Wednesday, April 7, 2010

कभी!!


जले न तेरा मन कभी
न हो तुझे जलन कभी
रिसने दे ख्यालों से
भीगी सी उलझन कभी !
मीठी सी हूक से
जादू की फूंक से
मिट जाये मन की तेरे
सारी थकन कभी!
दर्द की सिसकी से
यादों की हिचकी से
तू छीन ले,जी भर
अपना जीवन कभी!
सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!
मन की गहरी थाह से
इस दिल की राह से
तू आ जाये खुद के यूँ करीब
छले न दर्पण कभी!

29 comments:

Mansoor Naqvi said...

Adbhut.. shabdon ke motiyon ko bahut khubsurti se piroya hai aapne.. Badhai..

मनोज कुमार said...

संवेदनशील रचना। बधाई।

nilesh mathur said...

मन कि गहरी थाह से
इस दिल कि राह से
तू आ जाए खुद के यू करीब
छले ना दर्पण कभी!
वाह ! क्या बात है!

"अर्श" said...

khub tewar dikhe aapke isme .... badhaayee kubul karen..


arsh

Anonymous said...

bahut khoob ,......
http://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....

दिलीप said...

bahut sundar rachna....

Apanatva said...

wah kya bhav aur shavdmanthan hai.................
tareefekabil..........

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

कुश said...

ख़ामोशी की चीख.. क्या कमाल का थोट है पारुल.. सिम्पली ग्रेट !
इस बार फिर शुरू की दो पंक्तियों को सौ नंबर है..

दिगम्बर नासवा said...

तू आ जाए खुद के इतना करीब .. दर्पण भी न छल पाए .....
वैसे पूरी रचना का हर छन्द लाजवाब है .. कुछ न कुछ कहता हुवा .... बहुत अनुपम रचना ...

Creative Manch said...

सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!


aaah...kya baat hai ,,, bahut khoob
kitna sundar likha hai
kayi baar padhi panktiyan

bahut pasand aayi rachna
aabhaar

kunwarji's said...

"सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!"

ह्रदयस्पर्शी कविता!
बहुत सुन्दर शब्द्चित्रण!
शुभकामनाये स्वीकार करे....
आपकी लेखनी ओए अधिक गहरायी से भावनाए उकेरे...

कुंवर जी,

arvind said...

मन कि गहरी थाह से
इस दिल कि राह से
तू आ जाए खुद के यू करीब
छले ना दर्पण कभी!
.....bahut khoob ,......

Dinbandhu Vats said...

behatin prastuti hai.sanvednayen jhlakati hai.

Ashish said...

waaah.. bahut khoobb.. bahut bahut khoob... i m happy :)

कुमार विनोद said...

ऐसे जांनिसार खयाल! owtherwise न लीजिएगा, तहेदिल से पसंद आई नज्म. मन के किसी रिसते हुए हिस्से को कुरेद गई. अब तक की बेहतर अदायगी...

Anonymous said...

achhi lagi to dobaara achala aaya....
visit my blog for new poem life....
http://i555.blogspot.com/

kanhaiya said...

aapki lekhan kala nirali hai....
to be continued......

पूनम श्रीवास्तव said...

खूबसूरत पंक्तियां-----

wealth of worthful words by sudhir said...

Wow ultimately evoking thoughts beautifully written ....

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

सपनों की भीख से
ख़ामोशी की चीख से
दब जाये न तुझ में ही
तेरा अपनापन कभी!

अपनापन ऐसे ही दबता है..खो जाता है..

Shail said...

Very nice..deep thoughts..

vijay kumar sappatti said...

pahli baar aapke blog par aaya hun ji ... aur aapki rachnaaye padhkar bahut khushi hui .. ye kavita kaafi kuch kah jaati hai .. man ke bhaavo ko aapne accha swaroop diya hai ....meri badhayi sweekar kare..

aabhar

vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

रिसने दे ख्यालों से भीगी सी उलझन कभी ... वाह ! क्या कहने ! बहुत सुन्दर रचना है ! मन को छुं गयी !

Anonymous said...

long time since your post...
waitig for that...
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

इस दिल की राह से
तू आ जाये खुद के यूँ करीब
छले न दर्पण कभी!

क्या कहूँ.... दिल को पूरा उतार कर रख दिया ...लफ़्ज़ों से....

बहुत अच्छी लगी यह कविता.... दिल को छू गई....

Anonymous said...

must visit my new poem..and give your comment..

नयी दुनिया

Anonymous said...

anamika tu bhi tarse.......

ye line end me add karne ka man hua !!:-)

Harshvardhan said...

bahut sundar rachna hai.........