Monday, December 29, 2008

समझ !!


न जाने कब जुड़े हम
और कब बिछड़ गए
जिंदगी बुनते बुनते
उलझनों में पड़ गए !!
कहने को थे हमसफ़र
पर थी नही इतनी ख़बर
चलते चलते दोनों के
रास्ते ही बदल गए !!
साथ होकर भी उतने ही तन्हा थे
संग होकर भी न जाने हम कहाँ थे ?
दोनों के बीच न जाने कब बढे फासले
हमसे बहुत दूर हमारे सपने निकल गए !!
एक अजनबी से मोड़ पे फिर से हम टकरा गए
दो पल के लिए मन एक दूजे के पास आ गए
नादान थे ये न समझ पाए,जब एक दूजे से टकराए
कि इस मुलाकात में दिल टूट कर बिखर गए !!
आंखों में कुछ चुभा भी था
दोनों ने संग ढूंढा भी था
वो टूटे ख्वाबों के टुकड़े
बहकर न जाने किधर गए ?
बरसों बाद आंसू छलके थे
आज दो दिल बहुत हल्के थे
ये महसूस करके कि
वो तन्हा से लम्हे मर गए !!

कौन?


मैं हैरां भी हू और परेशां भी हू ये देखकर
मेरे सपनों के रंग रोज बदलता है कौन ?
मेरी तन्हा सी,अनजानी सी आरजू में
आख़िर बेपरवाह सा मचलता है कौन ?
हाँ! मैंने भी भरी थी कभी उड़ान
न जाने किसके हाथों कटी थी मन की पतंग
मैं भटकता रहा बरसों यूं ही
ये जानकर भी जिंदगी की गलियाँ है तंग
मैं अपने हर गम में जब तन्हा ही हू
तो मेरे आँसुओं में आख़िर ये पलता है कौन ?
मैं आज तक न समझा
क्या सही है और क्या ग़लत
पर जब भी मिलता हू मैं ख़ुद से
पाता हू ख़ुद को और सख्त
फिर भी इस पत्थर से दिल में
अनजाना सा आख़िर पिघलता है कौन ?
चुभ रहा है मेरी आंखों में क्यों ये आइना
नही भाता मुझको क्यों आख़िर मेरा होना
मैं ढूंढ़ता हू क्यों आख़िर ख़ुद से ही दूर
किसी अनजाने वक्त का कोना
धीरे धीरे से हर पल,हर लम्हे में
मुझे, ख़ुद में इतना खलता है कौन ?
मैं बैठा हू क्यों लफ्जों से परे
जी रहा हू क्यों पल, खामोशी भरे
या कि ये खामोशी भी है कहीं दबी
इसको भी मैं सुन न पाया कभी
जिंदगी के इस अनकहे सूनेपन में
फिर आवाज करके ये चलता है कौन ?

Saturday, December 27, 2008

परे !!


आओ इन ख्वाहिशों से परे
मन की उजली सी धूप में
जिंदगी से भी कुछ बातें करे!!
तेरे मेरे दिल के जो भी हो सवाल
सबके जवाब ढूंढे,समझे दिल का हाल
शिकवों से रखे दूरियां बनाकर
या कि सूझ बूझ से ये फासले भरे !!
न छीने तन्हाई से खामोशी का अपना पन
या कुछ देर के लिए छोड़ दे वहां मन
रु-ब-रु हो जाए एक दूजे से यूं
रह जाए न किसी कोने में लफ्ज़ बिखरे !!
सुलझने दे गर बात को बात से
सुबह को शाम से,शाम को रात से
सुलझ जाए उलझन गर मुलाकात से
न यूं जिंदगी फिर कभी ख्वाब बुनने से डरे !!

Friday, December 26, 2008

हसरत!!


साँसों से छनकर
तेरी खुशबू जाने कैसे बन गई है जिंदगी ?
चाहत है अब तो बनके महक
छा जाऊँ मैं भी तुम पर कभी !!
किरणों की तरह देखूं तुम्हे
मैं भी बादलों की ओट से
निकले मेरे भी दिल से मीठी सी आह
ओस की बूंदों की चोट से
आसमां में मन का परिंदा
ओढ़ आए चाँद की चांदनी !!
देख कर ख़्वाबों की उमंग
रात न रह जाए ढीली सी
हो जाए मेरे सपनों के जैसे
वो भी जरा नीली सी
साथ मिलकर फिर हम चुरा ले
एक् नई सुबह की रोशनी !!
हो कोई खिलखिलाती हसरत तितली सी
जो हो बस तेरी खुशबू पर फिसली सी
और कोई फूल प्यार का शायद खिल जाए
कह जाए एक दिल दूजे दिल से बात अपनी .....

Tuesday, December 23, 2008

वजूद!!


मैं आया था तुमसे दूर यही सोचकर
कि तुमसे,मन निकले
मेरी जिंदगी का मेरे ख़ुद के लिए
कोई अपना पन निकले !!
मैं सोंचू ख़ुद के लिए
जलाकर मन के दीये
और उस रोशनी से कोई
जीवन की किरन निकले !!
मैं ख़ुद से जुड़ जाउं आहिस्ता
बनाकर ख़ुद से नया रिश्ता
कि मेरा धुंधला सा वजूद
बनकर नया दर्पण निकले !!
कि कोई बात न हो खाली
न रह जाए होंसला सवाली
मीठी सी कशमकश में
खामोशी से,लफ्जों की अनबन निकले !!
बांधे मुझे,ख़ुद से डोर कोई
जिसका न हो ओर छोर कोई
ख़ुद की, ख़ुद में घुल जाने की
क्षितिज जैसी लगन निकले !!

