When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Wednesday, November 26, 2008
अक्स!
जब कभी तू मेरे ख्वाबगाह से निकले
यूं लगता है जैसे तू बनके नई सुबह निकले
जिसकी रोशनी से रोशन थी राते मेरी
अब उसके उजाले में दिन मेरा निकले !!
तेरी हँसी बिखरती है बनके ओस के मोती
तू रोज नई चाहत मुझ में है बोती
एक तमन्ना है तुझको छूने की
सोचता हु तो साँसों से बस आह निकले !!
जब भी गुजरती है तू मेरी तन्हाई के पास से
मैं चल देता हू पीछे तेरे ,अपने एहसास से
और कहकर आता हू यही अपनी आस से
न तू अजनबी की तरह निकले !!
तुझको पहचानने लगे अब मेरे सारे सपने
और जो बुन रहा है दिल ,वो भी है तेरे अपने
मैं तुझे पाने के लिए आ गया हू ख़ुद से दूर
अब तो बस तेरे होने का पता निकले !!
मेरी खामोशी रोज कुछ कह जाती है मुझे
मैं लफ्जों से क्या कहू जब देखा नही तुझे
मैं रोज साफ़ करता हू अपने दिल का आइना
कि किसी रोज तेरा अक्स न शायद धुन्धुला निकले !!
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6 comments:
"मैं रोज साफ़ करता हू अपने दिल का आइना
कि किसी रोज तेरा अक्स न शायद धुन्धुला निकले "
waaahhhh... good one
Parulji,
Aks..padh kar laga vakai koi aks hee samne se gujar raha hai.
Teree hansee bikhertee ha os ke moti....bahut hee sundar upma dee hai apne.Darasal kavita/geet /najm kee khoobsooratee usmen istemal hone vale prateekon se hee hoyi ha.
Hemant Kumar
कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खुबसूरत रचना...
सादर बधाई....
bhaut hi bhaavpurn rachna...
बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति....
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