Sunday, November 9, 2008

बूँद!



वो घुली है शाम के रंग सी मुझ में
और ताजी है जैसे कोई धुली सी सुबह निकले !
वो भरी है उजली सी मेरी निगाहों में
और आहों में जैसी सौंधी सौंधी सी हवा निकले !
वो जब भी आकर के बैठी है मेरे पहलू में
यूं लगा जैसे दिल से जिंदगी का कोई फलसफा निकले!
मैं जल रहा हु रोज मोम सा उसकी चाहत में
मेरे एहसास मोहब्बत की लौ में इस तरह पिघले !
मैं जो आज तुझसे इतनी मोहब्बत करने लगा
काश तू ही अब मेरा खुदा निकले!
मैं सजदा करू,दुआ करू तेरे दर पर
मेरी जिंदगी का तू ही रहनुमा निकले!
मेरा दिल देखना चाहे तुझ ही को बार बार
अब तो बस तू ही इस दिल का आइना निकले!
मेरी रूह प्यासी है और तू वो बूँद है
जिसमें भीगा भीगा दिल का हर ज़र्रा निकले!!





3 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Parulji,
Ek boond ke madham se nature aur apne dil ke jajbaton ko bahut achchee abhivyakti dee ha apne.nature ke sath hee koshish kariye kuch social causes par bhee likhne kee.Boond ke liye phir badhai.
Hemant Kumar

Parul kanani said...

thanx hemant ji...

डॉ .अनुराग said...

वो भरी है उजली सी मेरी निगाहों में
और आहों में जैसी सौंधी सौंधी सी हवा निकले !

बहुत खूब.....