आ कहीं दूर चल
मन की गुजारिश पर
जी ले आज तो जी भर वहां
मन की सिफारिश पर ।
ख्वाहिश बन जिंदगी को
आ कहीं तो बसने दे
रोये है साथ जी भर
अब जरा खुलकर हँसने दे
छोड़ दे गीले क़दमों के निशाँ
अरमानों की बारिश पर ।
देख साथ हमको मौसम भी
तबियत बदलने को है
एक रात चांदनी भरी
फलक से फिसलने को है
इतराने दे रात को भी आज
अपने चाँद की तारीफ पर ।
6 comments:
sunder abhivykti
umda...keep writing..
thanx!
जबरदस्त लगी गुजारिश
"छोड़ दे गीले क़दमों के निशाँ
अरमानों की बारिश पर ।" .. nice imagination :) !!
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