Monday, December 22, 2008

कभी यूं ही


कभी यूं ही मैं ख़ुद में जो तन्हा हुआ
न कभी इतना पहले था ख़ुद से खफा हुआ !!
मैं उलझता चला गया अपनी ही सोच में
मेरे मन का कोना जैसे बियबां हुआ !!
न जाने क्यों होने लगी थी जिंदगी बंजर
उखडा उखडा सा था आंखों में हर मंजर
मैं आ गया था ख़ुद से इतनी दूर
कि मेरा साया भी मुझे देखकर हैरां हुआ !!
वो जो पलकों के तले लगा था कोई ख्वाब बोने
उस गम को, आंखों का समन्दर लगा था डुबोने
मैं देखता रह चुपचाप सारा तमाशा
और मेरा दर्द, मेरे लिए बहुत परेशां हुआ !!
न जाने क्या क्या रिसता गया मन से
न जाने क्या क्या जुड़ता गया खालीपन से
एक एक लम्हा जुदा होता गया जैसे मुझसे से
मैं जिंदगी के लिए बेहिसाब प्यासा हुआ !!

Saturday, December 20, 2008

संग!!


आ साथ दोनों,जिंदगी के आखिरी इम्तिहां तक चले
बस न नाप फासला अभी कि कहाँ तक चले !!
हाँ जानता हू दूर है आंखों से वो मंजर
जिसके लिए तय कर आए है अभी तक ये लंबा सफर
थक गया है दिल,तलाशते हुए मंजिल
पर तस्सली भी है,हम साथ यहाँ तक चले!!
होंसला रख,न रख रंज दिल में जरा
देख रब ने जहाँ में कितना रंग है भरा
आंखों से बना ले तू भी जिंदगी की तस्वीर
कि जीकर हर लम्हा नए कारवां चले !!
आ बुझा ले आंसुओं से मन की तिशनगी
लगा ले भीगे भीगे पलों को गले ये जिंदगी
ये समन्दर दिल का किसी काम आए
आ दोनों संग फिर कहीं किसी दर्द के सहराँ तक चले !!
जो भर कर चली है दिल में न जाने कितने उजाले
ये एक उम्मीद,आ दोनों मिलकर संभाले
इन् रातों की काली स्याह से बचकर
कई रंगों से बुनी सुबह तक चले !!

तू!!


यूं तो हर ख्वाब की उम्र बस एक रात है
पर जिस ख्वाब में हो तुम,उसकी कुछ और बात है !!
लहर उठी है उमंग की,सोच तेरे संग की
एक लम्हा भर है या जिंदगी से पहली मुलाकात है !!
कोई खामोशी मेरी सी गया,मैं हर लफ्ज़ जी गया
मेरे दिल की कलम बन रहे मेरे जज्बात है !!
है मेरे रु-ब-रु कहीं,दिल के आईने में तू कहीं
देखता हू ख़ुद को तो पाता हू तू भी मेरे साथ है!!
जादू सी ये तेरी दिलकशी,गूंजती है जब तेरी हँसी
लगता है जैसे एक नए ख्वाब की शुरुआत है !!
धीरे धीरे चल रही हर साँस बनकर "आह" सी
संभल गया हू तब से,जब से दिल पे रखा तुमने हाथ है ..!!

Friday, December 19, 2008

एक कलम !!


मैं भटकी हू दर दर
जिंदगी के लिए फ़कीर सी !!
बह गई आंसूं बन
हर आरजू नीर सी !!
हाथ में थी बस कलम
"आह" ज्यादा,लफ्ज़ कम
लिख गई दर्द को
अपनी तक़दीर सी !!
मैं न रीझी कभी
हीर रांझे की प्रीत पर
मैं न झूमी कभी
प्रेम के किसी गीत पर
मैंने हर व्यथा बुनी
बस जिंदगी की रीत पर
और बन गई वो व्यथा
मेरी ही तस्वीर सी !!
मैं सोच में न थी
अपनी किसी भी हार पर
मैं न रुकी कभी
किसी अधूरे प्यार पर
जो भी कहा था बस
सच की धार पर
मेरी सचाई बन गई
मेरे लिए ज़ंजीर सी !!
रब!जब भरके भेजे
भाव तूने रग में
मैंने वही बांटा सभी से
तेरे बेदर्द जग में
मैंने बस वही लिखा
जो खामोशी कहती गई
मैंने बस मिटानी चाही
दिलों में खिंची लकीर सी !!

कोई..


कोई रास्ता भी देगा
कोई घर में भी जगह देगा
पर क्या कोई मुझे
अपने दिल में भी पनहा देगा ?
कोई आसां भी करेगा मुश्किल
और कोई गलती की सजा भी देगा
पर क्या कोई जिंदगी के लिए
मुझे जीने की भी वजह देगा ?
कोई बुनेगा मेरे लिए तन्हाई
किसी की सहनी भी पड़ेगी रुसवाई
पर चंद लम्हों के लिए मुझे कोई
क्या मेरे अपने साए से मिला देगा ?
करनी भी होगी मुझे उसकी फिक्र
अक्सर होगा उसी का जिक्र
पर क्या मेरे अपने वजूद के लिए
कोई मुझे मेरा भी पता देगा?
हाँ,चलती ही जायेगी मेरी ये कलम
सवाल होंगे ज्यादा और जवाब शायद कम
और तो कोई नही,मेरा ही कोई एहसास
धीरे धीरे मुझको अब शायद बहुत रुला देगा !!
और तब शायद आ जाउंगी मैं ख़ुद के बहुत करीब
काम कर जाए शायद ऐसी कोई तरकीब
पर ये क्या,एक आंसू भी हुआ नही नसीब
क्या था मालूम,ये दर्द समन्दर सूखा देगा!!

पल!!


