Wednesday, December 12, 2012

खामखाह...

वो एक 'उफ़' की आदत
और उस 'आह' का होना
वो मेरा बेतरकीब सा इश्क
और तेरी अनकही 'चाह' का होना !
वो खाली खाली से तेरे इश्क के साँचे
वो मेरे बेडोल से ख़्वाबों के खांचे
जिंदगी सा भी तो कुछ हों पाया नहीं फिट
और उस पर ख़ामोशी की स्याह का होना !
वो छितरे से आंसू और फटी सी हंसी
जिसमें दोनों की तन्हाई बरबस ही आ फंसी
सोचता हूँ किसी रोज की धूप लगा दूं
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
वो एक रोज के 'तुम' ,जो कहीं तो थे भर गए
छिला जो आइना तो हर तरफ तुम ही बिखर गए
देखता रहा खुद को और यही सोचता रहा
क्या जरुरी है जवाब में किसी 'वजह' का होना ?
मुझे अक्सर ही अक्स में नज़र आते हैं 'घेरे'
कभी 'शून्य ' भी तो हो सकते है 'फेरे'
फिर मैं क्यों अब तलक सोच से उलझ रहा हूँ ?
और अच्छा नहीं है 'खामखाह ' का होना!

25 comments:

VIVEK VK JAIN said...

hey itne din baad...mei wait kr rha tha nayi post ka. :-)

VIVEK VK JAIN said...

Hey, itne din baad...mei bas apki post ka intezar kar rha tha.:-)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

धूप का लगाना ... इस खामखाह में बेचैनी झलक रही है ॥

जयकृष्ण राय तुषार said...

प्रेम को अभिव्यक्त करती एक सशक्त कविता |आपको ब्लॉग पर देखकर एक अवर्णनीय सुकून मिला |

प्रेम सरोवर said...

आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

इमरान अंसारी said...

बहुत दिनों बाद आपको देखना बहुत अच्छा लगा पारुल जी......बहुत ही खुबसूरत सी नज़्म ।

सागर said...

welcome back

sonal said...

welcome back parul....
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
loved it

Ashish Kumar said...

Bahut hi umda.. keep it up.

kunwarji's said...

सुन्दर भाव...

कुँवर जी,

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ख़ूब है पर चाह का होना

Anonymous said...

वो खाली खाली से तेरे इश्क के सांचे ....वाह!!
बहुत सुंदर !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बढिया उम्दा सृजन,,,, बधाई पारुल जी,,,
पहली बार आपके पोस्ट पर आया,अच्छा लगा,,
फालोवर बन गया हूँ, आप भी बने मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार,,

recent post हमको रखवालो ने लूटा

इमरान अंसारी said...

Where is my comment ????

Aditya Tikku said...

on the dot- too good-***

Apanatva said...

bhavo ko khoobasooratee se bunana koi aapse seekhe.....

Parul kanani said...

imraan ji ...aapka koi comment tha hi nahi...varna publish jarur hota :)

Onkar said...

सुन्दर रचना

Sunil Kumar said...

बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
.

रचना दीक्षित said...

उफ़, आह, चाह, ख्वाब लगता है प्यार परवान चढ़ रहा है. सुंदर अभिव्यक्ति.

दिगम्बर नासवा said...

मन की कसक को ... उठते हुवे ज्वर को शब्दों के ढाँचे में उतारा है ... बाखूबी उतारा है ..
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा ... अच्छा लगा ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना!

Ankur Jain said...

इन इश्क के खांचों में अनायास ही इंसान को आकार मिल जाता है...बहुत खूब प्रस्तुति।।।

Vinay said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...