Thursday, June 7, 2018

मौसम...



एक समन्दर लिखना
कुछ किनारे लिखना।।
मै अपने लिख दूँगी
तुम, तुम्हारे लिखना।।
लिखना कैसी है वो बूंदें
जो बारिश में बरसती है
और कैसा है वो पानी
जिनको आंखें तरसती है
कि हो सकता है बन जाये
फिर से वही मौसम
मैं भी लिख दूँगी खामोशी
तुम दर्द अपने सारे लिखना।।
कभी तन्हा से होकर
दोनों चुपचाप रोयेगें
ये मौसम जो लिखा है
इसे जी भर भिगोयेगें
ये भी हो कि बन जाये
फिर से कोई कहानी
मैं भी लिख दूँगी अपना इश्क
तुम भी क्या हारे लिखना?

Friday, May 11, 2018

जख्म....



                         


वो जो अक्सर फजर से उगा करते है
सुना है दिल से बहुत धुआं करते है।
जलता है इश्क या खुद ही जल जाते हैं
कलमे में खूब चेहरे पढा करते है।।
फजल की बात पर खामोशी थमा देते है
बेवजह ही क्यों खुद को खुदा करते है।
आयतें रोज ही लिखते है मदीने के लिए
और अक्सर मगरिब में डूबा करते है।।
मेरी रूह तक भी आती है लफ्जों की आहट
मुद्दतों से जो ऐसे जख्म लिखा करते है।।



Thursday, March 15, 2018

मेरी खामोशी....


                     


तेरे ही जिक्र की जासूसी मेरी खामोशी है।
रहूं मैं चुप क्यूँ, तेरी बातों सी मेरी खामोशी है।।
हरफ हरफ से लम्हे जो बिखर जाते है।
पता चला है कि हम तन्हा भी मुस्कुराते है
मुझमें जैसे तेरी यादों सी मेरी खामोशी है।।
सिरहाने रख अपनी कुरबत,ख्वाब खटखटाते हो
रात से कह भी दो आखिर तुम क्या चाहते हो
तेरे दिल के ही इरादों सी मेरी खामोशी है ।।
देख लो आज रंग तेरे उन्स का जो पहना है
कुछ अलग सी हूँ,ये कायनात का भी कहना है
हां बिल्कुल, तेरे जज्बातों सी मेरी खामोशी है।।
जो इस तरह भी मेरी ज़िंदगी यूं कट जाये
ये मुमकिन है लफ्ज मेरे, तेरी चुप्पी भी रट जाये
कोई कहता है तेरे वादों सी मेरी खामोशी है।।






Monday, February 19, 2018

रूबाई.....


                 


इश्क के सूफियाने में
दिल की रूबाई लिख दे।
बहुत खामोशी है
कोई शहनाई लिख दे।।
शोर होगा तो लगेगा
अकेले नहीं हैं हम
और कुछ ना सही
तकदीर में अपनी तन्हाई लिख दे।।
इस बहाने तुम्हें
थोड़ा सा जी जायेगे
टूटे अश्कों से
कोई बहर सी जायेगें
और भेज देगे
एक चांद हिज्र की रातों में
इश्क में मेरे तू बस अपनी
खुदाई लिख दे।।
अगर हो इश्क
तो सिर्फ दीवाना सा हो
कोई कलमा भी हो तो
मयखाना सा हो
मुद्दतों से अपनी ही कैद में हूं
मेरे मौला अब तो
मेरी रिहाई लिख दे।।





Tuesday, January 16, 2018

तेरा भी है, मेरा भी।।


                     




गम का खजाना तेरा भी है, मेरा भी
ये नजराना तेरा भी है, मेरा भी।
कुछ मौसम उलझे है ऐसे आंखों में
ख्वाबों का बरबस चुभ जाना तेरा भी है, मेरा भी।।
यूं मंजर कतरा कतरा हो जाते हैं
डूबा सा कोई मुहाना तेरा भी है, मेरा भी।।
बातें कईं अब बंद पडी है दिल के खत में
ढूंढे कोई वो एक ठिकाना जो तेरा भी हो, मेरा भी।।
दिल जाने सब कुछ फिर भी ना कह पाए
चुप सा फसाना तेरा भी है, मेरा भी।।
दर्द हमारी खामोशी का कोई क्या जाने
जख्म पुराना तेरा भी है, मेरा भी।।
प्यार हमारा एक हमें यूं कर जाए
दिल दीवाना तेरा भी है, मेरा भी।।

Monday, December 4, 2017

यादें.....