मुझे,तुझसे बिछडा हुआ, तेरा एक पल मिला
यूं लगा जैसे अचानक बीता हुआ कल मिला !!
बड़ा मायूस सा, उदास सा
एक लम्हा,जो था बस "काश" सा
जिसमें दिखा गया, मेरा अक्स मुझे
जैसे कोई मेरा ही हमशक्ल मिला !!
वो दोहरा था वही सब,जो मैं दोहराता था
मेरी तरह वो भी वापिस वहीं लौट आता था
जहाँ गुमनाम सी बैठी थी जिंदगी
और उस जिंदगी से वो भी बेदखल मिला !!
वो बुनता गया,मैं सुनता गया उसके फ़साने
कितने अपनेपन से मिले हम दो अनजाने
और न जाने क्या क्या लगे बनाने
एक संजीदा सा लम्हा,बड़ा चंचल मिला !!
दोनों ही नही भूले थे अभी उस प्रीत को
दोनों ने साथ गुनगुनाया उस "गीत" को
दोनों की खामोश सी तन्हाई को
प्रेम का ,लफ्जों में जो सम्बल मिला !!

सोच ..!!


सही कहा तुमने
धीरे धीरे मन की सारी परतें खुल रही है !!
और दिल की कलम
जिंदगी के कोरे कागज पे चल रही है !!
चला जा रहा हू मैं उस सोच की तरफ़
जहाँ लफ्जों की हस्ती ख़ुद ब ख़ुद बदल रही है !!
तन्हाई बुन रही है कुछ,वहीं मन के कोने में
देर है अभी मुझे वहां ख़ुद होने में
हाँ मगर यकीं है,हर बात मेरी ही
रोशन करके सोच को,बन शमा जल रही है !!
सुन रहा हू मैं भी बैठा,रात की अंगडाइयां
गूंजती है कहीं ख़्वाबों की शहनाईयॉ
जिस सुबह के लिए मैं भी बेचैन था
देखकर मुझको एकाएक आँखें क्यों वो मल रही है !!
मेरी ही आरजू बनकर मुझसे अजनबी
जाने क्या क्या कर जाती है कभी
गीली गीली सी मेरे मन की मिट्टी
धीरे धीरे फिर किसी नज़्म के सांचे में ढल रही है !!

Thursday, December 18, 2008

हक ..!!


न जाने क्या क्या आएगा
तेरे मेरे दरम्यां
और कहाँ तक लिखोगी तुम
अधूरी सी ये दास्तां !!
ख्वाब आकर फिर दे जायेंगें कसक
फिर दिल मांगने लगेगा मुझसे अपना हक
किस तरह दूंगा फिर तुम्हारे दिल पे दस्तक
और क्या पता तुम हो न हो वहां !!
फिर रहना पड़ेगा मुझको एक "काश" में
या कि फिर निकालूँगा मैं तेरी तलाश में
ये भी नही ख़बर क्या आ सकूँगा तेरे पास में
किस मुकाम तक ला खड़ा करेंगी दूरियां ?
नही पता पहचान लोगी क्या एक आवाज में
देख पाओगी बीते लम्हे,मेरे आज में
या कि मैं दोहराऊंगा वो कहानी
जो बरसों से लिख रही है खामोशियाँ !!
एक लफ्ज़ भी मेरा पहुँचा जो तेरे दिल तक
मांग ही लूँगा मैं तुमसे जिंदगी का हक
और जानता हू तुम इंकार कर न पाओगी
जिंदगी भी न दे सको,ऐसी भी मुश्किल कहाँ !!



कहाँ?


तेरी मेरी चाहत के अब
पहले जैसे रंग कहाँ ?
एक दूजे की तन्हाई में
हम दोनों अब संग कहाँ ?
सोच की वो ऊँची सी उडाने
लगते थे जब आसमान पे छाने
बांधे रखती थी जो डोर
ऐसी मन की वो पतंग कहाँ ?
टूटे जब मिटटी के खिलोने
कैसे हम लगते थे रोने
आज जो दोनों से दिल टूटे
बचपन जैसे हम तंग कहाँ ?
खो से गए कैसे वो बहाने
लगते थे जब एक दूजे को पाने
जुदा जुदा से दिलों का
जीने का वो ढंग कहाँ ?
गुमसुम सी बैठी है मस्ती
शोर मचाने को तरसती
तेरे दिल से मेरे दिल तक
बचपन की वो उमंग कहाँ ?
कहाँ गए वो सारे ठिकाने
वो जिंदगी के पल सुहाने
सच माने तो भूले से कल में
मीठी सी वो अब जंग कहाँ ?

चुभन ..!!


सड़क पर बिछाकर सपने
बैठी हू लेकर संग अपने
कि शायद कोई खरीदार आए
दर्द के बाजार आए !!
गुजर कर ख्वाहिशों की हद से
तन्हा हो गई न जाने कब से
कि डरने लगे है देखकर
मुझे मेरे अजनबी से साए !!
बिछडा है जो आशियाना
न मंजिल मिली,न फिर ठिकाना
अब तो ये यकीं भी नही मुझे
कि बैठा होगा दहलीज़ पे कोई उम्मीद बिछाये !!
न जुदा हुई बस ख़्वाबों के घर से
गिर गई जिंदगी की नज़र से
हर आह दिल में गूंजती रह गई
ख़ुद की तलाश में तरसी है राहें !!
हर आंसूं ख़ुद में इतना कम है
कि बेगाने से मुझसे मेरे गम है
जब भी रोने को दिल करे
हर कतरा जैसे मुस्कुराये !!

एतबार !!



