वो तुम थी
या मेरी तन्हाई थी!
जो अचानक ही मेरे करीब आई थी!
जिसने आते ही छू दिया जिंदगी को
और रोने न दिया फिर खुशी को
मैं खुश था आज तुम साथ हो मेरे
वरना हर लम्हे में मायूसी छाई थी!
मैं चला था सपनों को जगाने
और अपने गम को ये बताने कि
लोग मुझे भी लगे है चाहने
और कहते कहते आँखें भर आई भी!
मगर ये क्या मालूम हुआ मुझको
जब सच ने छुआ मुझको
कोई नही था मेरे साथ, मेरे साये के सिवा
और ये कहकर हसने लगी मुझ पर मेरी परछाई भी!
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