Thursday, November 20, 2008

काश!


तुम मजबूर करते और न हम ही लिखा करते
ये लम्हे यूं ही बस ख़ुद के साथ बीता करते !!
ये ज़ज्बा आख़िर तो तुमने ही जगाया मुझ में
ये लिखना आख़िर तुमसे ही आया मुझे में
फिर आज फिक्र क्यों,गर हर शब्द आज फ़साना बन गया
अच्छा होता पहले ही, गर ये एहसास दिल में छिपा करते !!
मुझे किसने सिखाया, हरेक शब्द सजोना
तुमने ही बताया, प्यार का जिंदगी होना
आज कैसे तुम्हारी बातें फीकी सी है
काश! न मेरी खामोशी को तुम इतना मीठा करते !!
जो कल तक ढूँढती थी कुछ,वो खाली सी निगाहें
आज क्यों खोजती आती है नज़र तन्हा सी राहें
हमको भी नही मिला कहने का कोई और बहाना
वरना तुम इतने चुपचाप न दिखा करते !!
हमने बेकार ही चाही लफ्जों से खुशी
कि बेकरार सी रहती थी देख तुमको खामोशी
इस बहाने ही सही, तुम से मुलाकात तो होती
तुम्हारी एक हँसी से जीना हम सिखा करते !!

3 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Parulji,
Kash..shabd hee aisa ha jo apne ap men dher saree majbooriyan chipaye ha.Phir apko to thanks kahna chahiye us shakhsh ko jisne kalam uthane par majboor kiya.Kisi kavi ke liye isase badee uplabdhi kya hogee ki use likhne par majboor kar diya jaya.
bahut hee achcha geet/kavita/tarana ha.shubhkamnaen.
Hemant Kumar

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahoot he shandar kavitaen likhi han apne parulji.Apkee latest kavita kash padhna suru kiya to ek ek kar saree hi padhati chali gayee.Ye bhool gayee ki kitab naheen net par kavtaen padh rahee hoon. Meree taraf se apko badhaiyan.
poonam

Parul kanani said...

thanx poonam...thanx a lot!