जिस तरह से ख्वाहिशों के मंजर उभरने लगे है
हम न जाने तुमसे क्यों डरने लगे है ?
कशमकश में है, किस तरह हो तुम से मुखातिब
रोज देखकर आइना सवंरने लगे है !!
ये भी मालूम नही क्या दिल की जुस्तजू है
वो कोई और है या की बस तू है
पर लगता है कभी जिंदगी तेरे रु-ब-रु है
इस कदर तुझ पे शायद हम मरने लगे है !!
तेरा अक्स लगने लगी है हर किताब
जो करती है मुझसे सवाल बेहिसाब
एक एक जवाब के लिए अब
बस हम तेरी आँखें पढने लगे है !!
बड़ी खूबसूरत हुई साजिश है
जिसमें शामिल तेरी कशिश है
कि हर कश में तुम्हे पाने को
हम आहें भरने लगे है !!
तन्हाई में तुमसे बातें करके
जिंदगी जीते है, हर लम्हा भरके
हमको भी अब यकीं होने लगा है
कि हम तुमसे प्यार करने लगे है !!

Sunday, December 7, 2008

कसक!!


छोड़ आया हू,जिंदगी को भटकने के लिए
वक्त की रहगुजर में तन्हाई चखने के लिए
आज सोचता हू,बैठी होगी किसी फुटपाथ पर
रोती होगी कहीं न कहीं उस हर बात पर
जो हर लम्हा दे रह होगा साथ रखने के लिए !!
आख़िर बदलने ही पड़े मुझे अपने रास्ते
मैं छोड़ आया न जाने उसको तन्हा किसके वास्ते
कितनी मजबूर होगी वो ख़ुद में सिमटने के लिए !!
साथ साथ जीने का ही तो किया था वादा
अब जीना ही नही, तो क्यों जिंदगी का इरादा
कोई मकसद भी नही अब पीछे हटने के लिए !!
न जाने कब बिखरा ख़्वाबों का घरोंदा
मुझे तो लम्हा दर लम्हा, ख्वाहिशों ने है रोंदा
मेरा वर्तमान है अतीत पर सिसकने के लिए !!

Monday, December 1, 2008

माँ !!


अभी तो मेरी लोरी अधूरी है
तू पूरी होने से पहले सो क्यों गया ?
अभी तो चाँद पे जाना भी बाकी है
तू आसमा के सितारों में कहीं खो क्यों गया ?
अभी तो बाकी थे न जाने पूरे होने कितने ख्वाब
अभी तो आनी थी बाकी, परियां पहन के नकाब
अभी तो देने थे तेरे सारे सवालों के जवाब
उस सबसे पहले ही तू मुझ से दूर हो क्यों गया ?
वो भागना पकड़ के हाथों में नकली बन्दूक
वो मेरा कहना,कहाँ जाता है,सुन तो जरा रूक
वो कहते हुए बिलखना की, माँ !लगी है भूख
वो तेरी अनकही सी बातों का कारवां
जब दोहराया सब कुछ तो सारा आलम रो क्यों गया ?
मैं जानती हु तू हो नही सकता इतना नाराज
कि मैं पुकारू और तू आए न सुनकर भी मेरी आवाज
हमेशा की तरह आएगा तू मेरे पास भी आज
जिस आँचल से पूछे सदा तेरे आंसूं
आज उन् आसुंओं से वही आँचल तू भिगो क्यों गया ?
आती है तेरी आवाज अब भी चीर कर सन्नाटे
वो लम्हे भी सो रहे है गोद में, जो साथ थे काटे
अभी तलक तो खुशी और गम हमने थे बांटे
फिर आज तन्हा सी जिंदगी मेरे लिए संजो क्यों गया?

पानी पानी!!



आँखें भर के
पलकें नम करके
आ लिखें कुछ नया
शब्द आंसूं बन छलके !!
ख्वाब हो गीला सा
चाहे हो नीला सा
देख ले आज कुछ
नए रंग बदल के !!
तेरी मेरी कहानी
आज है पानी पानी
अश्क खोने लगे है
कहीं इसमें बिखरे के !!
सोच है सर्द सी
जिंदगी दर्द सी
ख्वाहिशें जी उठती है
बूँद बूँद मर के !!
नम से अफ़साने
आख़िर है डूब जाने
उम्मीद सब बहा ले जायेगी
सैलाब की तरह उभर के!!

दुआ !


मैं एक तन्हा सा
लम्हा पुराना
मुझे जीकर तू
नया सा कर दे !!
मैं मरा हुआ एक
ख्वाब पुराना
मुझे छूकर जिन्दा सा कर दे !!
मैं फिर रह हू मारा मारा
लेकर जिंदगी की किश्ती
न जाने कहाँ है साहिल
कि बच जाए मेरी हस्ती
हो सके तो दे दे मेरी
ख्वाहिशों को पर
और मुझे एक
परिंदा सा कर दे !!
किसके दिल पे दूं मैं दस्तक
कि कोई मेरा हो
ढूंढ़ता हू शायद
किसी सांझ के तले
दबा नया सवेरा हो
काश! लिख पाऊँ
अपनी धडकनों से तुझको
मेरा दिल तुझको
मेरे लिए खुदा सा कर दे !!
मैं उधेड़ रहा हू
कब से अपने
ख़्वाबों के धागे
कि शायद दर्द बनके तड़प
दिल में जागे
आँखें रोये और बनाये
इश्क का समन्दर
और मुझे बेहिसाब
प्यासा कर दे !!

Friday, November 28, 2008

आख़िर क्यों???


