhoo liya dil ko...!!
kabhi mere blog par tehelte huye aaiyega...

Unknown said...

bhut gaharayee hai....aapki abhivyakti mein....

Unknown said...

bhut ghrayee hai aapki abhivayati mein....

Unknown said...

bhut ghrayee hai aapki abhivayati mein....