
बात पुरानी है ...
जब ख्वाब बहुत ही छोटे थे
और हम उन पर लगाते मन के गोटे थे
फिर कैसे वो चमकते थे
और हम कितने खुश होते थे
बात पुरानी है ...
जब हो जाते थे खट्टे
नींबू के अचार में
मिश्री की डलियाँ घोलते थे
नानी-दादी के प्यार में
बात पुरानी है ...
हो जाते थे जब हम ढीले
वो कस जाया करती थी
पर जब हम उसमें पतंग से उलझते थे
वो गुपचुप हंस जाया करती थी (माँ)
बात पुरानी है ...
अक्सर हम जागते रहते थे
रातें थककर सो जाती थी
चरखे वाली नानी से
यूँ बातें कुछ हो जाती थी
बात पुरानी है ...
कैसे हम गोल गोल
चाँद के चक्कर लगाते थे
वो हमें कहानी कहता था
और हम वहीँ सो जाते थे
बात पुरानी है ...
कैसे हम सूरज को उठता देख लेते थे
उसकी गर्माहट पर
ख्वाहिशों की रोटी
सेंक लेते थे
बात पुरानी है ...
कैसे हम जिद करके
हवाओं से दौड़ लगाते थे
कौन किस से है आगे
बस ये होड़ लगाते थे
बात पुरानी है ...
कैसे मन की मिटटी को
बारिश में गीला करते थे
फिर कैसे सपनों से
उसका रंग नीला करते थे
बात पुरानी है...
कुछ भी पाने की जिद में
हम कैसे खुद को खोते थे
रह जाते थे खुद छोटे
और आंसूं मोटे मोटे थे
बात पुरानी है...
ऐसा लगता था तब शायद
जिंदगी जादू की पुडिया थी
मन के कुछ खिलोनों में
ये भी प्यारी सी गुडिया थी
बात पुरानी है...
उन यादों के आगे जैसे
अब भी सब कुछ बौना है
वो होता तो जीवन था
ये होना भी क्या होना है................