एक कप चाय की प्याली
एक नज्म गुलजार की
यूं ही उम्र बढ जाये
ऐसे प्यार की।।
गर्म सी चुस्कियों में
कुछ लफ्जों की दरकार हो
भीनी-भीनी सी लज्जत में
मीठी सी यादें उस यार की।।
कोई बात चुप सी
होठों पर रखी रहे
और घुल जाये खामोशी
अनकहे एतबार की।।
एक घूंट जो भरे
दिल ही जैसे जल उठे
और एक आह निकले
इश्क के खुमार की।।




Saturday, November 18, 2017

पानी है।।



यूं मेरी कहानी भी
एक चुप सी कहानी है
कुछ लफ्ज हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी हैं।।
वो दर्द भी है गीला
आहों से जो सना हैं
वहां और किसी गम का
आना-जाना मना है
रहती हैं वहां अब भी
कुछ यादें पुरानी हैं।।
कुछ लफ्ज़ हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी हैं....
वो जो टूटता है मुझ में
है तो मेरा ही होना
रखती हूं जोडकर फिर भी
तुम्हारा भी एक कोना
करती हैं तन्हाई अक्सर
जाने क्यों मनमानी है।।
कुछ लफ्ज़ हैं डूबे से
कुछ नज्मों में पानी है.....

Thursday, September 28, 2017

एक रोज....





एक रोज छुपा दूंगा
सारे लफ्ज तुम्हारे
और तुम मेरी खामोशी
पर फिसल जाओगी!!
देखता हूँ कब तलक
छुपी रहोगी मुझसे
एक दिन अपनी ही
नज्म से पिघल जाओगी!!
और कितने चांद
मेरे लिए संभालोगी
मुझे यकीन है कि
तुम रातें बदल डालोगी
मैंने भी रख लिए हैं
कुछ चादं तुम्हारे
मेरे एक ही ख्वाब से
बेशक तुम जल जाओगी!!
अब दोनों होगें ही
तो नज्म नज्म खेलेंगे
वो गोल ना सही
दिल सा भी हो तो ले लेगें
मैने भी भर लिये
कुछ अल्फाज़ तुम्हारे
मेरी खामोशी से
यकीनन तुम बदल जाओगी!!



Wednesday, September 13, 2017

मिर्जा!!


कितना मुश्किल है इश्क़ की कहानी लिखना
जैसे पानी से,पानी पे,पानी लिखना!!
कोई मिर्ज़ा दिल का कोई फलक ढूंढें
और साहिबा उसको चाँद तलक ढूंढें
सुना है बहुत निक्कमी है
कमबख्त मिलती ही नहीं
ऐसी मोहब्बत को कैसे भला,रूहानी लिखना !!
सुना है रोज़ मुकर्रर ,दबे पाँव सी निकलती है
एक नदी कांच की, रात के बंजर में खलती है
चलो लफ़्ज़ों का पैबंद लगा दूं तुम पर
नज़्म की हिचकियों को दिल की मेहरबानी लिखना !!
खेल जाना अगर कोई फिर दिल से खेले
गम कोई गोल सा होकर,चाँद की जगह ले ले
सुबकियां हौले सरक जायें, सिसकियाँ यूँ ही न थक जाये
कतरे कतरे को उस नदी की नादानी लिखना !!
वो नदी साहिबा,सरे आम सी मचलती है
देख मिर्ज़ा तेरे खुलूस में ही पलती है
बड़ा ही शोर करती है जो मिलती है तुझसे
एक होकर ज़र्रे ज़र्रे की रवानी लिखना !!