मेरे मौला मुझे जवाब दे
कहाँ तू है ?
तेरे इस मुल्क में
खुदाई का कत्ल रोज होता क्यूँ है ?
क्यों मारता है रोज मोह्हब्बत को
नफरत का खंजर
क्यूँ होते जा रहे है
अपने दिल बंजर
ये बता, जहाँ इश्क है तेरा
वहां दहशत कोई बोता क्यूँ है ?
क्यूँ टूटता दिख रहा है
ज़मीं का सब्र
कौन खोद रहा है यहाँ
जिंदगी की कब्र
चुभते जा रहे है
ये मंजर आंखों में
न पूछ दिल से
आख़िर ये रोता क्यूँ है ?
कई रोज हो गए
पसरे है सन्नाटे
रोज एक दूसरे से कब तक
अपनी खामोशी बाटें
हाँ वक्त हो गया है
सोच को मरे
अब समझा ख्वाब
दर्द ओढ़कर सोता क्यूँ है ?
न जाने ऐसे ही कितने ख्वाब
थे आंखों ने बुने
न जाने ऐसे ही कितने सवाल
पड़े है अनसुने
कि जिनको तूने
इसां बनाना चाहा था कभी
आज वो सब छोड़कर
खुदा बन बैठा क्यूँ है ?
आ गया है ये क्या
तेरे मेरे दरमया
खत्म होगा कभी
क्या ये फासला
है तू गर कहीं
रोक ले इसे यहीं
खौफ के शहर में
तू अपनी हस्ती खोता क्यूँ है ?
बुझ रहे है चूल्हे
जल रहे है घर
ऐ खुदा !मेरे
अब तो तू ही कुछ कर
हो न जाए कहीं
तुझसे रुसवा ये मन
तंग दिलो में
सिमटने लगा है बचपन
दुआओ में न भरने दे
अब लाल रंग
अब यहीं थम दे
सरहदों की जंग
जब बुझा नही सकता
ये प्यास बरसों की
ऐसा अश्कों का समन्दर
सदियों से तू ढोता क्यूँ है ?

Thursday, November 27, 2008

तमन्ना!!


मैं नही औरों की तरह
आसमा के लिए !
मैं बुनना चाहता हू तेरे संग
कुछ इस जहाँ के लिए !!
अपनी खामोशी में
मेरे भी कुछ लफ्ज़ घोल लो !
शायद कुछ खूबसूरत हो
एक नई दास्तान के लिए !!
मैं तुम्हारी सादगी में
देखता हू बहुत कुछ !
तुम्हारी अनदेखी काफी नही
मगर इस खता के लिए !!
कि एक बार अपनी मासूमियत से
परदा उठा लो !
इतना अजनबी होना अच्छा नही
बेवजह के लिए !!
मेरी बेकरारी को
तेरे सुकून की है ख़बर !
कुछ न कुछ मुकरर है
मेरी सजा के लिए !!
ये इश्क है तेरा
या की है कोई सितम !
कि दिल तरसने लगा है
अब एक "आह" के लिए !
पर मैं इल्जाम न दूंगा
अगर थोड़ा रहम खाओ !
इतना फासला भी अच्छा नही
हर जगह के लिए !
न ख़्वाबों की तमन्ना
न उम्मीद से जुस्तजू
मांगता हू रब से तुम्हे
अपने खुदा के लिए !!

तड़प!!


मैं कब तलक दू बता
तेरी खामोशी का साथ
वो अधूरे से लफ्ज़ तेरे
अक्सर करते है मुझसे बात !!
मैं बेचैन होता हू
तेरी यादों में खोता हू
देखता रह जाता हू
बस अपना खाली सा हाथ !!
जिंदगी था तेरा होना
अब खाली है कोना
वहां बैठकर गिन रहा हू
तेरे कहे आखिरी अल्फाज़ !!
तुझसे बिछड के
ख़ुद से भी जुदा हो गया
बुला ले मेरी रूह को भी
देकर अपनी रूहानी आवाज !!

फिर और फिर !!!


तेरी उन्ही बातों का सिलसिला
अब फिर से शुरू तो नही
बीती मुलाकातों का अधूरापन
कहीं जुनू तो नही !!
मैं मांगता हू लम्हों से
होंसला सदियों का
कहीं तुझको भी
जिंदगी जीने की फिर जुस्तजू तो नही !!
मैं फिर रहा हू फिर
अपनी तलाश में
मुझे ये डर है कहीं
मैं फिर तेरे रु-ब-रु तो नही !!
मेरा एहसास रोज
जीकर मरता है
कहीं इसमे तेरे होने की
खुशबू तो नही !!
मुझे रिहाई दे दे
अपनी जिंदगी से
कि जिसको जी रहा हू मैं
वो कहीं तू तो नही !!
उलझ रहा है क्यों
तुझ में फिर से मेरा मन
कि फिर एक बार
उसी खता की आरजू तो नही !!

Wednesday, November 26, 2008

अक्स!


जब कभी तू मेरे ख्वाबगाह से निकले
यूं लगता है जैसे तू बनके नई सुबह निकले
जिसकी रोशनी से रोशन थी राते मेरी
अब उसके उजाले में दिन मेरा निकले !!
तेरी हँसी बिखरती है बनके ओस के मोती
तू रोज नई चाहत मुझ में है बोती
एक तमन्ना है तुझको छूने की
सोचता हु तो साँसों से बस आह निकले !!
जब भी गुजरती है तू मेरी तन्हाई के पास से
मैं चल देता हू पीछे तेरे ,अपने एहसास से
और कहकर आता हू यही अपनी आस से
न तू अजनबी की तरह निकले !!
तुझको पहचानने लगे अब मेरे सारे सपने
और जो बुन रहा है दिल ,वो भी है तेरे अपने
मैं तुझे पाने के लिए आ गया हू ख़ुद से दूर
अब तो बस तेरे होने का पता निकले !!
मेरी खामोशी रोज कुछ कह जाती है मुझे
मैं लफ्जों से क्या कहू जब देखा नही तुझे
मैं रोज साफ़ करता हू अपने दिल का आइना
कि किसी रोज तेरा अक्स न शायद धुन्धुला निकले !!

Thursday, November 20, 2008

काश!


