When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Friday, January 9, 2009
दूरी
कितना अच्छा लगता है कभी
ख़ुद से दूर होना .............
ख़ुद में न रहकर
कहीं और खोना .........
भूल जाना ख़ुद को
न पाना ख़ुद को
और ढूढना किसी और के
मन का कोना ............
अपनी सोच से परे
हो सब खाली सा
न कुछ भरे
न रोज की जिंदगी को ढोना ...........
जहाँ आंसू भी हो बेअसर
ख़ुद की न हो कोई ख़बर
न मरने का खौफ हो
न जीने का डर
जहाँ मिल जाए ख्वाहिशों को
चैन से सोना......
जहाँ हो ख़ुद को
तन्हाई भी न मयस्सर
न कोई ठिकाना
मैं रहूँ बेघर
जहाँ वक्त का
न चले कोई पता
न पड़ता हो ख़ुद को
ख़ुद में डुबोना .......
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5 comments:
"कितना अच्छा लगता है कभी
ख़ुद से दूर होना .............
ख़ुद में न रहकर
कहीं और खोना ........."
"जहाँ मिल जाए ख्वाहिशों को
चैन से सोना......"
हमेशा की तरह बेह्तरीन। सच में कितना अच्छा लगता है कभी ख़ुद से दूर होना।
Behtareen Kavita..Khud Se Door Ho Kar Hi Khud Ko Pehchaan paana Sambhav hai..Autr Khud Ko Pehchanna Humesha Ek Sukhad Anubhav Hota hai...Panktiyaan Dil Ko Chhoo Gayin..Likhti rahiye :)
amazing, you write so well, wishes
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
अच्छा लिखा है आपने .... भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बखूबी दिखाया है आपने
thanx 2 all of u
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