When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Thursday, July 22, 2010
क्यों दिखती नहीं वो..
वो मुट्ठी बंद थी एक रोज से
जो जब तब खुल जाती थी
वो भी कोई दौर था
जब जिंदगी आबो-हवा में घुल जाती थी ।
वो एक ख़्वाबों की खुसफुस
जो बड़ा शोर करती थी
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
न था ऐसा कभी कि
हसरत यूँ ही फिजूल जाती थी ।
एक कोरे से मन पर
जाने कितने रंग रहते थे
फलक के कुछ तारे
रात दिन संग रहते थे
एक झोंकें में अनगिनत
ख्वाहिशें झूल जाती थी ।
रात के तकिये तले से
चुराते वो नानी के पोथे
गहरी नींद के दरिया में
वो चाँद संग गोते
हाँ!कभी कभी अपनी जगह
परियां भी स्कूल जाती थी ।
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी
वो मुझ में इतना खोयी थी
कि खुद को भूल जाती थी ।
पर अब किसने बो दिए
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
बड़ा मासूम सा दिल है
कहीं कोई तो मुश्किल है
पूछता है 'अब क्यों दिखती नहीं वो '
'जिंदगी पहले तो रोज मिल जाती थी' ॥
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46 comments:
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
देख आया हूँ...
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी
अब का जिक्र तो है पर अभी का ?
"तेरा कूचा, तेरी गली काफी है,
बेठिकानो को ठिकाने की जरुरत क्या है.
--- जगजीत गा रहे हैं
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
देख आया हूँ...
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी
bahut khub!
हमेशा की तरह .... आई ऍम टच्ड...
पारुल ! किशोर वय का स्वर्णिम संसार झाँकता है इस प्यारी नज्म में ।
अति सराहनीय ।
bahut sunder bhavo kee abhivykti.......
kash hum bachapan fir se louta laate .
गहरी और सुन्दर भावनाओं से ओत-प्रोत कृति लाजवाब है
Bahut sunder... itne khoobsurat shabd kaha se laati hain aap..??
kaash hum bhi aisa likh paate....
बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
'जिंदगी पहले तो रोज मिल जाती थी' ॥
रात के तकिये तले से
चुराते वो नानी के पोथे
गहरी नींद के दरिया में
वो चाँद संग गोते
हाँ!कभी कभी अपनी जगह
परियां भी स्कूल जाती थी ।
bachpan kaa aanchal kas ke thaama huaa hai aapne ...maasoom kavitaa
बहुत सुन्दर, कमाल के भाव हैं, बेहतरीन!
bachcho ke nanhe hatho ko chand sitare choone do
char kitabe padhkar yeh bhi hum jaise ho jayenge.
bahut khub likha hai aapne.
visit my blog please at
http://mayurji.blogspot.com/
पर अब किसने बो दिए
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
बेहद भावपूर्ण रचना...और प्रवाह बहुत खूबसूरत है .
पर अब किसने बो दिए
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
मासूम सा सवाल है ..
बहुत भावपूर्ण रचना
बहुत उम्दा!!
कभी कभी अपनी जगह
परियां भी स्कूल जाती थी ।
यहाँ पर जाके नज़्म मैच्योर हो जाती है.. रोमांटिक माहोंल से निकलकर यहाँ पर ठहरना भी काबिल ए तारीफ़ है.. और ख्वाहिशो का पतंग होना लाजवाब है..
यूँ ही जिंदगी को ढूंढते है हम सभी ...
मगर जब गाती मुस्कुराती हमारे साथ होती है तो बेकद्री और अभिमान भी हम ही करते हैं ...
सुन्दर रचना ...!
बड़ी कोमलता से भावों को पिरो दिया।
हमेशा की तरह .... अति सराहनीय ।
सराहनीय ।
"पुराने बचपन जैसी ही मासूम कविता..."
likhi to aap hamesha kamaal ho..yahan bhi jindagi ka tana-bana sundar band pada hai..
by the way blog bhi sundar ban pada hai...:)
gud luck!
kitni kashish hai is kalam mein..au ye sawaal sabke jehan mein hai..parul..kya kehoon..nayab hai!
vartika
kitni kashish hai is kalam mein..au ye sawaal sabke jehan mein hai..parul..kya kehoon..nayab hai!
vartika
so beautifully yu have written..#
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
waah !
बहुत सुंदर और उम्दा रचना.
रामराम.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने!
Bahut sunder
पर अब किसने बो दिए
उन्ही आँखों में कुछ मंजर कंटीले
रोज छिलते है वो सपने
रोज होते है अब गीले
बड़ा मासूम सा दिल है
कहीं कोई तो मुश्किल है
पूछता है 'अब क्यों दिखती नहीं वो '
'जिंदगी पहले तो रोज मिल जाती थी'
Bahut badhiya aur sarthak kavita...aj ke sandarbha men.
बड़ा मासूम सा दिल है
कहीं कोई तो मुश्किल है
पूछता है 'अब क्यों दिखती नहीं वो '
'जिंदगी पहले तो रोज मिल जाती थी' ॥
..........नए एहसासों में रच बसी एक सुन्दर रचना....! जो ज़िन्दगी का मतलब जानते हैं उन्हें इस बात का अफ़सोस ज़रूर रहता होगा कि 'अब क्यों दिखती नहीं वो ज़िन्दगी.......'
फोटो बदल ली. :)
बहुत बढ़िया बहुत सुन्दर,सराहनीय लाजवाब रचना
Aapne apne blog ko bahut sunder design kiya hai.. I also want to do so.. will u help me, how did u do..
Aapne apne blog ko bahut sunder design kiya hai.. I also want to do so.. will u help me, how did u do..
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी...
...कमाल की पंक्तियाँ है .
फिर कई सारे सवाल लिए खड़ी है आपकी नज़्म ....
और बचपन की कुछ मासूम यादें .....
बहुत सुंदर .....!!
एक भोली सी जिद पे
छोटी सी जंग होती थी
कोई सरहद नहीं थी शायद
ख्वाहिशें पतंग होती थी ..
बहुत खूब .. बचपन की यादों को खैंच कर बाहर ले आई है आपकी रचना ....
बहुत लाजवाब ...
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
हाँ!कभी कभी अपनी जगह
परियां भी स्कूल जाती थी
कितने प्यार से आपने बातों को कहा है। वो बचपन की यादें। आह कहां गए वो मस्ती के दिन।
मुझे यह कविता इतनी अच्छी लगी ...कि मैं फिर से आ गया....
हैट्स ऑफ़ टू यू...
रिगार्ड्स...
Bahut hi sunder parul ji.
www.ravirajbhar.blogspot.com
sangeeta ji charcha ke liye shukriya :)
baaki sabhi ka bhi hardik aabhar :)
एक चुप्पी पे भी अम्मी
तब बड़ा गौर करती थी
khubsurat...behad khubsurat
आपकी यह कविता तो बहुत सशक्त है । बहुत बधाई !
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ .......... बहुत सुन्दर रचना........... अब आना होता रहेगा .......
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