Friday, July 10, 2009

रुखी जिंदगी!


ये आसमां क्यों टूटकर बिखरने को है ?
ये जमीं क्यों आसूँओं से भरने को है ?
सिली सिली सी आख़िर क्यों है हवा ?
क्यों सैलाब दिल में उमड़ने को है ?
मोम सा सितारा,चांदनी में था पल रहा
आज क्यों इस तरह से पिघल रहा
आख़िर किसकी लौ में है जल रहा ?
चाँद भी समन्दर में उतरने को है॥
कशमकश में हर रात जागी सी है
नींद ख्वाबों की भी दूर भागी सी है
क्यों होंठ सिलते है जा रहे
और खामोशी बेचैन, बात करने को है॥
क्या हुआ,जो इस तरह सब के सब रो दिए
किस तरह हमने जिंदगी के मायने खो दिए
जी रहे है आख़िर,किस जज्बात से
जब की हर ख्वाहिश यूं भी मरने को है॥
किसी कोने में बिलखती रूह प्यासी सी है ?
जिंदगी टुकडों में बासी सी है
हाँ! जिंदगी की भूख जरासी सी है
रुखी रोटी सी चाह अभी सिकने को है॥

15 comments:

Ashutosh said...

बहुत अच्छी और अर्थपूर्ण रचना है. आप कभी मेरे ब्लॉग पर आइये .
"हिन्दीकुंज"

man said...

wah!nayab..

M VERMA said...

और खामोशी बेचैन, बात करने को है॥
खामोशी की बाते तो सुनने लायक होगी.
बहुत खूब

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Sundar kavita...

जितेन्द़ भगत said...

सुंदर कल्‍पनाऍं-
-मोम सा सितारा,चांदनी में था पल रहा
-चाँद भी समन्दर में उतरने को है॥
वैसे पूरी कवि‍ता के भाव अच्‍छे लगे।

निर्मला कपिला said...

मोम सा सितारा,चांदनी में था पल रहा
-चाँद भी समन्दर में उतरने को है॥
लाजवाब सुन्दर कविता है आभार्

अनिल कान्त said...

Bahut achchha laga

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दर कविता

जिंदगी टुकडों में बासी सी है...............

बहुत ही दिल के करीब लगी यह पंक्ति

mehek said...

marmik sunder rachana badhai

Vinay said...

अति सुन्दर

---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हाँ! जिंदगी की भूख जरासी सी है
रुखी रोटी सी चाह अभी सिकने को है॥
सुन्दर अभिव्यक्ति।

विजय पाटनी said...

GUD WRITTEN AS USUAL :)

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

जिंदगी टुकडों में बासी सी है
हाँ! जिंदगी की भूख जरासी सी है
रुखी रोटी सी चाह अभी सिकने को है॥
पारुल जी ,
बहुत उम्दा पंक्तियाँ .....वैसे तो पूरी कविता अच्छी लगी .
हेमंत कुमार

बकबकिया said...

संजय कुमार मिश्र
आपकी कविता रूखी जिंदगी में गहराई है। इतना सोचना और उसे कागज पर उकेरना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। आप जितना मेहनत अपनी कविताओं पर करतीं हैं उतनी ही मेहनत इस तरह की रचनाओं को संगीतबद्ध करने में एआर रहमान करते हैं। यही वजह है कि आपके मन को उनका संगीत भाता है।

पूनम श्रीवास्तव said...

क्या हुआ,जो इस तरह सब के सब रो दिए
किस तरह हमने जिंदगी के मायने खो दिए
जी रहे है आख़िर,किस जज्बात से
जब की हर ख्वाहिश यूं भी मरने को है॥
achchhee panktiyan ..badhai.
Poonam