Monday, April 26, 2010

नहीं..!


तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
आज कसी जो डोर मन की
टूटकर हाथों में ही रह गयी
जब बांधा था तुम्हे बंधन में
तब क्यों न देखा कहीं कुछ तो ढीला नहीं॥
आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥
आँखों के सूनेपन में तू
यूँ बेरंग सा भर आया
देर तलक यही देख रहा था
कतरे का रंग क्यों अब नीला नहीं॥
हर कतरा,धागे सा था
फिरता था पैबंद लिये
दिल की कांट-छांट बाकी है
शायद अब तक यूँ ही सिला नहीं॥

35 comments:

Amit Khanna said...

Fantastic! Nice read

Apanatva said...

shavd nahee mil pa rahe hai tareef karane layak.......

lajawab prastuti .

Dev said...

वाह!!.......बेहतरीन प्रस्तुती

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

M VERMA said...

आज कसी जो डोर मन की
टूटकर हाथों में ही रह गयी
एहसास अत्यंत मुखरित हैं
सुन्दर --- लाजवाब

दिगम्बर नासवा said...

Jab neend se ho silsila toot gaya to khwaab kahaan se aayenge ... aap gahre jajbaat se piroti hain apne rachnaaon ko ...

Shikha Deepak said...

बेहतरीन भावाव्यक्ति...........

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर ... हमेशा की तरह आप शब्दों का एक जाल बुन दिए हैं जिसमें भावनाएं समा गए हैं ...

आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ...

kumar zahid said...

तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥

पारुल,
आपके विचारों की बुनावट में गहरी तरबियत है। चीजों को देखने का अंदाज और सिलसिले के तार पंजाबी खुसीसियत की तरफ गामयाब हैं


आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥

यह बिंब तो बेहद असरदार है। पढ़कर ठहर जाने को दिल कहता है

संजीदा ख्याल बातें...तसलीम

rashmi ravija said...

जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं॥
बहुत खूब...सुन्दर रचना

kunwarji's said...

जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति आपकी!भावनाओ को शब्दों खूब पिरोया है आपने....

कुंवर जी,

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब .....!!

सारी पंक्तियों को आपने ले में बखूबी पिरोया है .....!!

भाव और शब्दों का चयन भी बेहतरीन हैं .....!!

रोहित said...

behtareen prastuti!
aapne prem ki bhavnaao ko acche dhang se avivaykt kiya hai.
regards-
#ROHIT

रोहित said...

behtareen prastuti!
aapne prem ki bhavnaao ko acche dhang se avivaykt kiya hai.
regards-
#ROHIT

Anonymous said...

kya baat hai !!wah..wah..blogs par samkaaleeno me sarvshrestha hone walee pratibha,gifted u r

Vinay said...

amazing words, great work of art!

दिलीप said...

bahut khoob ishq ka dard kambakht cheez hi aisi hai...

दीपक 'मशाल' said...

Parul tum kafi achchha likhti ho lekin apni hi pichhli kai poston par jara gaur karo....
jyadatar 'main' ya prem ke oopar hain.. wo bhi prem ke sirf ek vishesh swaroop par kendrit.. is sab se bahar niklo
''aur bhi gum hain zamane(dahi jamane nahin) me mohabbat ke siwa.. chewing gum nahin :)''
hai na?

दीपक 'मशाल' said...

ise salaah nahin sirf ek nivedan ki tarah lena.

दीपक 'मशाल' said...

aur gum hi kyon khushiyon par bhi to likh hi sakte hain na..

Anonymous said...

ohhh !!!!
bahut hi khubsurat rachna....
hope aap yun hi likhti rahengi.....
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka v rukh karein...

Parul kanani said...

deepak ji aisa nahi hai ki main sirf 'gamjada' rachnayen likhna chahti hoon..jab jo man mein aa jaye bas..likhti jati hu... :)baaki aapn ne apni baat rakhi..accha laga!aise hi sabhi ka sawagat hai!!
aur sabhi ka aabhar bhi :))))))))

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥

सुन्दर शब्दों से सजी एक बेहतरीन रचना है!

Saumya said...

very nice....i liked yhe last couplt especially..

nidhi said...

Wonderful !!!

अजय कुमार said...

विरह वेदना का अच्छा चित्रण

Urmi said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बहुत बढ़िया लगा!

Anonymous said...

aaj kal thoda bzy rahta hoon naukri ki talaash mein..
to achhi rachnayein padhne mein der ho jaati hai....
bahut hi behtareen ...
padhkar achha laga...
-------------------------------------
mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/

रश्मि प्रभा... said...

waah....bahut hi badhiyaa

विनोद कुमार पांडेय said...

आधी रातें तुम ले गए
और आधी मैं ही कहीं रख भूला
जागने की यूँ लत पड़ गयी फिर
कि उन ख्वाबों का कोई सिलसिला नहीं

सुन्दर प्रस्तुति!!!

KALAAM-E-CHAUHAN said...

parul

ek achhe nazmke liye mubarak baad

thoda antre ka teesre chauthe antare ka kafiya dekh len.....

aapne kagiya mukhde me ila munnakit kiya hai fir aapne eela rakha hai jo jayaz nahee hai .......ek baar dekhen pleaz

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah....
sunder bhavabhivyakti...
sadhuwaad..

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) said...

तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥

बहुत खूब !!!!
पढकर , दिल को सुकून मिला ||

निर्झर'नीर said...

5-6 kavitayen paDhi aapki

yun to sabhi acchi hai lekin is kavita mein kuch jyada hi kashish hai ,dard hai ,gahraaii hai ya yun kaho ki padhne vale ka man jaisa hota hai use vaisa hi bhaav jyada khiichta hai .

स्वाति said...

तुम बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से भी मिला नहीं
क्यों तुमसे शिकवे रखता हूँ
और खुद से कोई गिला नहीं॥
सुन्दर एहसास हैं ...लाजवाब