Monday, November 23, 2009

दरकार ! (२६/११)पर विशेष !!!!



बोझिल सा मन ढलता नही
अब किसी आकार में !
ढोता हूँ एक बोझिल सी सोच
जिंदगी के सार में !
क्या कहें किसी को ,क्या लिखें ?
नारे लगाये या चीखे
लगता नही वो बात है पहले सी
अब शब्दों की धार में !
मैं जी रहा हूँ ख़ुद को ही
या ये "चीज़" कोई और है
मैं देखता हूँ चिथड़ी जिंदगी
यूँ भी रोज के अखबार में !
जो रोज अपने व्यक्तित्व पर
जी भर राजनीति करे
उसका भरोसा क्या कि
वो आईने से भी प्रीती करे
जिसने कभी सुनी नही
अंतर्मन की आवाज
आख़िर क्या कर रहा है वो
इस देश की सरकार में !
सदियों से संभाली आन को
वो लम्हों में लूट जाते है
वो बरसों सजा पाते नही
यहाँ पल में अपने छूट जाते है
वो लगाकर एक चिंगारी
राख कर देते है देश
और मैं परवाह करता हूँ बस इतनी
मेरा घर न हो कहीं इस कतार में !
वर्तमान ही यहाँ जब
भूखा नंगा दिखता है
एक रोटी के मोल में
देश का भविष्य बिकता है
आंखों से उतार ले तू
धुंधले सपनों की परत
कुछ नही रखा है यूँ भी
भूखे सपनों की दरकार में !

8 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जो रोज अपने व्यक्तित्व पर
जी भर राजनीति करे
उसका भरोसा क्या कि
वो आईने से भी प्रीती करे
जिसने कभी सुनी नही
अंतर्मन की आवाज
आख़िर क्या कर रहा है वो
इस देश की सरकार में !

बहुत सुन्दर, बहुत खूब एकदम सत्य ! आगामी २५ तारीख को मैं भी इस सम्बन्ध में अपना एक लेख और कविता अपने ब्लॉग पर डालूँगा , पढियेगा जरूर !

निर्मला कपिला said...

सदियों से संभाली आन को
वो लम्हों में लूट जाते है
वो बरसों सजा पाते नही
यहाँ पल में अपने छूट जाते है
वो लगाकर एक चिंगारी
राख कर देते है देश

जो रोज अपने व्यक्तित्व पर
जी भर राजनीति करे
उसका भरोसा क्या कि
वो आईने से भी प्रीती करे
जिसने कभी सुनी नही
अंतर्मन की आवाज
आख़िर क्या कर रहा है वो
इस देश की सरकार में !
लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

जिसने कभी सुनी नही
अंतर्मन की आवाज
आख़िर क्या कर रहा है वो
इस देश की सरकार में !
बिलकुल सही कहा आपने.......

अनिल कान्त said...

bahut behtreen rachna di hai aapne is silsile mein

Mithilesh dubey said...

लाजवाब रचना । बहुत-बहुत बधाई

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना!

Parul kanani said...

dhanywaad!

Gain some more knowledge said...

वो लगाकर एक चिंगारी
राख कर देते है देश
और मैं परवाह करता हूँ बस इतनी
मेरा घर न हो कहीं इस कतार में

khubsurat rachnaa ...