यूँ ही बस कोरा रह जाऊँ
या कि कुछ ज़िन्दगी लिखूँ !
लफ्ज़ लफ्ज़ यूँ बिखरुं
कि अपनी तिश्नगी लिखूँ !
करूं तेरा शहर खाली
या कि हो जाऊँ सवाली
बंजर से पड़े मन में
कोई नीली नदी लिखूँ !
तुझे देखूं किसी भोर में
या कि चाँद के कोर में
अपना गुमनाम सा पता
तुझ पर ही कहीं लिखूं !
वो कुछ कतरे सिरफिरे
जो नींदों में गर आ गिरे
उस पानी से इश्क़ पर भी
तेरा नाम सही लिखूं !
बड़े खामोश है रस्ते
मैं भी कुछ इस तरह चीखूँ
कि अपनी हर एक 'हाँ' पे
मैं बस तेरा 'नहीं' लिखूँ !
21 comments:
sundar...
अच्छी लगी रचना.
khoobsurat, pyari si kavita
बेहद सुन्दर भाव से गढ़ी गयी पोस्ट
बेहद सुन्दर भाव से गढ़ी गयी पोस्ट
बड़ी कोमल रचना
प्रेम के कुछ पल और गहरे लम्हों को गूंथ पर लिखी भावपूर्ण रचना ...
पारुल जी आपको पढना हमेशा अच्छा लगता है | नज्मों में एक जादू सा है आपकी | क्या आप फेसबुक पर भी हैं ?
Kayal hoon!!
Beautiful....
बेहद सुन्दर रचना...
सुन्दर कविता
I was excited to discover this website. I want to to thank you for ones
time just for this wonderful read!! I definitely really liked every little bit of
it and i also have you book marked to look at new information in your website.
my web site - kw3
Very nice post. I certainly love this website. Thanks!
Feel free to surf to my page :: Plantar Fasciitis
im waiting for ur nxt.....
bahut khoob likha hai aapne
देख रहा हूँ ब्लॉग लेखन कम हो चुका है। फिर भी पिछले साल की लिखी आपकी इस रचना को आज देख रहा हूँ तो मेरे लिए एकदम नई है और ताजी। बहुत खूब लिखा है। मैं खुद ब्लॉग को समय नहीं दे पा रहा जिसका अफ़सोस है किन्तु इधर लिखना शुरू किया है और सबको फिर से जोड़ने की तैयारी का प्रयास है। आप लिखा करें -
बहुत सुन्दर रचना. बधाई
बस वाह ... बंजर से पड़े मन में नीली सी नदी लिखूं और अंत में तेरी ना लिखूं बहुत खूब
उम्दा ।
यह पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं
Post a Comment