Thursday, March 15, 2018

मेरी खामोशी....


                     


तेरे ही जिक्र की जासूसी मेरी खामोशी है।
रहूं मैं चुप क्यूँ, तेरी बातों सी मेरी खामोशी है।।
हरफ हरफ से लम्हे जो बिखर जाते है।
पता चला है कि हम तन्हा भी मुस्कुराते है
मुझमें जैसे तेरी यादों सी मेरी खामोशी है।।
सिरहाने रख अपनी कुरबत,ख्वाब खटखटाते हो
रात से कह भी दो आखिर तुम क्या चाहते हो
तेरे दिल के ही इरादों सी मेरी खामोशी है ।।
देख लो आज रंग तेरे उन्स का जो पहना है
कुछ अलग सी हूँ,ये कायनात का भी कहना है
हां बिल्कुल, तेरे जज्बातों सी मेरी खामोशी है।।
जो इस तरह भी मेरी ज़िंदगी यूं कट जाये
ये मुमकिन है लफ्ज मेरे, तेरी चुप्पी भी रट जाये
कोई कहता है तेरे वादों सी मेरी खामोशी है।।






2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-03-2017) को "छोटी लाइन से बड़ी लाइन तक" (चर्चा अंक-2912) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/03/blog-post_16.html