When emotions overflow... some rhythmic sound echo the mind... and an urge rises to give wings to my rhythm.. a poem is born, my rhythm of words...
Monday, January 12, 2009
बस!!
मैंने जितना चाहा दूर ,ख़ुद से होना
मैं उतना ही ख़ुद के करीब आता गया ........
मैं चल चुका था मीलों, खुशी की तलाश में
और मेरा हर गम मुझ पर मुस्कुराता गया ..........
मैं देखता रहा आसमां के खालीपन को
जो मेरे मन का सूनापन बढाता गया ...........
मैं ढूंढता रह गया अपनी मिट्टी के रंग
वो हर रंग को उस सूनेपन में डुबाता गया ...........
मैं भी डूबता गया हर एहसास में
अपनी सोच के साथ, ख़ुद गहराता गया
कुछ बूँद मिल गई मेरे प्यासे दर्द को
न पता था मैं ख़ुद को क्यों इतना रुलाता गया
मैं समझने लगा था ख़ुद को औरों से बड़ा
मुझे न जाने क्यों अकेलापन भाता गया
हाँ!बहुत मुश्किल था ख़ुद में रहकर जीना
मैं फिर भी ख़ुद से निभाता गया
मैं देखता रहा दूसरो की दौलत
और अपना वजूद मिटाता गया .........
मैं बदलता गया ख़ुद को,ख़ुद के लिए
और वक्त के आईने को चाहता गया ............
मैं जिस भूल में जिंदगी को बहुत पीछे छोड़ आया था
मैं उस भूल को ही फिर दोहराता गया...........
मैं जोड़ता रहा बस ख़ुद को ख़ुद से
और ख़ुद में से ख़ुद को ही घटाता गया ...........
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3 comments:
मैं बदलता गया ख़ुद को,ख़ुद के लिए
और वक्त के आईने को चाहता गया ............
bahut aachi rachna hai.
www.merichopal.blogspot.com
मैं जोड़ता रहा बस ख़ुद को ख़ुद से
और ख़ुद में से ख़ुद को ही घटाता गया ......
उल्लेखनीय रचना.
bahut sundar rachna ...
aapki kavita har baar ki tarah acchi hai..
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