तुम मजबूर करते और न हम ही लिखा करते
ये लम्हे यूं ही बस ख़ुद के साथ बीता करते !!
ये ज़ज्बा आख़िर तो तुमने ही जगाया मुझ में
ये लिखना आख़िर तुमसे ही आया मुझे में
फिर आज फिक्र क्यों,गर हर शब्द आज फ़साना बन गया
अच्छा होता पहले ही, गर ये एहसास दिल में छिपा करते !!
मुझे किसने सिखाया, हरेक शब्द सजोना
तुमने ही बताया, प्यार का जिंदगी होना
आज कैसे तुम्हारी बातें फीकी सी है
काश! न मेरी खामोशी को तुम इतना मीठा करते !!
जो कल तक ढूँढती थी कुछ,वो खाली सी निगाहें
आज क्यों खोजती आती है नज़र तन्हा सी राहें
हमको भी नही मिला कहने का कोई और बहाना
वरना तुम इतने चुपचाप न दिखा करते !!
हमने बेकार ही चाही लफ्जों से खुशी
कि बेकरार सी रहती थी देख तुमको खामोशी
इस बहाने ही सही, तुम से मुलाकात तो होती
तुम्हारी एक हँसी से जीना हम सिखा करते !!

Wednesday, November 19, 2008

"शब्दहीन"


तुम्हे इस जिंदगी का गीत कहूं
या अपने प्यार से महकी सी कविता कहूं
चाहत के रंगों से भरी ग़ज़ल कहूं
या जिंदगी से जिंदगी का सिलसिला कहूं
रोज लफ्जों से कशमकश
हर लम्हा देता है मुझे पे हंस
और कहता है कि मैं तुम्हे
वक्त का सबसे दिलकश लम्हा कहूं
जब कभी, मुझसे मिलती है तन्हाई
ये कहकर मांगती है रिहाई
छोड़ दो अब मुझे,वजूद मिल गया तुझे
तो क्या मैं तुम्हे, ख़ुद का होना कहूं
हाँ! यही है जवाब
तो फिर क्यूँ उलझी हू मैं इस सवाल में
मैं रखना चाहती हू तुम्हे,हर शब्द से परे
और सोचना नही चाहती कि क्या कहूं..
:) :) :) :) :)

उड़ान!!!


काट न दे कहीं कोई तेरी सोच के पर
लिख दे सब कुछ खामोशी पे,खो न जाए ये अवसर !
वो बीता हुआ लम्हा,हर लफ्ज़ जीता हुआ लम्हा
आज नजदीक है तेरे,जरा ले उसकी भी ख़बर !
वो तेरी सोच के मोती,जिंदगी पहन खुश होती
ऐसे मंज़र की खूबसूरती पे है लोगो की नज़र !
वो तन्हाई के किस्से,लेकर अपने अपने हिस्से
हर लम्हा चल दिया है वक्त के घर !
वहां महफिल लगे शायद ख़्वाबों की
कर जाए कोई लम्हा,सब पर असर !
बात पहुंचे किसी ख्वाब तक भी बहुत
बात बस रह जाए एक बात भर !
आजमा ले जरा अपने एहसास को
सोच की उड़ान में न रह जाए कोई कसर !!

Tuesday, November 18, 2008

कभी.?.


किसी एहसास को अपने गले लगाया है कभी
क्या देख तुमको कोई गम मुस्कुराया है कभी
दर्द से सुनी है क्या कभी खुशी की दास्तान ?
या जी गया तेरी मेरी जिंदगी कोई दो पल का मेहमान
ये एक सवाल रोज मेरे साथ रहता है
क्या इसका तुम्हारे पास कोई जवाब आया है कभी ?
क्या लिखी है कभी तुमने समन्दर को चिठ्ठी
कि आजकल नम भी हो पाती नही आंखों की मिटटी
ऐसा लगता है कोई ज़ज्बा मर सा गया है, सोचा है
उस ज़ज्बे पे एक कतरा तुमने क्यों नही बहाया है कभी ?
मेरे चारो तरफ़ उड़ रहे है ख्यालों के परिंदे
और ढूंढ़ रहे है मुझे तन्हाई के बाशिंदे
मैं छुप क्यों रह हू आख़िर अपने आप से भी
क्या तुम्हारा अक्स भी तुम्हे आईने से दूर लाया है कभी ?
मैं हैरान हू ,परेशान हू
ख़ुद ऐसे सवालों से
और जैसे मुझ पर हंसा
कोई जवाब तुम पर मुस्कुराया है कभी ?

नसीहत !


ये रिश्ता जो बुन रहे हो
इसको न उलझने देना
कभी अपनी तन्हाई को
हो सके तो सुलझने देना !!
तुम खो न जाना
दुनिया के शोर में
जिंदगी के साज़ को
दिल की आवाज पर बजने देना !!
ये सन्नाटे भी है अपने
पर न खामोश हो जाना
किसी महफिल में लफ्जों को भी सजने देना !!
ये दिल कितना ही हो ग़मज़दा
फिर भी कर लेना एक खता
किसी खुशी को अपने गम पे हँसने देना !!
कर हासिल कुछ होने में
ख़ुद को पाने में या खोने में
चाहे कर इश्क और हो जा एक
पर ख़ुद को ख़ुद में न सिमटने देना !!
दे होसले को अपने जिंदगी
बना ले उम्मीद को बंदगी
पर एक बार समय की धरा पर
ख़्वाबों को अपने बसने देना !!
जो बह जाए तो बस पानी
कुछ कह जाए तो कहानी
कि हर एक कतरे को
आंखों में यूं ही न चुभने देना !!

