
सोचता हूँ मैं यहीं
कि शायद कभी मैं कहीं
घुल पाऊँगा क्या
तेरे नीले रंग में ?
कोई तो आकार मिले
इस जीवन का सार मिले
ख्वाब बन उलझा रहूं
तेरी आँखों की पतंग में !
तेरी उम्मीद जब कभी
नींद में अंगड़ाई ले
रात आकर चुपके से
तेरी आँखों से स्याही ले
हुस्न तेरा चांदनी में
चाँद से वाह-वाही ले
और जागे सुबह तो
बस तेरी ही उमंग में !
देखकर तुमको जब
आईने भी आहें भरने लगे
करके रोज दीदार तेरा
बेसब्र सूरज ढलने लगे
जिंदगी की बात हो तो
जिक्र तेरा चलने लगे
तन्हाई भी रहने को है
बेताब तेरे संग में !
ख्वाहिशें दिखना चाहती है
तुझ सा तेरे लिबास में
हर एहसास मिटने को
बैठा है तेरी आस में
देखना बाकी है कुछ
तो बस यही बाकी है अब
किस तरह ढलती है प्यास
अब सिर्फ तेरे ढंग में !
13 comments:
क्या बात है बेहद उम्दा , जैसा आपके ब्लोग का नाम है रचनायें भी वैसी लाजवाब हैं ।
मिट मिट कर मिल जाती है प्यास
इसके बावजूद भी है आस
काश मै समंदर का किनारा न होता .....
बहुत खूबसूरत एहसास है... इसको ऐसे ही बरकरार रखिएगा...
बेहतरीन..उम्दा रचना!
जिंदगी की बात चले तो जिक्र तेरा हो ....
सुन्दर ....!!
acchee rachana
कोई तो आकार मिले
इस जीवन का सार मिले
ख्वाब बन उलझा रहूं
तेरी आँखों की पतंग में ...
मन के पागल पाख़ी की उड़ान का कोई अंत नही ........ बहुत सुंदर रचना है .......
dhanywaad
खूबसूरत !
कोई तो आकार मिले
इस जीवन का सार मिले...
बेहतरीन..उम्दा, सुन्दर ....!!
सुन्दर एवम भावपूर्ण कविता---
पूनम
aap sabhi ka hardik aabhar!
like it ... esp
तेरी उम्मीद जब कभी
नींद में अंगड़ाई ले
रात आकर चुपके से
तेरी आँखों से स्याही ले
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