Friday, February 13, 2009

कब तक ?


आख़िर कब तक दिल को सपनों से भरते रहेंगें
और सच को देखने से डरते रहेंगें ॥
मिटाते रहेंगे कब तक अपने वजूद को
और मुखोटे आईने में सवंरते रहेंगें ॥
जिन्दा रखेंगें झूठ को किसी भी कीमत पर
और चाहे ख़ुद इसके बोझ तले मरते रहेंगें ॥
भटकते रह जायेगें तब भी न ख़ुद को पायेंगें
वक्त की गुमनाम गलियों में पलते रहेंगें ॥
रास्ते खत्म हो जायेंगें शायद
पर फिर भी तन्हा से चलते रहेंगें॥
इस दिल के पत्थर हो जाने तक
दर्द की लौ में यूं ही पिघलते रहेंगें॥
तलाशते रह जायेंगें उजालों को रातों में
और सुबह की किरण को देख आँख मलते रहेंगें ॥
क्या नाम देंगें आख़िर इस जिंदगी को
कब तक आख़िर ख़ुद को छलते रहेंगें॥

3 comments:

निर्मला कपिला said...

parul ji hamesha ki tarah sunder abhivyakti hai badhaai

pritima vats said...

बहुत अच्छे। ऐसा लगता है पीड़ा को शब्द मिल गये हैं जैसे।

mehek said...

bahut achhi abhivyakti badhai