"सिलसिले"


तेरे दिल से मेरे दिल तक
जो एक सिलसिला चला
यूं लगा जैसे मोहब्बत का
एक काफिला चला
उसमें आरजू भी थी
जिन्दगी की जुस्तजू भी थी
जैसे कि साथ अपने
अपने ही दिल का फलसफा चला !
उसमें कुछ उमंगें भी थी
मन की पन्तंगे भी थी
और ऐसा लगा कि
रूह संग, खुदा चला!
इंतज़ार की कतार में
एक दुसरे के प्यार में
वो अजनबी सा वक्त
बन के रहनुमा चला!
तेरी चाहत चली
मेरा ज़ज्बा चला
गुमशुदा ख़्वाबों को हासिल करने सा
हौंसला चला!
लफ्ज़ खामोशी में उलझे
न जाने ये अफसाना कहाँ सुलझे
तुम्हे देखा तो लगा
मेरे संग मेरा आइना चला !
वहां अब भी भीड़ है
और है बातों का झुरमुट
वहीं कहीं से तो ही
जिंदगी का कारवां चला !

Monday, November 17, 2008

उम्मीद..


वो सुबह से धुली
लिये चाहत खुली
सिमटी अपनी ही आस में
फिर ख़ुद की तलाश में !
वो बातों के टुकड़े
जो तन्हा से है पड़े
उनको फिर से जोड़कर
पहुँची तन्हाई के पास में !
वहां जिंदगी मिली
गीली हर खुशी मिली
उन्हें वक्त की धूप में रख
रंग भरने लगी नए,हर एहसास में !
वो लम्हा बोने लगी
जिंदगी होने लगी
जैसे बेचैन ख़ुद ब ख़ुद
प्यार की प्यास में !
उसको एक ख्वाब मिला
अधुरा सा जवाब मिला
वो लगी उसको पुरा करने
जैसे हर एक साँस में!!

ख्वाब!


जुड़ता है जब कोई ख्वाब किसी रात से
जी उठता है एक अधूरी सी जिंदगी उस मुलाकात से
भर जाता है हर लम्हे में जीने की कसक
और दे जाता है बैंचैनियौ को सबक !
करता है वक्त के हर फैसले में दखल
रोज मन से जिरह और जीने की पहल
नही समझता वक्त की बेरुखी
हर उम्मीद पे जताता है अपना हक !
लम्हा दर लम्हा देता है दस्तक, हर ख़्याल पर
ख़ुद भी उलझता है, मन को भी उलझाता है हर सवाल पर
देख पता नही सच के आईने में ख़ुद को
और खोलना चाहता है मन की हर झिझक !
कौन समझाए, वक्त का पल पल है कितना कठिन
जिसकी रात न हो सकी,आख़िर उसका क्या होगा दिन
जिसका होना कुछ नही बंद आंखों के बिन
वो रखता है खुली आंखों से जिंदगी देखने की ललक !
जो रखता है वक्त से रिश्ता पल पल का
करता है रोज इंतज़ार एक नए कल का
होकर रह जाता है नमकीन और ग़मगीन
बिखरने पर नम आंखों का स्वाद चख !
मन सिमटकर बह जाता है जब आंखों से
वो कहता है न बातें करना अब रातों से
रखना उम्मीद तो बस सच को देखकर
और ये कहकर जिंदगी की गोद में पड़ता है फफक !

Monday, November 10, 2008

मजबूरी !!

जब कभी लम्हे यादों में बहा करते है
तब हम ख़ुद से बस ये कहा करते है!
आज फिर बीती हुई घड़ी जी आया
कुछ पल आज के बीते पलों में सी आया
मुस्कुराया भी और रोया भी था वहां
देख आया भी अब वो हसरतें है कहाँ
जिन्हें पल पल तब हम सजोया करते थे
पूरे होंगे ये खवाब सोच खुश होया करते थे
पर आज जब इनको इस तरह देखा करते है
तो यूं लगता है कहाँ ये दिल से वफ़ा करते है!
वहां पड़े थे ख़ुद को लिखे बिखरे से ख़त
और लगे थे वक्त के पहरे भी सख्त
वहां न जाने कितने सारे गम थे
मुझे देख के सब के सब नम थे
फिर भी लगा की वक्त से इनके रिश्ते कितने गहरे है
और इनकी फिक्र हम बेवजह ही किया करते है!
आज उलझनों की गिरफ्त में है मन का परिंदा
फिर भी अब तलक एक लम्हा मुझ में अब भी है जिन्दा
उस लम्हे में जिंदगी अब भी इंतज़ार में है
वो शायद अब भी उस वक्त के प्यार में है
आख़िर क्यों इस मोहब्बत की सजा हम ख़ुद को दिया करते है
जिंदगी छोड़कर वक्त को जिया करते है ..


Sunday, November 9, 2008

बूँद!



वो घुली है शाम के रंग सी मुझ में
और ताजी है जैसे कोई धुली सी सुबह निकले !
वो भरी है उजली सी मेरी निगाहों में
और आहों में जैसी सौंधी सौंधी सी हवा निकले !
वो जब भी आकर के बैठी है मेरे पहलू में
यूं लगा जैसे दिल से जिंदगी का कोई फलसफा निकले!
मैं जल रहा हु रोज मोम सा उसकी चाहत में
मेरे एहसास मोहब्बत की लौ में इस तरह पिघले !
मैं जो आज तुझसे इतनी मोहब्बत करने लगा
काश तू ही अब मेरा खुदा निकले!
मैं सजदा करू,दुआ करू तेरे दर पर
मेरी जिंदगी का तू ही रहनुमा निकले!
मेरा दिल देखना चाहे तुझ ही को बार बार
अब तो बस तू ही इस दिल का आइना निकले!
मेरी रूह प्यासी है और तू वो बूँद है
जिसमें भीगा भीगा दिल का हर ज़र्रा निकले!!





खामोश लफ्ज़!!



