Thursday, November 6, 2008

तलाश!


तन्हा होने के एहसास में

ख़ुद को पाया तन्हा ख़ुद के पास में!!!

दूरियां सी बन गई नजदीकियां

चुभने लगी जिंदगी की बारीकियां

मर मर के जीते ख्वाब देखकर

उम्मीद बदलने लगी 'काश' में!!!

तड़पने लगे जज़्बात जब कशमकश में

सुलगने लगे जैसे ख़ुद हम हर कश में

धुंआ धुंआ सा लगा हर मंज़र

और भरने लगा चाहत भरी हर साँस में!!!

लफ्जों को जला गई खामोशी की चिंगारी

और तब लगी जिंदगी तन्हाई पर भारी

धीरे धीरे सिमट आई उम्मीद दिल में सारी

और निकल पड़ा मेरा साया मेरी ही तलाश में!!!

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