वो एक 'उफ़' की आदत
और उस 'आह' का होना
वो मेरा बेतरकीब सा इश्क
और तेरी अनकही 'चाह' का होना !
वो खाली खाली से तेरे इश्क के साँचे
वो मेरे बेडोल से ख़्वाबों के खांचे
जिंदगी सा भी तो कुछ हों पाया नहीं फिट
और उस पर ख़ामोशी की स्याह का होना !
वो छितरे से आंसू और फटी सी हंसी
जिसमें दोनों की तन्हाई बरबस ही आ फंसी
सोचता हूँ किसी रोज की धूप लगा दूं
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
वो एक रोज के 'तुम' ,जो कहीं तो थे भर गए
छिला जो आइना तो हर तरफ तुम ही बिखर गए
देखता रहा खुद को और यही सोचता रहा
क्या जरुरी है जवाब में किसी 'वजह' का होना ?
मुझे अक्सर ही अक्स में नज़र आते हैं 'घेरे'
कभी 'शून्य ' भी तो हो सकते है 'फेरे'
फिर मैं क्यों अब तलक सोच से उलझ रहा हूँ ?
और अच्छा नहीं है 'खामखाह ' का होना!
और उस 'आह' का होना
वो मेरा बेतरकीब सा इश्क
और तेरी अनकही 'चाह' का होना !
वो खाली खाली से तेरे इश्क के साँचे
वो मेरे बेडोल से ख़्वाबों के खांचे
जिंदगी सा भी तो कुछ हों पाया नहीं फिट
और उस पर ख़ामोशी की स्याह का होना !
वो छितरे से आंसू और फटी सी हंसी
जिसमें दोनों की तन्हाई बरबस ही आ फंसी
सोचता हूँ किसी रोज की धूप लगा दूं
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
वो एक रोज के 'तुम' ,जो कहीं तो थे भर गए
छिला जो आइना तो हर तरफ तुम ही बिखर गए
देखता रहा खुद को और यही सोचता रहा
क्या जरुरी है जवाब में किसी 'वजह' का होना ?
मुझे अक्सर ही अक्स में नज़र आते हैं 'घेरे'
कभी 'शून्य ' भी तो हो सकते है 'फेरे'
फिर मैं क्यों अब तलक सोच से उलझ रहा हूँ ?
और अच्छा नहीं है 'खामखाह ' का होना!
25 comments:
hey itne din baad...mei wait kr rha tha nayi post ka. :-)
Hey, itne din baad...mei bas apki post ka intezar kar rha tha.:-)
धूप का लगाना ... इस खामखाह में बेचैनी झलक रही है ॥
प्रेम को अभिव्यक्त करती एक सशक्त कविता |आपको ब्लॉग पर देखकर एक अवर्णनीय सुकून मिला |
आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
बहुत दिनों बाद आपको देखना बहुत अच्छा लगा पारुल जी......बहुत ही खुबसूरत सी नज़्म ।
welcome back
welcome back parul....
न जाने कब तक मयस्सर है सुबह का होना!
loved it
Bahut hi umda.. keep it up.
सुन्दर भाव...
कुँवर जी,
बहुत ख़ूब है पर चाह का होना
वो खाली खाली से तेरे इश्क के सांचे ....वाह!!
बहुत सुंदर !!
बहुत बढिया उम्दा सृजन,,,, बधाई पारुल जी,,,
पहली बार आपके पोस्ट पर आया,अच्छा लगा,,
फालोवर बन गया हूँ, आप भी बने मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार,,
recent post हमको रखवालो ने लूटा
Where is my comment ????
on the dot- too good-***
bhavo ko khoobasooratee se bunana koi aapse seekhe.....
imraan ji ...aapka koi comment tha hi nahi...varna publish jarur hota :)
सुन्दर रचना
बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
.
उफ़, आह, चाह, ख्वाब लगता है प्यार परवान चढ़ रहा है. सुंदर अभिव्यक्ति.
मन की कसक को ... उठते हुवे ज्वर को शब्दों के ढाँचे में उतारा है ... बाखूबी उतारा है ..
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा ... अच्छा लगा ...
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुन्दर रचना!
इन इश्क के खांचों में अनायास ही इंसान को आकार मिल जाता है...बहुत खूब प्रस्तुति।।।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
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