जुबां खामोश है
अब दिल से क्या बयां करे
क्यों आज अपनी ही खामोशी को रुसवा करे!!!
लफ्ज़ ख़ुद इतने जज्बाती हो उठे है
कि बात ठीक से निकले, इतनी वफ़ा करे!!!
कुछ वो कहें अपनी, कुछ तुम कहो अपनी
एक लफ्ज़ दूजे लफ्ज़ से मोहब्बत बेपनाह करे !!!
ज़र्रा ज़र्रा दिल का हो जाए रोशन
गुफ्तगू दिल से दिल तक इस तरह करे!!!
मैं मैं न रहूं, तुम तुम न रहो
दोनों हो जाए एक ,बस अब खुदा करे !!!
और ये खामोशी ओढ़कर जब जब बैठे ये लफ्ज़
दो रूहों से एक जिंदगी बना करे!!!










Friday, November 7, 2008

ज़ज्बा..जिंदगी का!!



कुछ बीत जाने को है


कुछ भूल जाने को है


कुछ तेरे खोने को है


और कुछ मेरे पाने को है!!!


न रंज रख जिंदगी से


न दोस्ती कर खुशी से


क्या पता शायद कहीं से


कोई तुझको आजमाने को है!!!


दिल से अजनबी होकर


देख गहराई में खोकर


जो गम दुश्मन था तेरा


अब गले लगाने को है!!!


खोल दे दिल की गिरह


न कर तन्हाई से जिरह


लफ्ज़ भी दहशत में है


जो खामोशी सर उठाने को है!!!


बेबस सी तेरी उलझने


तन्हा से तेरे सपने


देख तेरी राह में


जिंदगी बिछाने को हैं!!!


जीने दे ख़ुद के हर एहसास को


छोड़ दे अब 'काश' को


शब्द दे हर आस को


आइना भी मुस्कुराने को है!!!

सच..


वो तुम थी

या मेरी तन्हाई थी!

जो अचानक ही मेरे करीब आई थी!

जिसने आते ही छू दिया जिंदगी को

और रोने न दिया फिर खुशी को

मैं खुश था आज तुम साथ हो मेरे

वरना हर लम्हे में मायूसी छाई थी!

मैं चला था सपनों को जगाने

और अपने गम को ये बताने कि

लोग मुझे भी लगे है चाहने

और कहते कहते आँखें भर आई भी!

मगर ये क्या मालूम हुआ मुझको

जब सच ने छुआ मुझको

कोई नही था मेरे साथ, मेरे साये के सिवा

और ये कहकर हसने लगी मुझ पर मेरी परछाई भी!




रंग..!!



तेरी आंखों के, चाहकर भी मैं तो रंग बदल न पाया


सोचा था सफर साथ कटेगा,पर दो कदम भी चल न पाया!!!


सपनों के थे रंग सजीले


हल्के गहरे नीले नीले


मैंने भी रंग घोले चाहत के,पर तुझ में भर न पाया!!!


तेरी हँसी थी बहुत गुलाबी


और सुनहरी सी थी बेताबी


थामकर अपनी जिंदगी का हाथ,यादों से तेरी निकल न पाया!!!


काली काली सी तेरी आँखें


आकर मेरे सपनों में झांके


तेरे होने का एहसास बिखरा तो मैं फिर तन्हाई में ढल न पाया!!!


आ संग संग जिंदगी को रंगें


छोड़ दे इस जहाँ में चाहत की पतंगे


तेरे प्यार का जब रंग चढा तो मैं किसी और रंग में घुल न पाया!!!



Thursday, November 6, 2008

तलाश!


तन्हा होने के एहसास में

ख़ुद को पाया तन्हा ख़ुद के पास में!!!

दूरियां सी बन गई नजदीकियां

चुभने लगी जिंदगी की बारीकियां

मर मर के जीते ख्वाब देखकर

उम्मीद बदलने लगी 'काश' में!!!

तड़पने लगे जज़्बात जब कशमकश में

सुलगने लगे जैसे ख़ुद हम हर कश में

धुंआ धुंआ सा लगा हर मंज़र

और भरने लगा चाहत भरी हर साँस में!!!

लफ्जों को जला गई खामोशी की चिंगारी

और तब लगी जिंदगी तन्हाई पर भारी

धीरे धीरे सिमट आई उम्मीद दिल में सारी

और निकल पड़ा मेरा साया मेरी ही तलाश में!!!

तन्हाई!!


मेरी तन्हाई,तन्हा होने का सबब मांगे
मेरी जिंदगी,मेरे होने का मतलब मांगे
मैं चुप सा गुम हूँ, कोई आवाज न दे
न जाने कब ये खामोशी, शब्द मांगे!!!
तेरे दिल से अपने दिल तक मैं चला हूँ अकेला
फिर क्यों आज मोहब्बत बयां होने को
तेरा लफ्ज़ मांगे!!!
ये सितम जिंदगी का कम है
कि मैं जिन्दा हूँ
जो वक्त मुझ से
मेरे तन्हा पलों को
न जाने कब मांगे!!!













गुलाल...!


तुम आए जब दिल में
किसी ख़याल की तरह!!
बेचैन हो उठी
जैसे एक सवाल की तरह!!
खो गई अनजाने में
फिर से तुमको पाने में
मिले भी क्या बस बिछडे
हर साल की तरह!!
निशब्द सी होकर
खामोशी में खोकर
जो बात तुमसे की
बेहाल की तरह!!
तुम हंस के चल दिए
जैसे मायने बदल दिए
गम घुलने लगे आंसुओं में
गुलाल की तरह!!

तन्हा सी जिंदगी


भीगी भीगी पलको के
गीले गीले से ख्वाब
डूबी हुई जिंदगी के
कुछ नम से जवाब!!!
ज़ज्बात से बने नीड में
ख्वाहिशो की भीड़ में
कर रहा हू कब से बैठा
तन्हाई का हिसाब!!!
कुछ कही,कुछ अनकही
दिल में जो हसरतें रही
पूछती है खामोशी से
कब आएगा लफ़्जो पे शबाब!!!
रात की करवटो में
दिन की सिलवटो में
उलझा उलझा सा मेरा साया
मेरा होने को है बेताब!!!