यूँ तो पल नहीं लगता है
दिल के रोने में
मगर सदियाँ गुजर जाती है
खुद के खाली होने में !!
यही सोचता हूँ आखिर
खुद को कहाँ रख दूं
कि रह जाओ बस तुम ही
इस दिल के कोने में !!
हसरतों की दौड़ में
मुमकिन नहीं
तुम तक पहुंचू
हौसला चाहिए फिर भी
खुद को तन्हा बोने में !!
दर्द का दरीचा
जब जब भी भर आया
रहा है कोई तो खलल
आह भिगोने में !!
कसक इतनी रही
मैं खुद को भी न मिला
रहा है हाथ तुम्हारा भी
मेरे खोने में !!
15 comments:
ultimate!!
'yun to' ishq ka dastoor hai
parul,tum to kamaal ho
lafzon se khel jati ho..kaise?
वाह जी ,बहुत अच्छे , सरलता सहजता से सब कुछ कह कर प्रभावित करना कोइ आपसे सीखे , बहुत उम्दा ...
यूं ही ,
रच देती हो ,
शब्दों , भावों का ,
इक अद्भुत संसार ,
कितनी सहज ,
सरल ,
प्रभावी हो ,
माहिर हो ,
आखर मोती पिरोने में ....
fst time i have come on your blog
sach mano..hil gayi :)
Beautiful composition as usal
Aniket
वाह वाह
immense writing!
vartika
touchy!
behad umda
ashok parikh
खुद को बोने और खोने का सिलसिला भी कितना अजीब होता है ... बहुत सुन्दर .
बहुत खूब ... सच है की उम्र लग जाती है गम भुलाने में ... शब्दों का ताना बना मन तक जाता है ...
Bahut sundar
वाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति। बहुत खूब।
बहुत सुन्दर ......
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