Friday, November 7, 2008

ज़ज्बा..जिंदगी का!!



कुछ बीत जाने को है


कुछ भूल जाने को है


कुछ तेरे खोने को है


और कुछ मेरे पाने को है!!!


न रंज रख जिंदगी से


न दोस्ती कर खुशी से


क्या पता शायद कहीं से


कोई तुझको आजमाने को है!!!


दिल से अजनबी होकर


देख गहराई में खोकर


जो गम दुश्मन था तेरा


अब गले लगाने को है!!!


खोल दे दिल की गिरह


न कर तन्हाई से जिरह


लफ्ज़ भी दहशत में है


जो खामोशी सर उठाने को है!!!


बेबस सी तेरी उलझने


तन्हा से तेरे सपने


देख तेरी राह में


जिंदगी बिछाने को हैं!!!


जीने दे ख़ुद के हर एहसास को


छोड़ दे अब 'काश' को


शब्द दे हर आस को


आइना भी मुस्कुराने को है!!!

7 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Parulji
Apkee kavitaen padhee.Apke pas Sabd ,samvedanaen,kalpana sabhee kuch ha ek achchi rachanakar hone ke liye.Kavitaen achchi lageen.Hardik badhai.
Hemant Kumar

आशु said...

Parul ji,

I loved your beautiful poems and surprised as some of your thoughts are so much identical to mine.Love your vivid and deep dived imagination.

Keep writing..if you ever get a chance visit my blog and would love to get your thoughts and comments. http://dayinsiliconvalley.blogspot.com/

Aashoo

Dr. Nazar Mahmood said...

beautiful expression

amar said...
This comment has been removed by the author.
amar said...

ultimate ...!!!

etna gap kya hai lines main ...
enke beech main bhe kuch padhna hai kya :-)

Anonymous said...

thanx to all of u for encouraging me a lot..

हिन्दी विकास मंच said...

मैं आपकी इस पोस्ट को हिन्दी विकास मंच के लिए ले रहा हूँ। मैं उम्मीद करता हूँ। आपको एतराज न होगा।